प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत उच्च विकास और निम्न मुद्रास्फीति का एक मॉडल है। उन्होंने कहा कि इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की 8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर दर्शाती है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास इंजन बन रहा है। पीएम मोदी ने कहा, ‘‘भारत का आत्मविश्वास ‘उपनिवेशवाद की मानसिकता’ से हिल गया था, लेकिन अब हम इससे आगे बढ़ रहे हैं।’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे समय में जब दुनिया अनिश्चितताओं से भरी है, भारत एक अलग ही रूप में नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में हो रहे बदलाव सिर्फ संभावनाओं के बारे में नहीं हैं, बल्कि बदलती सोच और दिशा की गाथा हैं।
आत्मविश्वास से भरा हुआ है भारत
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां 21वीं सदी का एक-चौथाई हिस्सा बीत चुका है। दुनिया कई उतार-चढ़ाव जैसे- वित्तीय संकट, वैश्विक महामारी, प्रौद्योगिकी व्यवधान, युद्ध देख रही है, ये परस्थितियां किसी न किसी रूप में दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि जब पूरा विश्व अनिश्चितताओं से भरा है, ऐसे समय में भारत को एक अलग ही नजरिए से देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ है। जब आर्थिक सुस्ती की बात होती है तो भारत विकास की कहानी लिखता है। जब दुनिया में विश्वास की कमी होती है तो भारत भरोसे का स्तंभ बन रहा है, जब दुनिया टुकड़ों में बंटी है तो भारत सेतु का काम करता है।
8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर सिर्फ एक संख्या नहीं
दूसरी तिमाही में भारत के 8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि दर की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये हमारी गति का प्रतीक है। ये सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि एक मजबूत व्यापक आर्थिक संकेत है। ये संदेश है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास इंजन बन रहा है। उन्होंने बताया कि वैश्विक वृद्धि दर लगभग तीन प्रतिशत है, जबकि जी-7 अर्थव्यवस्थाएं औसतन लगभग 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं।
भारत उच्च विकास और कम मुद्रास्फीति का एक मॉडल है
पीएम मोदी ने कहा, ‘‘ऐसे समय में भारत उच्च विकास और कम मुद्रास्फीति का एक मॉडल है।’’ उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ‘‘एक समय था जब लोग, खासकर हमारे देश के अर्थशास्त्री, उच्च मुद्रास्फीति को लेकर चिंता व्यक्त करते थे, लेकिन वही लोग अब मुद्रास्फीति के कम होने की बात करते हैं।’’ मोदी ने कहा कि भारत की उपलब्धियां साधारण नहीं हैं, ये संख्याओं की बात नहीं है, बल्कि पिछले दशक में आए मूलभूत बदलावों की बात है।
पीटीआई इनपुट्स के साथ



































