Saturday, December 14, 2024
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गन्ना किसानों को मिलेगा लाभ, चीनी उद्योग को 8000 करोड़ रुपए का राहत पैकेज मंजूर

चीनी की कम कीमतों की वजह से घाटे की मार झेल रहे देश के चीनी उद्योग की मदद के लिए सरकार आगे आई है, सरकार ने चीनी उद्योग की मदद के लिए 8000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज को मंजूरी दे दी है, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बुधवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में राहत पैकेज को मंजूरी दी गई है। इस पैकेज की मदद से चीनी उद्योग को गन्ना किसानों का कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी जिससे गन्ना किसानों को लाभ पहुंचेगा।

Reported by: Manoj Kumar @kumarman145
Updated : June 06, 2018 13:53 IST
Cabinet approves Rs 8000 cr package to sugar industry - India TV Paisa

Cabinet approves Rs 8000 cr package to sugar industry 

नई दिल्ली। चीनी की कम कीमतों की वजह से घाटे की मार झेल रहे देश के चीनी उद्योग की मदद के लिए सरकार आगे आई है, सरकार ने चीनी उद्योग की मदद के लिए 8000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज को मंजूरी दे दी है, सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बुधवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में राहत पैकेज को मंजूरी दी गई है। इस पैकेज की मदद से चीनी उद्योग को गन्ना किसानों का कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी जिससे गन्ना किसानों को लाभ पहुंचेगा।

कैबिनेट ने राहत पैकेज के अलावा 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक तैयार करने को भी मंजूरी दी है, इसके अलावा चीनी का एक्स मिल भाव 29 रुपए प्रति किलो फिक्स करने और इथनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मिलों को 4500 करोड़ रुपए के कर्ज को भी मंजूरी दी है।

देश में चीनी के ज्यादा उत्पादन की वजह से इसकी कीमतें बहुत नीचे आ गई हैं और चीनी मिलों को लागत का भी भाव नहीं मिल पा रहा है, ऐसे में चीनी उद्योग को भारी घाटा उठाना पड़ रहा है, घाटे की वजह से चीनी मिलें किसानों से खरीदे गए गन्ने की कीमत चुकाने में भी असमर्थ नजर आ रही हैं और मिलों ने सरकार से मदद मांगी थी। मिलों की मांग देखते हुए सरकार ने 8000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज को मंजूरी दे दी है।

इस साल देश में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, देश में चीनी मिलों के संगठन इंडियन सुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के मुताबिक पूरे सीजन का कुल उत्पादन 320 लाख टन तक पहुंच सकता है। इसके मुकाबले खपत की बात करें तो लगभग 250 लाख टन रहती है, ऐसे में ज्यादा उत्पादन की वजह से भाव पर दबाव आया है जिस वजह से मिलों को घाटा हो रहा था और वह किसानों के बकाए का भुगतान करने में असमर्थन नजर आ रहीं थी। 

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