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छत्तीसगढ़: गांव में जल-जगार, सूखे से मिली निजात, धमतरी की जल-संरक्षण के रूप में बन रही पहचान

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के प्रोत्साहन पर धमतरी जिला प्रशासन ने गांव-गांव में जल-जगार अभियान को प्रचारित-प्रसारित किया गया है। इस दौरान भू-जल स्त्रोत को पुन: जीवित करने के लिए अपनाए जा सकने वाले उपायों की जानकारी दी गई है।

Edited By: Dhyanendra Chauhan @dhyanendraj
Published : Sep 29, 2024 18:59 IST, Updated : Sep 29, 2024 19:07 IST
गांव में जल-जगार- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV गांव में जल-जगार

हंसता-खेलता बचपन, खुशियों से भरे खिलखिलाते चेहरे, लहलहाती फसल और हरियाली की चादर ओढ़े जमीन यह नजारा परसतराई में देखने को मिलता है। यह संभव हो पाया है जल-जगार से। जल-जगार ने सूखती जमीन में फिर से जलधारा का प्रवाह कर दिया है। इस बदलाव के पीछे की कहानी को करीब से जानना रोमांचकारी है। यहाँ गाँववालों ने अपनी जमीन को सूखे से बचाने के लिए ऐसे फैसले लिए हैं, जिन्हें सुनकर या जानकार हर कोई ग्रामीणों की जागरूकता की सराहना कर रहा है। अब परसतराई में सिर्फ खरीफ सीजन में ही धान की फसल ली जा रही है, शेष समय में फसल चक्र परिवर्तन को अपनाया गया है।

जल जागरुकता अभियान

वहीं, रेन वाटर हार्वेस्टिंग (वर्षा जल संरक्षण), सोख्ता पीट, पौधरोपण को लेकर भी कार्य किए गए हैं। यह सबकुछ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 22 मार्च 2021 को स्थापित जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल संरक्षण, जल जागरूकता को लेकर चलाए गए अभियान के बाद हुआ है। वहीं छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय द्वारा जल जगार को प्रोत्साहित करने का परिणाम परसतराई समेत धमतरी जिला के कई गाँवों में देखने को मिल रहा है। कुछ समय पहले तक गिरते भू-जल स्तर की जगह पर धमतरी में भूमिगत जल स्त्रोतों के अलावा अन्य जल स्त्रोतों में जल की मात्रा लगातार बढ़ रही है। ऐसे में धमतरी छत्तीसगढ़ की जल-संरक्षण राजधानी के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। यही कारण है कि जल-जगार वाले धमतरी को अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन के आयोजन के लिए चुना गया है।  

ग्रामीणों को होने लगी थी पानी की किल्लत

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में एक ऐसा गाँव जो अब दूसरों के लिए मिसाल बन रहा है। इस गाँव ने सूखे की समस्या के निपटने के लिए नए प्रयास किए हैं। जहाँ अब सिर्फ़ खरीफ़ सीजन में ही धान उगाई जाती है। वह गाँव जो रबी सीजन में दूसरी और तीसरी फसल के रूप में चना, मूंग, उड़द, तिल, सरसों जैसे दलहन-तिलहन फसलों का उत्पादन कर अपनी कृषि लागत कम कर रहा है तो दूसरी ओर खाद्य सुरक्षा के साथ आय बढ़ा रहा है। धमतरी जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत परसतराई स्थित है। 300 घरों और 1435 जनसंख्या को समाहित किए परसतराई कुछ समय पहले तक सूखे की समस्या से जूझ रहा था। लगातार गिरते भू-जल स्तर से निस्तारी तो दूर पीने के पानी तक की समस्या होने लगी थी। ग्रामीणों को वर्तमान के साथ भविष्य की चिंता सताने लगी थी।

बाहर से मंगाया जा रहा था पानी 

बीते 3-4 बरस से गर्मी के समय में गाँव के 203 पम्पों में से आधे से अधिक पूरी तरह सूख जाते थे। जमीन पर पड़ती दरारें गाँवों वालों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खींच रही थीं। पीने के पानी के लिए बाहर से टैंकर मँगाने की जरूरत पड़ रही थी। तभी जल-जगार ने ग्रामीणों की सोच बदली और हालात बदले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि के आधार पर स्थापित जल शक्ति मंत्रालय के जल-जागरूकता को लेकर चलाए गए अभियान, पर्यावरण संरक्षण के लिए एक पेड़ माँ के नाम अभियान और विष्णु देव सरकार के प्रोत्साहन से परसतराई के ग्रामीणों को हौसला मिला। मुख्यमंत्री साय के प्रोत्साहन पर धमतरी जिला प्रशासन ने गाँव-गाँव में जल-जगार अभियान को प्रचारित-प्रसारित किया। इस दौरान भू-जल स्त्रोत को पुन: जीवित करने के लिए अपनाए जा सकने वाले उपायों की जानकारी दी गई। खासतौर से रेन वाटर हार्वेस्टिंग, पौधरोपण के साथ किसानों को फसल चक्र परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित किया गया। परसतराई ने इन्हें अपनाया और गाँव की तस्वीर व तकदीर बदलने का काम किया। 

