Saturday, April 20, 2024
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Shani Pradosh Vrat 2020: शनि प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ती है, तो वह प्रदोष, शनि प्रदोष कहलाता है। अतः आज शनि प्रदोष व्रत है और शनि प्रदोष के दिन भगवान शंकर के साथ ही शनिदेव की पूजा का बड़ा ही महत्व है।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: December 11, 2020 13:22 IST
Shani Pradosh Vrat 2020: शनि प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTA/MAHADEV_KE_PREMI/MAHADEV_DEVADHIDE Shani Pradosh Vrat 2020: शनि प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की उदया तिथि द्वादशी और दिन शनिवार है। द्वादशी तिथि सुबह 7 बजकर 3 मिनट तक रहेगी उसके बाद त्रयोदशी तिथि लग जाएगी जोकि देर रात 3 बजकर 53 मिनट तक रहेगी।  प्रत्येक महीने में दो पक्ष होते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। दोनों पक्षों की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत किया जाता है और प्रदोष व्रत में भी प्रदोष काल का महत्व होता है।

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार प्रदोष काल उस समय को कहा जाता है, जब दिन छिपने लगता है, यानी सूर्यास्त के ठीक बाद वाले समय और रात्रि के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है। त्रयोदशी को  प्रदोष काल में भगवान शंकर की पूजा का विधान है। जब शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ती है, तो वह प्रदोष, शनि प्रदोष कहलाता है। अतः आज शनि प्रदोष व्रत है और शनि प्रदोष के दिन भगवान शंकर के साथ ही शनिदेव की पूजा का बड़ा ही महत्व है।

शनि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

त्रयोदशी तिथि आरंभ: 12 दिसंबर सुबह 7 बजकर 4 मिनट से

त्रयोदशी तिथि समाप्त:  12 दिसंबर रात 3 बजकर 53 मिनट तक

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शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

प्रदोष व्रत सूर्योदय से लेकर रात के प्रथम पहर तक किया जाता है। इस दौरान अन्न नहीं खाया जाता। सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर सबसे पहले शिव जी की पूजा के लिये किसी शिव मंदिर में जायें। वहां जाकर सबसे पहले भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को प्रणाम करें। फिर पंचामृत व गंगाजल से शिव जी को स्नान कराकर साफ जल से स्नान करायें। बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि से भगवान का पूजन करें और हर बार एक चीज़ चढ़ाते हुए ‘ऊं नमः शिवाय’ का जाप करें । इस दिन भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं और शिवजी के आगे घी का दीपक जलाएं।

जो संतान पाना चाहते हैं उन दम्पति को तो प्रदोष व्रत जरूर करना चाहिए और दोनों को साथ में पूरे विधि-विधान से शिव जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान की कृपा से आपके घर में जल्द ही किलकारियां गूंजेगी। इस तरह शिव पूजन के बाद शनिदेव की भी पूजा करें और पीपल के पेड़ में जल जरूर चढ़ाएं, साथ ही एक तेल का दिया भी जलाएं और शनि के 108 नामों का जाप करें। शनि के दर्शन के समय एक बात का ध्यान रखें कि शनिदेव के दर्शन कभी भी सामने से न करें, हमेशा पीछे से ही करें।

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शनि प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

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एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

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