Monday, May 13, 2024
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Uttarakhand: केदारनाथ के गर्भगृह की दीवार पर वहां के पुरोहित क्यों नहीं चाहते सोने की परत, पढें पूरी रिपोर्ट

Kedarnath: भगवान भोलेनाथ के दरबार में हर कोई जाना चाहता है। अगर बात हो केदारनाथ महाराज की, तो श्रद्धालु और अधिक उत्साहित हो जाते हैं। केदारनाथ का दरवाजा साल में कुछ महीनों के लिए ही खुलता है।

Ravi Prashant Reported By: Ravi Prashant @iamraviprashant
Updated on: September 18, 2022 19:22 IST
Kedarnath- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Kedarnath

Highlights

  • हर रोज औसतन 13,000 श्रद्धालु बाबा के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं
  • मंदिर परिसर में पुरोहित दिन-रात भगवान भोलेनाथ को पहरा दे रहे हैं
  • मंदिर के गर्भगृह में पहले से 230 किलो चांदी की परत लगाई गई

Kedarnath: भगवान भोलेनाथ के दरबार में हर कोई जाना चाहता है। अगर बात हो केदारनाथ महाराज की, तो श्रद्धालु और अधिक उत्साहित हो जाते हैं। केदारनाथ का दरवाजा साल में कुछ महीनों के लिए ही खुलता है। उसी दौरान श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ का दर्शन कर पाते हैं। इन दिनों हर रोज औसतन 13,000 श्रद्धालु बाबा के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। वही खराब मौसम होने की वजह से बीच में यात्रा को रोका भी जा रहा है। इसी बीच केदारनाथ मंदिर को लेकर एक विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। हालात ऐसे हो गए हैं कि मंदिर परिसर में पुरोहित दिन-रात भगवान भोलेनाथ को पहरा दे रहे हैं। अब आपके मन में सवाल पैदा हो रहा होगा कि आखिर ऐसा पुरोहित क्यों करने पर मजबुर हो गए हैं।

आइए विवाद को समझते हैं

केदारनाथ हिंदू धर्म की सबसे ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। साल 2013 में आए त्रासदी के बाद केदारनाथ में सब उजर गया था। हालांकि, मोदी सरकार के प्रयासों से काम काफी तेजी से हुआ और पहले से बेहतर मदिंर परिसर को बना दिया गया। अब इसी मंदिर के गर्भगृह को लेकर महाराष्ट्र के एक दानकर्ता ने अपनी इच्छा जाहिर की है, वो गर्भगृह को सोने की परत से मढना चाहते हैं, जिसका विरोध पुरोहित कर रहे हैं।  

क्या कहना है पुरोहितों का?
पुरोहितों का कहना है कि अगर सोने की परत चढाई जाती है तो केदारनाथ की अस्तित्व को नुकसान पहुंचेगी। आपको बता दें कि मंदिर के गर्भगृह में पहले से 230 किलो चांदी की परत लगाई गई है। अब चांदी की परत को हटाकर तांबे की परत चढ़ाने की प्रक्रिया को लेकर ट्रायल किया जा रहा है, जिसका विरोध जमकर स्थानीय पुरोहित कर रहे हैं। इसके अलावा वह मंदिर के परिसर में दिन-रात पहरा दे रहे हैं ताकि किसी प्रकार का कोई काम ना हो सके। पुरोहितों का कहना है कि यह बिल्कुल ही गलत हो रहा है। इस संबंध में श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ को एक पत्र भी लिखा गया है। पुरोहितों ने अपने पत्र में लिखा है कि जल्द से जल्द काम को रोका जाए। वही तर्क देते हुए पत्र में बताया है कि इस कार्य से केदारनाथ की असली महत्व को नुकसान पहुंचेगी। पुरोहितों ने बताया कि अगर इसे नहीं रोका गया तो हम जल्द ही भूख हड़ताल पर बैठेंगे।

 श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति​ का क्या है कहना?
इस संबध जब श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ से बात किया गया तो उन्होंने बताया कि इसे पहले भी सोमनाथ और बद्रीनाथ में सोने का सिंहासन चढ़ा है। वही केदारनाथ के गर्भगृह में पहले से चांदी की परत चढ़ाई गई थी। अब गर्भ गृह के दिवारों पर सोने की लेयर लगाई जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि तीर्थ पुरोहित सभा के कुछ सदस्य विरोध कर रहे हैं। उनकी लगभग संख्या 4-5 होगी। डॉक्टर ने आगे बताया कि मंदिर के मूल रूप से कोई छेड़छाड़ नहीं हो रही है। आपको बता दें कि कुल सोने की वजन 230 किलों ग्राम है, जिसे मंदिर के गर्भ गृह के दीवारों पर परत चढ़ाए जाएंगे। 

क्या है केदारनाथ मंदिर का इतिहास?
मंदाकिनी नदी के निकट उत्तराखंड के गढ़वाल हिमालय पर्वत पर स्थित, केदारनाथ मंदिर दुनिया भर में हिंदुओं का प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर 12 ज्योतिर्लिंग में शामिल है। विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर 3,562 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह शिव मंदिर उत्तराखंड के चार धाम यात्रा के चार स्थानों में यमुनोत्री, गंगोत्री और बद्रीनाथ में गिना जाता है। इतना ही नहीं केदारनाथ, पंच केदार का निर्माण करने वाले पांच मंदिरों में से एक है। अधिक ऊंचाई होने के कारण सर्दियों में यह मंदिर बर्फ की चादर में लिपट जाता है।

राज्य का सबसे विशाल मंदिर 
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है।  मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।

  

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