ग्रामीणों ने अपने घरों में कराया सोख्ता पीट का निर्माण

जल संरक्षण के लिए जागरूकता के तहत ग्राम पंचायत परसतराई में पंचायत की ओर से कुल 36 सोख्ता पीट का निर्माण कराया जा चुका है। वहीं व्यक्तिगत स्तर पर ग्रामीणों ने अपने घर में 35 सोख्ता पीट का निर्माण कराया है। पंचायत द्वारा ग्राम पंचायत भवन में एक, प्राथमिक शाला भवन में एक और दो आँगनबाड़ी केन्द्रों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किया गया है। 

फसल चक्र परिवर्तन से बदली तस्वीर

जल-जगार को लेकर ग्राम पंचायत परसतराई के सरपंच श्री परमानंद आडिल ने बताया कि गाँव की सीमा में 450 एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें गाँव के लोगों बीते कई वर्षों से तीन फसल लेते रहे हैं। पहले खरीफ के साथ रबी सीजन में लगभग ग्रामीण धान की फसल लेते रहे हैं। धान की फसल को तैयार होने में करीब 120-125 दिन का समय लगता है। धान के फसल लेने की पहली और आखिरी जरूरत आवश्यकतानुसार पानी है। धान की फसल को नियमित रूप से 4 इंच तक खेतों में पानी की जरूरत होती है। अरसे से यह स्थिति रही, इसलिए निरंतर रूप से भू-जल स्तर गिरता गया। कभी 80-100 फीट में पानी मिल जाने वाली जमीन में भू-जल स्तर 250-350 फीट तक जाने लगा। यह सभी के लिए चिंता का विषय था। आजीविका के लिए ज्यादातर ग्रामीण कृषि पर ही निर्भर थे, ऐसे में फसल उत्पादन भी जरूरी था। दूसरी ओर पानी की कमी से धान का उत्पादन भी प्रभावित हो रहा था। ऐसे वक्त में फसल चक्र परिवर्तन करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए ग्रामीणों के बीच कई दौर की बैठकें हुईं। शुरुआत में कुछ ग्रामीण असहमत भी हुए, लेकिन समझाइश के बाद सभी ग्रामीण एकमत होकर फसल चक्र परिवर्तन के लिए तैयार हो गए। कुछ लोगों द्वारा निर्णय के उलट जाने की आशंका को देखते हुए खरीफ के अलावा अन्य सीजन में धान की फसल लेने पर पर प्रति एकड़ 27 हजार रुपये का जुर्माना तय किया गया। वहीं अन्य सीजन में धान की फसल लेकर सिंचाई करने और उसका पानी दलहन-तिलहन की उपज लेने वाले किसी दूसरे किसान के खेत में जाने पर धान की फसल लेने वाले किसान से अतिरिक्त प्रति एकड़ 37 हजार रुपये जुर्माना वसूली का फरमान जारी हुआ। 

धान की फसल को पानी की होती है आवश्यकता

ग्राम सरपंच श्री आडिल ने बताया कि फसल चक्र परिवर्तन इसलिए भी जरूरी था क्योंकि धान की फसल को नियमित रूप से पर्याप्त पानी की आवश्यता होती है, जबकि दलहन-तिलहन के लिए बस शुरुआती समय में जमीन गीली करने की जरूरत पड़ती है। धान की फसल को पककर तैयार होने में जहाँ 110-125 दिन का समय लगता है तो वहीं दलहन-तिलहन 90-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। धान की फसल में कीट के प्रकोप की संभावना अधिक होती है, तो वहीं दलहन-तिलहन के साथ यह समस्या नहीं होती। धान की फसल उत्पादन में लागत खर्च प्रति एकड़ जहाँ लगभग 35 हजार रुपये प्रति एकड़ का होता है, वहीं दलहन-तिलहन में लागत खर्च प्रति एकड़ लगभग 12 हजार रुपये ही आता है। रबी सीजन में धान बाजार में दो हजार रुपये प्रति क्विंटल के लिहाज से बिकता है, जबकि चना का बाजार मूल्य घर बैठे 5300 रुपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। 

