
वित्त वर्ष 2025-26 के पहले महीने यानी अप्रैल में भारत का कच्चे तेल का आयात बिल 17% घटकर 10.8 अरब डॉलर रह गया। सरकार के पेट्रोलियम नियोजन और विश्लेषण प्रकोष्ठ के आंकड़ों में इस बात की जानकारी दी गई है। इसमें बताया गया कि देश ने अप्रैल में 21.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो साल-दर-साल 1% की मामूली गिरावट है। कम लागत के कारण आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 40% रही। बढ़ती मांग के बीच, कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता इस महीने के दौरान बढ़कर 90% हो गई, जो अप्रैल 2024 में 88.5% थी।
भारत का रूसी तेल आयात उच्चतम स्तर पर
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, ज्यादा निर्भरता के बावजूद, भारत सुधारों और खोज में बढ़ोतरी के जरिये घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की उम्मीद कर रहा है। केपलर के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में भारत का रूसी तेल आयात मई 2023 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। भारतीय आयात में देश की बाजार हिस्सेदारी अप्रैल में बढ़कर 40% हो गई, जो एक साल पहले 39% थी। अप्रैल के लिए रूसी तेल आयात का अनुमान 2.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन है।
रूसी तेल बाकी के तेलों के मुकाबले 3-8 डॉलर प्रति बैरल सस्ते
एनालिस्ट का कहना है कि रूसी बैरल, लैंडेड-कॉस्ट के आधार पर पश्चिम एशियाई या अमेरिकी ग्रेड की तुलना में 3-8 डॉलर प्रति बैरल सस्ते हैं। आपको बता दें, रूस आज भी टॉप सप्लायर बना हुआ है। लेकिन वैश्विक अनिश्चितता और रूस पर जारी अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच कई भारतीय तेल और गैस कंपनियों ने तेल सप्लाई के लिए दूसरे सोर्स की भी तलाश शुरू कर दी है। इसमें अमेरिका पर भी नजर है।
हालांकि, कहा यह भी जा रहा है कि अमेरिका में तेल उत्पादन में गिरावट की चिंताओं के कारण, अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने की भारत की योजना को झटका लग सकता है। कहा जा रहा है कि वैश्विक तेल मांग में कमी से इस साल के आखिर में अमेरिकी तेल उत्पादन वृद्धि में बाधा आने की उम्मीद है और 2026 में उत्पादन में वार्षिक गिरावट हो सकती है।