Wednesday, May 01, 2024
Advertisement

अरुणाचल प्रदेश के तवांग पर गंदी निगाहें डाले बैठा है चीन, इतिहास में छिपी है इसकी वजह, भारत संग जंग की तैयारी कर रहे शी जिनपिंग!

India China Tawang: चीन ने एक बार फिर तवांग पर बुरी निगाहें डाली हैं। वह इस जगह को काफी समय से कब्जाने की कोशिश करता रहा है।

Shilpa Written By: Shilpa @Shilpaa30thakur
Updated on: December 13, 2022 14:49 IST
तवांग पर कब्जा करना चाहता है चीन- India TV Hindi
Image Source : TWITTER तवांग पर कब्जा करना चाहता है चीन

धूर्तता और धोखेबाजी में सबसे आगे रहने वाला चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। भारतीय और चीनी सैनिकों की अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास एक जगह पर 9 दिसंबर को झड़प हुई थी, जिसमें ‘‘दोनों तरफ के कुछ जवान मामूली रूप से घायल हो गए।’’ भारतीय सेना ने सोमवार को यह जानकारी दी। ये झड़प ऐसे वक्त पर हुई है, जब पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्षों के बीच 30 महीने से अधिक समय से सीमा गतिरोध जारी है। भारत और चीन के बीच शुक्रवार को संवेदनशील क्षेत्र में एलएसी (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) पर तवांग के यांग्त्से के समीप झड़प हुई। 

एक सूत्र ने संकेत दिया कि इसमें 200 से अधिक चीनी सैनिक शामिल थे और वे डंडे और लाठियां लिए हुए थे और चीनी पक्ष की ओर घायलों की संख्या अधिक हो सकती है। लेकिन इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं है। चीनी सैनिकों ने ईस्टर्न सेक्टर में अरुणाचल के तवांग में घुसने की कोशिश की थी, लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हो पाए। ऐसे में तवांग के बारे में जान लेते हैं कि चीन को उसमें इतनी दिलचस्पी क्यों है? दरअसल ऐसा कहा जाता है कि तवांग चीन की वो दुखती रग है, जो उसे हमेशा परेशान करती रहती है। यांग्त्से तवांग का वो हिस्सा है, जो 17,000 फीट की ऊंचाई पर है, और चीन की 1962 युद्ध से ही इस पर बुरी निगाहें हैं।

चीन 1962 युद्ध से ही तवांग के यांग्त्से पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। सेना के सूत्रों के अनुसार, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) हमेशा से ही यांग्त्से को निशाने पर लेना चाहती है। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि पूरे तवांग या फिर यांग्त्से से चीन को क्या चाहिए, आखिर वहां ऐसा क्या है? 

 
इतिहास से जुड़ा है गहरा कनेक्शन

तवांग पर चीन की महत्वाकांक्षा को समझने के लिए उस वक्त में लौटना होगा, जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। जब तक भारत पर अंग्रेजों का राज था, तब तक चीन मैकमोहन रेखा को लेकर पूरी तरह खामोश था, लेकिन जैसे ही 1947 में अंग्रेज गए, चीन बेचैन हो उठा। उसकी नजर अरुणाचल प्रदेश पर टिकी हुई है, जिसे वह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। इतिहास में ऐसी कोई घटना या किस्सा नहीं है जो यह साबित कर सके कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत या चीन का हिस्सा है। फिर भी बेशर्म चीन हमेशा अरुणाचल प्रदेश को अपने और भारत के बीच तनाव का मुद्दा बनाता रहा है। 1952 में, जब बांडुंग सम्मेलन हुआ, तब चीन पंचशील सिद्धांतों पर सहमत हुआ था। लेकिन 1961 से चीन अरुणाचल प्रदेश पर आक्रामक बना हुआ है।

शी जिनपिंग को यांग्त्से क्यों चाहिए?