फसल खराब होने का जोखिम भी कम हुआ

इस लिहाज धान और दलहन-तिलहन की फसल के बीच प्रति एकड़ उत्पादन लागत और आमदनी की तुलना करें तो धान में प्रति एकड़ 15-25 हजार रुपये तक लाभ होता है तो वहीं दलहन-तिलहन में यह लाभ 25-35 हजार रुपये तक होता है। इस तरह खरीफ सीजन के अलावा रबी व अन्य सीजन में धान के बदले दलहन-तिलहन की फसल लेने पर लागत आधी हो गई, फसल खराब होने का जोखिम भी कम हुआ और लाभ भी दुगुना मिलने लगा। परसतराई में अपनाए गए फसल चक्र परिवर्तन से आए बदलाव की तस्वीर जब सामने आयी तो धमतरी जिले के अन्य गाँव जैसे - रांवा, खरतुली, पोटियाडीह, लोहरसी, बागतरई में भी इन कवायद को अपनाने के लिए मुनादी हो चुकी है। 

यहाँ बेटी और बहू के नाम लगेंगे पेड़ 

देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नयी पहल करते हुए एक पेड़ माँ के नाम अभियान की शुरुआत की। देशभर में लोग इस अभियान से जुड़े। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने एक पेड़ माँ के नाम अभियान को विशेष रूप से प्रोत्साहित करते हुए महतारी वंदन योजना से लाभान्वित होने वाली प्रदेश की 70 लाख से अधिक महिलाओं को इस अभियान से जोड़ा। मुख्यमंत्री श्री साय ने अनेक मंचों से छत्तीसगढ़ के हर रहवासी को कम-से-कम एक पेड़ लगाने का आह्वान किया साथ ही यह भी आह्वान किया कि इस अभियान को छत्तीसगढ़ में लोग अपनी तरह से भी प्रसारित कर सकते हैं। इसी कड़ी में प्रेरित होकर परसतराई के ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से निर्णय लिया है कि गाँव की हर बेटी और बहू के नाम पर भी एक-एक फलदार पेड़ लगाए जाएँगे। इसमें घर में बेटी की संख्या के आधार पर अपनी बेटी के नाम पर पेड़ लगाने की जिम्मेदारी अभिभावक की होगी। बेटी की शादी के वक्त टिकावन (उपहार) में पौधा देने की परम्परा शुरू की जा रही है। वहीं गाँव में नयी बहू के आगमन पर उन्हें उपहार के रूप में एक पौधा जरूर भेंट किया जाएगा और वह पौधा बहू के हाथों से ही रोपित कराया जाएगा। सरपंच श्री परमानंद आडिल अपनी छह बेटियों के नाम पहले ही पेड़ लगा चुके हैं।

गाँव के पुराने के पेड़ों में बाँधा जा रहा रक्षासूत्र 

परसतराई में भू-जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे प्रयासों में गाँव के पुराने पेड़ों का संरक्षण, संवर्धन करना भी शामिल है। इसके लिए ग्रामीण परसतराई गाँव के दायरे में आने वाले सभी पेड़ों की नंबरिंग कर रहे हैं और उन्हें अपने घर के बुजुर्गों व पूर्वजों की तरह मान रहे हैं। इस कड़ी में इन पुराने पेड़ों में रक्षासूत्र बाँधा जा रहा है। इसके पीछे एक मकसद गाँव की युवा व भावी पीढ़ी के मन में पेड़ों के साथ ही बुजुर्गों की सेवा व उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी की भावना को जागृत करना है।

गाँव में प्लास्टिक पर पूरी तरह है प्रतिबंध 

ग्राम पंचायत परसतराई के पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदम में से एक प्लास्टिक के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करना भी शामिल है। ग्राम पंचायत के उप सरपंच श्री थनेश्वर धनकर ने बताया कि लगभग एक वर्ष पूर्व से गाँव में प्लास्टिक के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए हैं। इसके लिए ग्राम पंचायत की ओर से गाँव के हर घर में कपड़े का थैला वितरित किया गया है। इस थैले में स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, जल-जगार संबंधी नारे प्रिंट कराए गए हैं। 

सामूहिक श्रमदान से सफाई  

परसतराई के ग्रामीण अपने गाँव को आदर्श गाँव के रूप में पहचान दिलाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इसके लिए वे मानते हैं कि पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने के साथ ही गाँव में नियमित स्वच्छता भी आवश्यक है। इसके लिए हर रोज हर घर में घर व आसपास की सफाई का ख्याल तो रखा ही जाता है। हर सप्ताह पंचायत प्रतिनिधि गाँव की गलियों, चौक-चौराहों, बाजार, सार्वजनिक स्थलों की सफाई के लिए श्रमदान करते हैं। 

