Friday, April 19, 2024
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वरूथिनी एकादशी 2020: सौभाग्य देने वाली एकादशी का जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है । माना जाता है कि वरूथिनी एकादशी सौभाग्य देने वाली, सभी कष्टों को नष्ट करने वाली तथा मोक्ष देने वाली होती है ।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: April 17, 2020 14:24 IST
वरूथिनी एकादशी- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/DYUTIMAYKUMARB वरूथिनी एकादशी

हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखने और उनकी पूजा करने का विधान है । वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है और वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी का व्रत किया जाता है । माना जाता है कि वरूथिनी एकादशी सौभाग्य देने वाली, सभी कष्टों को नष्ट करने वाली तथा मोक्ष देने वाली होती है । जो भी व्यक्ति आज के दिन व्रत करता है, भगवान विष्णु उसकी हर संकट से रक्षा करते हैं। वरूथिनी एकादशी का व्रत 18 अप्रैल, शनिवार को पड़ रहा है।

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर माना जाता है । कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरूथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है । इसके अलावा शास्त्रों में कहा गया है कि अन्नदान और कन्यादान के बराबर कोई दान नहीं है । इनसे देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं और वरूथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है।

वरूथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त

  • एकादशी तिथि प्रारंभ:  17 अप्रैल रात  8 बजकर 4 मिनट से
  • एकादशी तिथि समाप्त: 18 अप्रैल रात 10 बजकर 18 मिनट तक।

वरूथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि


जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान का ध्यान करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान श्री कृष्ण की पूजा विधि-विधान से करें। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। अगले दूसरे दिन यानी की 19 अप्रैल के दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेंट और दक्षिणा दे।

सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें। व्रत के दिन व्रत के सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही साथ जहां तक हो सके व्रत के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। भोजन में उसे नमक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। 

वरूथिनी एकादशी व्रत कथा

वरूथिनी एकादशी के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक लोकप्रिय कथा राजा मांधाता की है। प्राचीन काल में नर्मदा नदी के किनारे बसे राज्य में मांधाता राज करते थे। वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, उसी समय एक भालू आया और उनके पैर खाने लगा। मांधाता तपस्या करते रहे। उन्होंने भालू पर न तो क्रोध किया और न ही हिंसा का सहारा लिया।

पीड़ा असहनीय होने पर उन्होंने भगवान विष्णु से गुहार लगाई। भगवान विष्णु  ने वहां उपस्थित हो उनकी रक्षा की पर भालू द्वारा अपने पैर खा लिए जाने से राजा को बहुत दुख हुआ। भगवान ने उससे कहा- हे वत्स! दुखी मत हो। भालू ने जो तुम्हें काटा था, वह तुम्हारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मो का फल था। तुम मथुरा जाओ और वहां जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत रखो। तुम्हारे अंग फिर से वैसे ही हो जाएंगे। राजा ने आज्ञा का पालन किया और फिर से सुंदर अंगों वाला हो गया।

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