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Rajat Sharma's Blog: महाराष्ट्र की जनता के अंतिम फैसले का इंतज़ार करें

असल में शुरुआत उद्धव ठाकरे ने की थी ,पहली गलती उद्धव की थी, उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, 56 सीटें जीतीं और इतनी सीटों के दम पर ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ गये, ये धोखा था। यहीं से ये सारा किस्सा शुरू हुआ।

Written By: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : Jan 11, 2024 18:01 IST, Updated : Jan 11, 2024 18:02 IST
Rajat sharma, Indiatv- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

उद्धव ठाकरे को बड़ा राजनीतिक झटका लगा, एकनाथ शिन्दे की बड़ी राजनीतिक जीत हुई। महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट के 16 विधायकों की सदस्य़ता को अयोग्य ठहराने की उद्धव गुट की अर्ज़ी को खारिज कर दिया। इसके साथ साथ अध्यक्ष ने उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों की सदस्यता को अयोग्य ठहराने वाली अर्ज़ी को भी खारिज कर दिया। इसका मतलब ये है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कुर्सी को फिलहाल कोई खतरा नहीं हैं। उनके साथ आए 15 विधायकों की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं हैं। महाराष्ट्र विधानसभा में दोनों गुटों के विधायकों की संख्या पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, सरकार के बहुमत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पहले चुनाव आयोग ने एकनाथ शिन्दे के गुट को असली शिवसेना माना था, अब अध्यक्ष ने भी यही फैसला सुनाया। अध्यक्ष ने अपने फैसले में तीन बड़ी बातें कहीं। पहली, एकनाथ शिन्दे के साथ शिवसेना का जो गुट है, वही असली शिवसेना है। दूसरा, सुनील प्रभु की जगह भरत गोगवले को शिवसेना का मुख्य सचेतक बनाने का एकनाथ शिन्दे गुट का फैसला सही और कानून सम्मत था, और तीसरा जिस वक्त पार्टी में टूट हुई, उस वक्त एकनाथ शिन्दे के साथ शिवसेना के 56 में से 37 विधायक थे। अध्यक्ष ने अपने फैसले में ये भी कहा कि जिस वक्त शिवसेना में टूट हुई उस वक्त उद्धव ठाकर पार्टी के प्रमुख और सर्वमान्य नेता नहीं थे और पक्षप्रमुख के खिलाफ बोलने का मतलब पार्टी के खिलाफ बोलना नहीं होता है। अध्यक्ष के फैसले के बाद एकनाथ शिन्दे के समर्थकों ने जश्न मनाया और उद्धव गुट के नेताओं ने अध्यक्ष के फैसले को बीजेपी की मैच फिक्सिंग बताई। 

अब सवाल ये है कि अध्यक्ष के फैसले का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर होगा? उद्धव ठाकरे का राजनीतिक भविष्य क्या होगा? उद्धव ठाकरे ने कहा है कि वह इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने लगभग डेढ़ साल की सुनवाई के बाद 1200 पन्नों वाला फ़ैसला सुनाया। फैसला करीब करीब वैसा ही है जैसा चुनाव आयोग ने दिया था। अध्यक्ष ने कहा कि 21 जून 2022 को शिवसेना में टूट के बाद एकनाथ शिंदे गुट ही असली शिवसेना बनकर उभरा, क्योंकि उसके पास 56 में से 37 विधायकों का समर्थन था। ये बात चुनाव आयोग ने भी मानी। इसलिए, शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि, शिंदे गुट ही असली शिवसेना है। दूसरा, राहुल नार्वेकर ने ये भी कहा कि उद्धव ठाकरे गुट ने सुनील प्रभु को व्हिप बनाया था, लेकिन 21 जून 2022 को असली शिवसेना शिंदे गुट था इसलिए शिंदे गुट की तरफ से भरत गोगावाले को पार्टी का व्हिप बनाना भी सही था। जब असली व्हिप भरत गोगावाले थे, तो विधायकों के व्हिप का पालन न करने का इल्ज़ाम भी ग़लत है। तीसरी बात, अध्यक्ष ने कही कि उद्धव ठाकरे गुट का ये इल्जाम भी गलत साबित हुआ कि पार्टी के विधायक अचानक लापता हो गए थे, उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा था, इसलिए इस आधार पर भी शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। नार्वेकर ने कहा कि वो उद्धव ठाकरे गुट की तरफ़ से पेश किए गए दल के संविधान को भी नहीं मान सकते क्योंकि चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ये संविधान उपलब्ध नहीं है, इसलिए ये नहीं माना जा सकता कि 2018 में शिवसेना के संविधान में बदलाव के आधार पर उद्धव ठाकरे को इस बात का अधिकार मिल गया कि वो एकनाथ शिंदे को उनके पद से हटा सकते थे। 

