पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने वध के लिए गायों को ले जाने के आरोपी नूंह निवासी को दी गई अग्रिम जमानत खारिज करते हुए कहा कि गाय पूजनीय है और एक ‘बड़ी आबादी वाले समूह’ की आस्था को ठेस पहुंचाने वाले कृत्य शांति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। आसिफ और दो अन्य लोगों पर गायों को वध के लिए राजस्थान ले जाने के आरोप में इस साल अप्रैल में हरियाणा गोवंश संरक्षण एवं गोसंवर्धन अधिनियम, 2015 तथा क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
समाज में गाय की विशिष्ट स्थिति
न्यायमूर्ति संदीप मौदगिल ने इस महीने की शुरुआत में एक आदेश में कहा, ‘वर्तमान अपराध, अपने कानूनी निहितार्थों के अलावा भारतीय समाज में गाय की विशिष्ट स्थिति को देखते हुए भावनात्मक और सांस्कृतिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है।’ यह आदेश सोमवार को सार्वजनिक किया गया।
सार्वजनिक शांति पर डाल सकते हैं गंभीर प्रभाव
कोर्ट ने कहा, ‘यह अदालत इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं रह सकती कि हमारे जैसे बहुलवादी समाज में कुछ कृत्य जो वैसे तो निजी होते हैं लेकिन तब सार्वजनिक शांति पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं जब वे किसी बड़ी आबादी वाले समूह की गहरी आस्थाओं को ठेस पहुंचाते हैं।’
भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है गाय
न्यायाधीश ने कहा कि गाय न केवल पूजनीय है, बल्कि भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग भी है। सरकारी वकील ने अपनी दलील में कहा कि याचिकाकर्ता गोहत्या के अपराध में कथित तौर पर सक्रिय रूप से शामिल था इसलिए निष्पक्ष और प्रभावी जांच के लिए उससे हिरासत में पूछताछ जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि संविधान केवल अमूर्त अधिकारों की रक्षा नहीं करता बल्कि एक न्यायपूर्ण, करुणामय और एकजुट समाज के निर्माण का प्रयास भी करता है।
नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था की मूल भावना पर प्रहार
आदेश में कहा गया, ‘भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत प्रत्येक नागरिक पर यह दायित्व है कि वह सभी जीवित प्राणियों के प्रति करुणा दिखाए। इसी संदर्भ में गोहत्या का कथित कार्य जिसे बार-बार, जानबूझकर और उकसावे की नीयत से अंजाम दिया गया, संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक व्यवस्था की मूल भावना पर प्रहार करता है।’
याचिकाकर्ता ने पहली बार अपराध नहीं किया- कोर्ट
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने पहली बार अपराध नहीं किया है। उस पर पहले भी इसी प्रकार के अपराधों से शामिल होने के आरोप वाली तीन अन्य प्राथमिकियां हैं।’
कोर्ट के आदेश में कहा गया, ‘उन मामलों में याचिकाकर्ता को न्यायिक विश्वास के तौर पर जमानत का लाभ दिया गया था लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उसका सम्मान करने के बजाय दुरुपयोग किया गया।’ इसमें कहा गया कि अग्रिम जमानत एक विवेकाधीन राहत है जिसका उद्देश्य निर्दोष व्यक्तियों को जानबूझकर या मनमानी गिरफ्तारी से बचाना है न कि उन लोगों को पनाह देना जो बार-बार कानून का उल्लंघन करते हैं। (भाषा के इनपुट के साथ)