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मुश्किल भरी है हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की राह: राजीव सिंह

फाइनेंशियल कंपनी कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के सीईओ राजीव सिंह का कहना है कि देश में हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की राह आगे काफी मुश्किल भरी है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : November 22, 2018 13:59 IST
housing finance - India TV Paisa
Photo:HOUSING FINANCE

housing finance

नई दिल्‍ली। फाइनेंशियल कंपनी कार्वी स्‍टॉक ब्रोकिंग के सीईओ राजीव सिंह का कहना है कि देश में हाउसिंग फाइनेंस सेक्‍टर की राह आगे काफी मुश्किल भरी है। उन्‍होंने हाउसिंग सेक्‍टर पर अपने विचार साझा किए हैं। उन्‍होंने कहा कि पिछले दिनों विभिन्न आर्थिक कारकों की वजह से भारतीय बाजार में भारी हाहाकार रहा है। इस दरम्यान हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। देश के इस सेक्टर में ऐसे कई सारथी मौजूद हैं जिनमें इसकी रफ्तार को कई गुना तक बढ़ाने क्षमता है, लेकिन अभी उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। मौजूदा परिदृश्य में देखें तो इस क्षेत्र की समस्या जल्द दूर होने वाली नहीं है। इसके आगे का सफर अभी कांटों भरा साबित हो सकता है।

दरअसल, वित्त से जुड़ी कंपनियों का कारोबार इसकी साख से जुड़ा होता है। इस साख को बनाने में  बरसों का समय लग जाता है, जबकि मामूली सी चूक से यह तार-तार हो जाती है। पिछले दिनों कुछ कंपनियों के साथ भुगतान में चूक के कारण ही इन्हें भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। होम फाइनेंस कंपनियों का मुख्य कारोबार बैंकों और बांड के जरिए पूंजी जुटाकर जरूरतमंदों को कर्ज बांटना होता है। इन कंपनियों की बैंकों की तुलना में पहुंच ज्यादा मजबूत होती है। इसीलिए इनका कारोबार तेजी से बढ़ता है। व्यापक नेटवर्क की वजह से इनका कर्ज वसूली का अनुपात भी बेहतर होता है। अब इनका कारोबार बुरी तरह से कुंद हो गया है जबकि होमलोन के कारोबार में वृद्धि की भारी संभावनाएं हैं। कुछ ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से मकानों की दबी हुई मांग बढ़ती जा रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में होमलोन का योगदान महज छह प्रतिशत है, जबकि घरेलू क्षेत्र का सकल कर्ज 11 प्रतिशत के स्तर पर है। चीन का घरेलू क्षेत्र के सकल कर्ज का योगदान 48 प्रतिशत,  इंडोनेशिया का 17 प्रतिशत और थाईलैंड के 68 प्रतिशत की तुलना में यह काफी कम है। इसी तरह लोग अपनी बचत दर की क्षमता के मुकाबले सिर्फ 11 प्रतिशत ही कर्ज ले रहे हैं, जो जीडीपी के 16.5 की औसत क्षमता की तुलना में काफी कम है। सकल कर्ज में होमलोन के अलावा क्रेडिट कार्ड कर्ज, वाहन कर्ज इत्यादि शामिल होते हैं।

अनुमानों के अनुसार भारत में 1.9 करोड़ घरों की कमी है तथा वर्ष 2050 तक देश के शहरी क्षेत्र में 40 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे। इससे साफ जाहिर होता है कि घरों की मांग और शहरीकरण होमलोन के कारोबार को कैसे बढ़ा सकते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि प्रॉपर्टी का कारोबार नोटबंदी और रीयल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) लागू होने से काफी प्रभावित हुआ है लेकिन इन सुधारों का नकारात्मक असर अब खत्म हो चुका है। इससे यह क्षेत्र फिर से पटरी पर आ रहा है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबित नोटबंदी के बाद बिक्री और लॉन्‍च क्रमश: 1.24 लाख और 92,000 इकाइयों के उच्चतम स्तर पर हैं, जो होमलोन की मांग में इजाफा करेंगे। होमलोन प्रदान करने वाली कंपनियों को दो श्रेणियों- बैंक और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) में बांटा जा सकता है। इस क्षेत्र में बैंक पांरपरिक रूप से होमलोन मुहैया करा रहे हैं, जबकि एनबीएफसी विशेष रूप से आवास वित्त कंपनियों (एचएफसी) ने भी अब अपनी अच्छी जगह बना ली है।

होमलोन के बाजार में एचएफसी अपनी हिस्सेदारी तेजी से बढ़ा रही हैं लेकिन वित्तीय तरलता की कमी और संपत्तियों की गुणवत्ता इनकी प्रमुख चिंताएं हैं। ये कंपनियां ग्राहकों को लंबी अवधि का कर्ज देती हैं लेकिन इन्हें वाणिज्यिक पत्रों जैसे विकल्पों के जरिये अल्प अवधि के लिए ही पूंजी मिल पाती है। जाहिर है इन्हें लगातार पुनर्वित्त की जरूरत पड़ती है। तंत्र में तरलता की कमी की स्थिति में इनका मार्जिन काफी कम हो जाता है। इससे फंसा कर्ज (एनपीए) बढ़ने और भुगतान में चूक की आशंका बढ़ जाती है। पिछले दिनों आरबीआई की नीतिगत दरों में वृद्धि के एचएफसी के मार्जिन पर दबाव बढ़ रहा है। आईएलएंडएफएस के भुगतान में चूक और म्यूचुअल फंडों के ऊंचे रिटर्न की वाणिज्यिक प्रपत्रों की बिक्री की घटनाओं से यह दबाव और बढ़ गया है।

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