अध्यक्ष ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी जिसमें पार्टी के संविधान में बदलाव को मंज़ूरी दी गई थी। इसलिए अध्यक्ष ने शिवसेना के 1999 के संविधान को ही असली पार्टी संविधान माना हैं और उसी के आधार पर शिंदे गुट को अध्यक्ष ने असली शिवसेना करार दिया। हालांकि अध्यक्ष ने उद्धव गुट के विधायकों को अयोग्य ठहराने की शिंदे गुट की अर्जी भी ख़ारिज कर दी। अध्यक्ष के फैसले सुनाये जाने के बाद विधानसभा और एकनाथ शिन्दे की शिवसेना के दफ्तर पर शिंदे के समर्थकों ने मिठाइयां बांटी, नारे लगाए। उद्धव ठाकरे अपने घर मातोश्री में  बैठकर अध्यक्ष के फैसले को लाइव देख रहे थे। जब फैसला खिलाफ आया तो मातोश्री में सन्नाटा पसर गया। मुख्यमंत्री शिन्दे ने अध्यक्ष के फैसले को लोकतंत्र में वंशवाद के खात्मे का प्रतीक बताया। दूसरी तरफ शिवसेना भवन में ठाकरे समर्थकों ने एकनाथ शिंदे और अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया, नार्वेकर के पोस्टर्स पर कालिख पोत दी और अध्यक्ष के ख़िलाफ़  नारेबाज़ी की। उद्धव ठाकरे ने कहा कि अध्यक्ष ने अपने फ़ैसले से दल-बदल क़ानून और लोकतंत्र को कमज़ोर किया है क्योंकि उनको ख़ुद भी पार्टियां बदलने का काफ़ी अनुभव है। उद्धव ने कहा कि अब उनको सुप्रीम कोर्ट और जनता से ही न्याय की उम्मीद है। NCP के चीफ शरद पवार ने कहा कि  उद्धव ठाकरे को अब सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ़ मिलेगा।  महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा कि अध्यक्ष बीजेपी के इशारे पर काम कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने पहले इस मामले को बार बार टाला और जब सुप्रीम कोर्ट ने समयसीमा तय कर दी तो संविधान के ख़िलाफ़ फैसला दिया।

ये तो सोचना भी बेकार था कि राहुल नार्वेकर शिंदे गुट के 16 विधायकों को अयोग्य ठहरायेंगे, इसमें कोई सस्पेंस नहीं था। नार्वेकर अध्यक्ष हैं पर वो बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़कर आए हैं और उन्हें फिर चुनाव लड़ना है। शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है तो इस बात में कोई शक नहीं था कि वो शिंदे गुट के 16  MLA को योग्य ही ठहराएंगे। देखना बस इतना था कि शिंदे और उनके साथ उद्धव का साथ छोड़कर गए लोगों की सदस्यता को सही कैसे ठहराते हैं। नार्वेकर ने जो तर्क दिए हैं वो अच्छे हैं, तर्कसंगत हैं, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में इस समय जो हालात हैं, उनकी वजह से किसी को इस पर आश्चर्य नहीं हुआ। असल में शुरुआत उद्धव ठाकरे ने की थी ,पहली गलती उद्धव की थी, उन्होंने  बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, 56 सीटें जीतीं और इतनी सीटों के दम पर ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग पर अड़ गये, ये धोखा था। यहीं से ये सारा किस्सा शुरू हुआ। दूसरी गलती शिंदे ने की, वो उद्धव के नेतृत्व में चुनाव जीतकर आए थे। लोगों ने उन्हें और उनके साथियों को उद्धव की शिवसेना के नाम पर वोट दिए थे लेकिन वो विधायकों को लेकर गुवाहाटी चले गए, बीजेपी के सेफ हाऊस में बस गए और फिर बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बन गए।  ये भी धोखा था। लेकिन महाराष्ट्र के लिए धोखे की राजनीति नई नहीं है। शरद पवार, वसंत दादा पाटिल को धोखा देकर मुख्यमंत्री बने थे। अजित पवार, चाचा शरद पवार को धोखा देकर उपमुख्यमंत्री बन गए। इसलिए महाराष्ट्र के लोगों के लिए ये फैसला करना मुश्किल है कि कौन धोखेबाज है ? और कौन वफादार ? कहावत है कि हमाम में सब नंगे हैं। इस सारे प्रकरण में सिर्फ देवेंद्र फडणवीस ऐसे हैं जिन्होंने किसी को धोखा नहीं दिया, महाराष्ट्र की जनता ने तो उनके नाम पर वोट दिया, उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए समर्थन  दिया,  दो-दो बार मौका भी आया और दोनों बार उनके साथ अन्याय हुआ। अब अकेले फडणवीस ऐसे हैं जो जनता के सामने जाकर कह सकते हैं कि उनके साथ ज़ुल्म हुआ। लेकिन सबसे ज्यादा अन्याय  महाराष्ट्र के लोगों के साथ हुआ, उन्होंने चुना किसी और को और उन्हें मिला कुछ और।  आज के अध्यक्ष के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी और अंतिम फैसला जनता के हाथ में होगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 10 जनवरी 2024 का पूरा एपिसोड

 

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