अब बात करते हैं यांग्त्से की, यह जगह उत्तर-पूर्व दिशा में तवांग से 35 किलोमीटर दूर है। पिछले साल नवंबर में भी यहां चीनी सैनिकों के साथ झड़प की खबरें आई थीं। यांग्त्से मार्च के महीने तक बर्फ से ढका रहता है। यह स्थान भारतीय सेना के लिए सामरिक महत्व रखता है। जानकारी के मुताबिक, इस इलाके के आसपास भारत और चीन के तीन से साढ़े तीन हजार सैनिक तैनात हैं। इसके साथ ही ड्रोन से भी इसकी निगरानी की जाती है। दोनों ओर से सड़कों का अच्छा नेटवर्क है और एलएसी के करीब सैनिक गश्त करते रहते हैं। यांग्त्से वह जगह है, जहां से चीन पूरे तिब्बत पर नजर रख सकता है। इसके साथ ही उसे एलएसी पर जासूसी करने का मौका मिल सकता है।

क्या तवांग में भी हुई थी जंग?

भारत और चीन के बीच पहला युद्ध 1962 में हुआ था और इस युद्ध में चीन ने तवांग को हड़पने की पूरी कोशिश की थी। तवांग की लड़ाई आज भी रौंगटे खड़े कर देने वाली है। ऐसा कहा जाता है कि उस लड़ाई में भारत के 800 सैनिक शहीद हुए थे और 1000 सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया था। चीन पिछले एक दशक से सीमा के पास कई तरह के निर्माण कार्य कर रहा है। हाईवे से लेकर मिलिट्री पोस्ट, हेलीपैड और मिसाइल लॉन्चिंग साइट तक सब कुछ उसने तैयार किया है। चिंता की बात ये है कि यह सब तवांग के पास है।

पहले दलाई लामा पहुंचे थे यहां

10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित तवांग वह स्थान है, जहां तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा सबसे पहले पहुंचे थे। अप्रैल 2017 में जब दलाई लामा कई सालों के बाद तवांग पहुंचे तो चीन का खून खौल उठा। चीन दलाई लामा को अलगाववादी नेता मानता है। पिछले साल जुलाई में जिनपिंग चुपचाप तवांग के करीब स्थित न्यिंगची गए थे। वह यहां पहुंचने वाले चीन के पहले नेता थे। न्यिंगची तिब्बत का एक शहर है और अरुणाचल प्रदेश से सटा हुआ है। इसे तिब्बत का स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है। तवांग पर कब्जा करने का मतलब पूरे पूर्वी हिस्से पर कब्जा करना है, चीन इस बात को बखूबी जानता है और इसीलिए तवांग पर बुरी निगाहें डाले हुए है।
 
गलवान के बाद लगातार कर रहे जंग की अपील

साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद जिनपिंग ने कहा था कि चीनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने सैनिकों से युद्ध की तैयारी में अपना सारा दिमाग और ऊर्जा लगाने को कहा है। हाल ही में हुई राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भी जिनपिंग ने युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा है। जानकारों के मुताबिक, चीन की अर्थव्यवस्था इस समय मुश्किल दौर से गुजर रही है। जीरो कोविड नीति के सख्त नियमों के कारण जनता पहले ही जिनपिंग का विरोध कर रही है। अपनी सत्ता को बरकरार रखने की चाहत रखने वाले जिनपिंग देश की मुश्किलों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में एलएसी पर भारत को उलझाने के अलावा उन्हें कोई बेहतर विकल्प नहीं मिल सकता है।

लगातार आक्रामक हो रहे शी जिनपिंग

चीन के राष्ट्रपति शी जिनिपंग के बयानों पर गौर करें, तो पता चलेगा कि वह लगातार आक्रामक हो रहे हैं। साल 2013 में जब जिनपिंग ने चीन के राष्ट्रपति का पद संभाला था, तब उन्होंने तिब्बत का दौरा किया था। जब वे वर्ष 2011 में उपराष्ट्रपति थे, तब उन्होंने हमेशा भारत के साथ सीमा विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की वकालत की थी। लेकिन राष्ट्रपति बनते ही उनके सुर बदल गए। इस साल अक्टूबर में जब चीन की नेशनल कांग्रेस का आयोजन हुआ था, तो जिनपिंग ने एलएसी के अनुभव वाले तीन जनरलों को पीएलए के शीर्ष पदों से नवाजा था।

Latest World News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Asia News in Hindi के लिए क्लिक करें विदेश सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement