टाटा ग्रुप की कंपनियों को कंट्रोल करने वाले टाटा ट्रस्ट के अलग-अलग ट्रस्टियों के बीच जारी खींचतान के बीच शुक्रवार को ट्रस्ट के बोर्ड की एक मीटिंग आयोजित की गई। इस मीटिंग में ट्रस्ट से जुड़े रोजमर्रा के मुद्दों पर चर्चा की गई और किसी भी विवादास्पद विषय को नहीं उठाया गया। एक सूत्र ने कहा, "ये एक सामान्य बैठक थी और इसमें कोई भी विवादास्पद मुद्दा नहीं उठाया गया। बैठक में अलग-अलग अस्पतालों और ग्रामीण विकास परियोजनाओं के बारे में प्रस्तुतियां दी गईं।" सूत्र ने यह भी बताया कि बोर्ड मीटिंग में पिछले किसी विवाद का उल्लेख नहीं किया गया। ये मीटिंग टाटा ट्रस्ट के टॉप लीडरशिप के मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात के बाद हुई है।
मंगलवार को केंद्रीय मंत्रियों के साथ हुई थी बैठक
टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने मंगलवार को अमित शाह और निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी। संपर्क करने पर टाटा ट्रस्ट ने मीटिंग के ब्योरे को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि, अलग-अलग रिपोर्ट में कहा गया है कि मीटिंग का एजेंडा मुख्य रूप से नियमित परमार्थ गतिविधियों और स्वास्थ्य देखभाल परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रस्तावों की समीक्षा पर केंद्रित था। ये मीटिंग टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी के बीच बोर्ड नियुक्तियों और प्रशासन संबंधी विवाद के बीच हुई है, जो लगभग 180 अरब डॉलर के समूह के कार्यों को प्रभावित कर सकता है।
दो गुटों में बंट गया है टाटा ट्रस्ट
सूत्रों के अनुसार, टाटा ट्रस्ट इस समय दो गुटों में बंट गया है। एक गुट नोएल टाटा के साथ है। नोएल टाटा को रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। दूसरे गुट में चार ट्रस्टी शामिल हैं जिनका नेतृत्व मेहली मिस्त्री कर रहे हैं। उनका संबंध शापूरजी पलोनजी परिवार से है। शापूरजी पलोनजी परिवार टाटा संस में लगभग 18.37 प्रतिशत हिस्सा रखता है। रिपोर्ट के मुताबिक, मेहली मिस्त्री को ये लगता है कि उन्हें महत्वपूर्ण मामलों से बाहर रखा गया है। सूत्रों के मुताबिक, विवाद का मुख्य कारण टाटा संस के निदेशक मंडल में नियुक्तियां हैं। टाटा संस ही 156 साल पुराने ग्रुप को कंट्रोल करने वाली प्रोमोटर कंपनी है।



































