Saturday, December 14, 2024
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Pitru Paksha 2024: 17 सितंबर से शुरू हो रहे हैं पितृ पक्ष, क्यों जरूरी होता पितरों का श्राद्ध या पिंडदान? ज्योतिष से जानें महत्व

Pitru Paksha 2024: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए कि पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान या श्राद्ध करना क्यों जरूरी होता है।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Vineeta Mandal Published : Sep 16, 2024 6:00 IST, Updated : Sep 16, 2024 6:00 IST
Pitru Paksha 2024- India TV Hindi
Image Source : FILE IMAGE Pitru Paksha 2024

Pitru Paksha 2024: भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से सोलह दिवसीय श्राद्ध प्रारंभ होते हैं। पूर्णिमा की उदयातिथि 18 सितंबर को होगी, लेकिन बुधवार को पूर्णिमा सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर समाप्त हो जाएगी और श्राद्ध दोपहर में किया जाता है। लेकिन 17 सितंबर को दोपहर के समय पूर्णिमा है, इसलिए पूर्णिमा तिथि वालों का श्राद्ध मंगलवार को किया जाएगा, जबकि बुधवार के दिन प्रतिपदा तिथि वालों का श्राद्ध किया जाएगा। दरअसल, 18 सितंबर को दिन दोपहर के समय प्रतिपदा तिथि रहेगी। ये सोलह दिवसीय श्राद्ध 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर, बुधवार के दिन आश्विन महीने की अमावस्या को समाप्त होंगे। 

बता दें कि श्राद्ध को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी जाना जाता है।  17 सितंबर, मंगलवार को उन लोगों का श्राद्ध किया जाएगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। इसे प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध भी कहते हैं। जिनका स्वर्गवास जिस तिथि को हुआ हो, श्राद्ध के इन सोलह दिनों के दौरान उसी तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है। आइए अब आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं कि पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करना क्यों महत्वपूर्ण होता है।

श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव। हमारे भीतर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। आप दूसरे तरीके से भी इस बात को समझ सकते हैं। पिता के जिस शुक्राणु के साथ जीव माता के गर्भ में जाता है, उसमें 84 अंश होते हैं, जिनमें से 28 अंश तो शुक्रधारी पुरुष के खुद के भोजनादि से उपार्जित होते हैं और 56 अंश पूर्व पुरुषों के रहते हैं। उनमें से भी 21 उसके पिता के, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामाह के, 6 अंश चतुर्थ पुरुष के, 3 पंचम पुरुष के और एक षष्ठ पुरुष के होते हैं। इस तरह सात पीढ़ियों तक वंश के सभी पूर्वज़ों के रक्त की एकता रहती है। लेकिन श्राद्ध या पिंडदान मुख्यतः तीन पीढ़ियों तक के पितरों को दिया जाता है। 

पितृपक्ष में किये गए कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है। साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। हमारे धर्म-शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा को उसके कर्मानुसार स्वर्ग-नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीर्ण होने पर वह पुनः मृत्यु लोक में आ जाती है। मृत्यु के पश्चात पितृयान मार्ग से पितृलोक में होती हुई चन्द्रलोक जाती है। चन्द्रलोक में अमृतत्व का सेवन करके निर्वाह करती है और ये अमृतत्व कृष्ण पक्ष में चन्द्रकलाओं के साथ क्षीर्ण पड़ने लगता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को आहार पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। ये आहार श्राद्ध के माध्यम से पूर्वजों को पहुंचाया जाता है।  पूर्णिमा के दिन श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाले को और उसके परिवार को अच्छी बुद्धि, पुष्टि, धारण करने की शक्ति, पुत्र-पौत्रादि और ऐश्वर्य की प्राप्त होती है।

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)

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