Thursday, April 25, 2024
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चीन में ‘‘वैश्विक महामारी फैलाने में सक्षम” स्वाइन फ्लू वायरस की नई प्रजाति की पहचान

चीन में सुअरों के बीच पाई जा रही फ्लू वायरस की नई प्रजाति शूकर उद्योग से जुड़े कर्मचारियों को तेजी से प्रभावित कर रही है और इसमें वैश्विक महामारी फैलाने वाले विषाणु जैसी सारी अनिवार्य विशेषताएं हैं।

Bhasha Reported by: Bhasha
Published on: June 30, 2020 15:17 IST
चीन में ‘‘वैश्विक...- India TV Hindi
Image Source : AP REPRESENTATIONAL IMAGE चीन में ‘‘वैश्विक महामारी फैलाने में सक्षम” स्वाइन फ्लू वायरस की नई प्रजाति की पहचान

बीजिंग: चीन में सुअरों के बीच पाई जा रही फ्लू वायरस की नई प्रजाति शूकर उद्योग से जुड़े कर्मचारियों को तेजी से प्रभावित कर रही है और इसमें वैश्विक महामारी फैलाने वाले विषाणु जैसी सारी अनिवार्य विशेषताएं हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह अध्ययन 2011 से 2018 के बीच चीन में सुअरों की निगरानी पर आधारित है और इसमें पाया गया कि इंफ्लुएंजा वायरस का यह प्रकार, जिसमें जी4 जीनोटाइप आनुवंशिक सामग्री है, 2016 से सुअरों में प्रमुखता से नजर आ रहा है।

‘चीनी रोग नियंत्रण एवं बचाव केंद्र’ के वैज्ञानिकों समेत अन्य के मुताबिक ये जी4 विषाणु मानव कोशिकाओं में रिसेप्टर अणुओं (प्रोटीन अणु) से बंध जाते हैं और श्वसन तंत्र की बाहरी सतह में अपनी संख्या बढ़ाते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने दिखाया कि नया पहचाना गया यह विषाणु एयरोसोल ट्रांसमिशन के माध्यम से फेरेट (नेवले की जाति का एक जानवर) को संक्रमित कर सकता है जिससे उनमें छींक, खांसी, सांस लेने में तकलीफ जैसे गंभीर लक्षण नजर आने के साथ ही उनके शरीर का 7.3 से 9.8 प्रतिशत द्रवमान के बराबर वजन कम हो सकता है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि इंसान को अन्य ‘मानव इंफ्लुएंजा टीकों’ से मिलने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता जी4 वायरस से नहीं बचा सकती। यह इस बात का संकेत है कि वायरस के प्रति शरीर में पहले से कोई प्रतिरक्षा मौजूद नहीं है। शूकर उद्योग में काम करने वाले कर्मचारियों के खून के नमूनों का आकलन दिखाता है कि करीब 10.4 प्रतिशत लोग जी4 फ्लू वायरस से संक्रमित थे।

अध्ययन के मुताबिक 2016 और 2019 में सामने आए जी4 वायरस संक्रमण के दो मरीजों के पड़ोसी सूअर पालते थे। इससे संकेत मिलता है कि यह वायरस सुअरों से मनुष्य में फैल सकता है और इससे गंभीर संक्रमण और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। यह अध्ययन ‘पीएनएएस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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