Thursday, April 25, 2024
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जानिए क्यों मनाया जाता है बैसाखी का पर्व? पांडवों से क्या है इस पर्व का संबंध?

बैसाखी को कई नामों से जाना जाता है। इसे असम में बिहू कहते हैं, जबकि बंगाल में पोइला बैसाख कहा जाता है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: April 12, 2020 17:34 IST
बैसाखी का पर्व- India TV Hindi
जानिए क्यों मनाया जाता है बैसाखी का पर्व?

बैसाखी के पर्व को किसानों का पर्व भी कहते हैं, यह हर साल 13 या 14 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार हरियाणा और पंजाब सहित कई जगहों पर ये त्योहार 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। इसे सिर्फ सिखों के नए पर्व के रूप  ही नहीं, बल्कि अन्य कई कारणों से सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन मेष संक्रांति होती है। सोलर नववर्ष का प्रारंभ होता है। इसी दिन अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्‍थापना की थी। साथ ही पंजाब में रबी की फसलकर पककर तैयार हो जाती है। इसलिए बैसाखी कृषि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

बैसाखी को कई नामों से जाना जाता है। इसे असम में बिहू कहते हैं, जबकि बंगाल में पोइला बैसाख कहा जाता है।

कैसे मनाते हैं बैसाखी का पर्व

उत्तर भारत में और खासकर पंजाब और हरियाणा में बैसाखी पर काफी अच्छी रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग ढोल नगाड़ों की थाप पर डांस करते हैं और इस उत्सव का आनंद उठाते हैं। बैसाखी का नाम विशाखा नक्षत्र से लिया गया है। इस समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और गुरुद्वारे में अरदास केलिए पहुोंचते हैं। लोग घरों की सफाई करते हैं और घरों को रंगोली और लाइट्स से सजाया जाता है। घरों में अच्छे पकवान बनते हैं और लोग मेले में जाते हैं।

बैसाखी का पर्व मनाने की पीछे कई कहानियां हैं। इसे फसलों से भी जोड़ा जाता है और महाभारत के पांडवों से भी। आइए हम आपको इस पर्व के पीछे की वजहें बताते हैं।

महाभरत से बैसाखी के पर्व का संबंध

पौरााणिक मान्यताओं के अनुसार जब पांडव वनवास काट रहे थे उस दौरान यात्रा करते करते वो पंजाब के कटराज ताल पहुंचे। यहां पहुंचते ही सभी को प्यास लगी और बड़े भाई युधिष्ठिर को छोड़कर सभी भाईयों ने उस सरोवर का पानी पी लिया और सभी की मृत्यु हो गई। जब काफी देर तक भाई नहीं आए तो युधिष्ठिर उन्हें ढूंढ़ने पहुंचे। उनकी नजर सरोवर पर पड़ी तो वो भी पानी पीने के लिए आगे बढ़ें, लेकिन भाईयों को मृत देखकर वो रुक गए। तभी वहां यक्ष प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि मना करने के बाद भी आपके भाईयों ने यहां का पानी पी लिया, अब अगर आप अपने भाईयों को वापस जीवित चाहते हैं तो आपके मेरे कुछ सवालों के जवाब देने होंगे। 

युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी प्रश्नों का बुद्धिमानी से सही जवाब दिया, उनकी प्रतिभा से प्रभावित यक्ष ने एक और परीक्षा लेनी चाही और कहा कि सिर्फ एक ही भाई वो जीवित कर सकते हैं। ऐसे मे युधिष्ठिर ने अपने सौतेले भाई का नाम लिया। युधिष्ठिर से यक्ष और भी प्रभावित हो गए और चारों भाईयों को जीवनदान दिया। मान्यता है कि तभी से बैसाखी पर्व की उत्पत्ति हुई। आज भी पंजाब के इस कटराज ताल के पास बैसाखी पर बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

बैसाखी को मेष संक्रांति कहने की है खास वजह

बैसाखी के मौके पर सूर्य मेष राशि पर जाते हैं इसी वजह से इसे मेष संक्रांति कहते हैं। इस बार 13 अप्रैल को रात 8 बजकर 23 मिनट पर सूर्य मेष राशि में संचरण करेंगे। इस दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत होगी। आज ही के दिन से लोग बद्रीनाथ की यात्रा शुरू करते हैं।

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