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प्यार को रखना है हमेशा के लिए बरकरार तो भूल से भी अपने रिलेशनशिप में न करें ये गलतियां

आपसी समझ और सामंजस्य की डोर यदि रिश्तों में सुलझी रहे, तो सहजता बनी रहती है। उलझ जाए, तो सभी रिश्तों को कमजोर कर देती है। रिश्तों में दूरियां बढ़ा देती है। आज अगर रिश्ते टूट रहे हैं, तो इसकी वजह आपसी समझ की कमी ही है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : March 26, 2018 18:08 IST
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नई दिल्ली: आपसी समझ और सामंजस्य की डोर यदि रिश्तों में सुलझी रहे, तो सहजता बनी रहती है। उलझ जाए, तो सभी रिश्तों को कमजोर कर देती है। रिश्तों में दूरियां बढ़ा देती है। आज अगर रिश्ते टूट रहे हैं, तो इसकी वजह आपसी समझ की कमी ही है। आज की पीढ़ी में न तो सहनशीलता है और न ही समझ। जरूरी है कि हम समय रहते हम इसे समझें और इस स्नेह की डोर को उलझने ही न दें।  

अपना अपना आसमान  

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है हर इंसान की अपनी जिंदगी है। अपनी सोच है। अपने हिस्से का आसमान है। जिसमें बेवजह की दखल दूरियां ही बढ़ाती है। घर में बच्चे हों या बड़े, पहले उनके पहलू को समझें। कहने की बजाय उनकी बातें सुनने पर भी ध्यान दें। सुनें ही नहीं, बल्कि समझने की भी कोशिश करें। उन वजहों को जाने बिना कुछ भी न कहें, जिनसे जूझते हुए वह जी रहे हैं। ठीक ऐसे ही ऑफिस के दोस्त हो या सहकर्मचारी। सलाह, समझाइश या व्यक्तिगत जिंदगी की बातें, बेवजह कभी न करें।

इस गैर-जरूरी दखल से न चाहते हुए भी संबंधों में तनाव ही पैदा होता है। यह बेवजह की तनातनी अक्सर रिश्ते की डोर ही तोड़ देती है। जैसे पतंग हवा के साथ अपनी दिशा बदल लेती है। आप भी सहज होकर जीने की सोचें। याद रखिए कि अपने अपने हिस्से के आसमान में यूं एक दूजे के इमोशंस की कद्र करते हुए खुलकर जीना परिस्थितियों को उलझाएगा नहीं, सुलझाएगा। अपनेपन और प्यार को विस्तार देगा। यह सहजता रिश्तों की डोर को कभी कमजोर नहीं होने देगी। 
ढील तो देनी होगी 

आमतौर पर हम जिनसे जुड़ते हैं, उन्हें बांधना चाहते हैं। एक हक का भाव चाहे-अनचाहे उस रिश्ते से जुड़ ही जाता है। जो कभी-कभी बेड़ी बन जाता है, लेकिन यह समझना भी जरूरी है कि हर हक जिम्मेदारी से भी जुड़ा होता है। अधिकार के साथ एक ड्यूटी भी मिलती है। यह जिम्मेदारी उस इंसान की खुशियों से जुड़ी होती है, जिसे हम अपना समझ अधिकार जमाते हैं। ऐसे में उन्हें मन का करने और जीने की छूट न मिले, तो वे खुश नहीं रह सकते। 

यूं भी स्नेह से भरे बंधन किसी पर लादे नहीं जा सकते हैं। जरूरी है कि हम हर रिश्ते में ठीक-ठाक स्पेस बनाने की कोशिश करें। संतुलित कम्युनिकेशन रखते हुए रिश्तों को ढील भी दें। ठीक पतंग की डोर की तरह, ताकि वे अपने आसमान में उड़ें, खुलकर जिएं, पर आपसे बंधे भी रहें।

स्नेह की डोर का बंधन जोर-जबरदस्ती और हावी होने से नहीं टिक सकता। इन्हें प्यार और भरोसे से बांधें। रिश्तों को स्ट्रेस फ्री रखना है, तो  पतंग की डोर-सी ढील तो देनी ही होगी, ताकि आपके अपने जिंदादिली, मन के जुड़ाव और खुशी के साथ अपने-अपने आसमान में उड़ें। आपका स्नेह उन्हें और ऊंची उड़ान भरने का जज्बा दे।

काटें नहीं, साथ दें  
किसी की कही बात हो या लिया गया फैसला, उसकी काट न तलाशें। आपको कोई गलती नजर आती है, तो आप अपना पक्ष्य आराम से रख सकती हैं। अपने हों या पराए, उन्हें गलत साबित करने की कोशिश में समय जाया करने की बजाय उस परिस्थिति में अपनी बात सही ढंग से रखें। ख्याल रहे कि घर हो या दफ्तर आपको किसी को कमतर साबित नहीं करना है। यह होड़ ही गलत है नकारात्मक और ईर्ष्या से भरी।

आपको तो अपनी पॉजिटिव बातों और व्यवहार से खुद की पर्सनैलिटी का सकारात्मक पहलू सामने रखना है। समय रहते समझिए कि रिश्ते आपस में पेच लड़ाने के लिए नहीं, बल्कि साथ-साथ उड़ान भरने और जिंदादिली से जीने के लिए होते हैं। हर रिश्ते में  सहयोगी रवैया ही काम आता है। न कि एक-दूजे को कमतर महसूस करवाने वाला व्यवहार। 

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