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Ruble-Rebound : रूबल के सामने फेल हुए अमेरिकी प्रतिबंध, क्या पुतिन ने भारत को किया हथियार के रूप में इस्तेमाल ?

प्रतिबंधों और चुनौतियों के बावजूद Ruble इस साल Dollar के मुक़ाबले दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है।

Written By: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published : Sep 17, 2022 19:53 IST, Updated : Sep 17, 2022 20:30 IST
Ruble Vs Dollar- India TV Paisa
Photo:FILE Ruble Vs Dollar

Highlights

  • डॉलर के मुक़ाबले Ruble दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है
  • पाउंड यूरो लेकर भारतीय रुपया लुढ़क रहा है, वहीं रूसी रूबल नए शिखर पर
  • 12 मार्च को रूसी रूबल की कीमत 134 तक गिर गई

Ruble-Rebound : इस साल 24 फरवरी को यूक्रेन के साथ शुरू हुए युद्ध के बाद से रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से 1300 से भी ज्यादा प्रतिबंध थोपे जा चुके हैं। इन प्रतिबंधों के पीछे पश्चिम के देशों की मंशा थी रूस को कमजोर करने की। शुरुआती दौर में प्रतिबंध का असर दिखा लेकिन जल्द ही पासा पलट गया। 

प्रतिबंधों और चुनौतियों के बावजूद इस साल डॉलर के मुक़ाबले दुनिया की सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है। आज रूसी रूबल दुनिया की सबसे मजबूत मुद्रा बन कर उभर चुकी है। डॉलर के सामने जहां पाउंड यूरो लेकर भारतीय रुपया लुढ़क रहा है, वहीं रूसी रूबल नए शिखर पर है। 

 

Ruble

Image Source : FILE
Ruble

 

बीते साल से भी मजबूत हुआ रूबल

रूस दुनिया का प्रमुख तेल और गैस उत्पादक देश है। ऐसे में जब यूक्रेन युद्ध की शुरूआत के बाद पश्चिमी देशों ने सबसे पहले रूसी तेल और गैस पर प्रतिबंध लगाए, साथ ही रूसी रूबल को अंततराष्ट्रीय स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम से बाहर कर दिया। अचानक हुए प्रहार से रूसी मुद्रा भरभरा कर गिर गई। युद्ध से ठीक पहले 19 फरवरी को जहां 1 डॉलर के सामने रूसी मुद्रा की कीमत 77 रूबल थी। वहीं युद्ध शुरू होने के ठीक बाद 25 फरवरी को 83 रूबल हो गई। 12 मार्च को रूसी रूबल की कीमत 134 तक गिर गई। लेकिन जुलाई आते आते रूबल ने शानदार रिकवरी की और चढ़कर अपने उच्चतम स्तर 52 रूबल तक आ गई। आज 17 सितंबर को इसकी कीमत 59 रूबल है जो कि बीते साल 17 सितंबर के भाव 72 रूबल से करीब 20 प्रतिशत कम है। 

रूस के इन कदमों को पश्चिम ने बताया चालाकी

प्रतिबन्ध लगते ही रूस सबसे पहले विदेशी मुद्रा भंडार बचने की कवायत शुरू कर दी। रूस ने अपने लोगों पर विदेशी मुद्रा खरीदने के लिए रूबल खर्च करने पर रोक लगा दी। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने रूस के इस कदम को चालाकी करार दिया। रूस के इन कदमों की वजहों से उसके विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा फ्रीज़ हो गया। लेकिन इसी कारण रूबल चढ़ा, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि एक वक़्त में अर्जेंटीना और तुर्की जैसे देशों को भी ऐसे ही कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। 

रूबल में कारोबार से मिली कामयाबी

अपनी करेंसी को सुरक्षित करने के लिए रूस ने एक और कदम उठाया। रूस से प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से मांग की गई कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें। रूस की सरकारी कंपनी गैज़प्रोम के सबसे बड़े खरीदारों में से एक जर्मनी ने पहले ही रूबल में भुगतान को लेकर अपनी रज़ामंदी दे दी। इसका मतलब था कि खरीदारों को ज़्यादा रूबल की ज़रूरत पड़ने वाली थी। इससे रूबल की डिमांड बढ़ी और इसकी कीमत बढ़ने लगी

क्या पुतिन ने भारत का किया इस्तेमाल 

जिस वक्त युद्ध शुरू हुआ तब कच्चा तेल 85 डॉलर के आसपास था, लेकिन युद्ध के पहले कुछ दिनों में ही कच्चा तेल 140 डॉलर तक जा पहुंचा। यह कदम भारत जैसे देशों के लिए मुश्किल भरा था जिन्हें भारी मात्रा में एनर्जी की जरूरत है। महंगाई की मार झेल रहे भारत को तब रूस से सस्ते तेल का आयात करने का मौका मिला। लेकिन इस सस्ते तेल में फायदा रूस का भी था। क्योंकि दुनिया से अलग थलग पड़े रूस को जहां तेल का खरीदार मिला वहीं पेमेंट रूबल में होने के कारण मुद्रा को मजबूत बनाने में मदद मिली। कुछ आलोचक इसे रूसी चाल और भारत को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कहा गया, लेकिन वास्तव में ये सस्ता तेल भारत के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ है। 

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