बीते तीन साल से एक भी एफआईआर नहीं  

परसतराई के ग्रामीणों ने न सिर्फ जल-जागरूकता को लेकर कवायद किया है, बल्कि अपराधमुक्त समाज स्थापित कर शांति, सौहार्द्र, सद्भावना का अद्भुत संदेश दिया है। ग्राम सरपंच श्री परमानंद आडिल के अनुसार एक ऐसा भी दौर था जब परसतराई की पहचान धमतरी जिले में अतिसंवेदनशील गाँव के रूप में थी। यहाँ आए दिन आपसी लड़ाई-झगड़े, मारपीट समेत अनेक तरह की आपराधिक गतिविधियाँ होती थीं, लेकिन समय के साथ ग्रामीणों के बीच समन्वय बढ़ा। अब बीते तीन साल से परसतराई में एक भी आपराधिक घटनाक्रम नहीं हुआ है, जिससे विगत तीन साल में परसतराई के नाम एक भी पुलिस में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है।  

शहीद के सम्मान में होती हैं आँखें नम 

परसतराई के गर्व के रूप में गाँव के बेटे स्व. डेमनलाल साहू की शहादत को भी शामिल गया जाता है। भारतीय सेना में जवान डेमनलाल साहू 17 अक्टूबर 2020 को पंजाब में तैनाती के दौरान शहीद हो गए थे। जब शहीद स्व. डेमनलाल साहू को पार्थिव शरीर गाँव पहुँचा तो हर ग्रामीण की आँखें नम थीं। शहीद के अंत्येष्टि का पूरा इंतजाम तब पंचायत की ओर से किया गया। गाँव के बेटे की शहादत के लगभग चार साल बाद तक आज भी हर 17 अक्टूबर के साथ 15 अगस्त (स्वतंत्रता दिवस) और 26 जनवरी को (गणतंत्र दिवस) पर शहीद के सम्मान में हर ग्रामीण की आँखें नम होती हैं।

जल-संरक्षण राजधानी के तौर पर पहचान बनाता धमतरी  

वर्ष 2022 में केन्द्र सरकार द्वारा जल शक्ति मंत्रालय गठित के बाद देशभर में भू-जल स्तर की स्थिति को जानने सर्वे किया गया। इस दौरान देशभर में 150 जिले चिन्हित किए गए जहाँ भू-जल स्तर की स्थिति अति गंभीर (क्रिटिकल) थी। तकनीकी पैमाने में इन जिलों को रेड लेवल पर रखा है। अर्थात् इन 150 जिलों में भू-जल स्तर में सुधार के लिए तत्काल समुचित उपाय की आवश्यकता थी। छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले के अंतर्गत धमतरी व कुरुद ब्लॉक के साथ ही बस्तर जिला भी अति गंभीर की श्रेणी में शामिल था। ऐसे में छत्तीसगढ़ में भू-जल स्तर की गिरावट को गंभीर मानते हुए मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देश पर जिला प्रशासन द्वारा सभी आवश्यक कदम उठाए गए। सरकारी प्रयासों के साथ ग्रामीणों के संयुक्त प्रयास का परिणाम है कि अब धमतरी रेड लाइन श्रेणी से यलो लाइन श्रेणी में आ चुका है। यह दर्शाता है कि प्रशासन की कवायद और नागरिकों की सहभागिता से भूमिगत जल की उपलब्धता में काफी सुधार हुआ है। धनहा धमतरी कहे जाने वाले धमतरी की पहचान अब जल-संरक्षण राजधानी के रूप में भी होने लगी है। 

इसलिए धमतरी में जल-जगार महा उत्सव 

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के निर्देश पर धमतरी कलेक्टर सुश्री नम्रता गाँधी के मार्गदर्शन में जिला प्रशासन द्वारा जल-जगार के जरिए जिले में जल संरक्षण को लेकर हुई कवायदें हुई। इसमें सामुदायिक सहभागिता भी मिली, जिसका परिणाम है कि क्षेत्र में भू-जल स्तर के साथ हर तरह के जल-स्त्रोतों में जल की उपलब्धता उत्तरोत्तर बढ़ रही है। ऐसे में लाजिमी है कि अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन के लिए धमतरी को चुना गया है। माना यह भी जा रहा है कि जल संरक्षण और संवर्धन को लेकर चर्चा के लिए धमतरी से बेहतर कोई अन्य स्थान हो सकता है। इसी कड़ी में आगामी 5 व 6 अक्टूबर को धमतरी जिला में रविशंकर जलाशय के तट पर जल-जगार महा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस जल-जगार के दौरान जल संरक्षण व संवर्धन से संबंधी अनेक विषयों पर चर्चा होगी साथ ही अनेक रोचक कार्यक्रम भी आयोजित होंगे। इस दौरान “पानी पर विचार, विश्व का समर्थन” विषय पर जमीनी स्तर पर काम करने वाले समुदाय के बीच समूह चर्चा होगी।

डॉक्यूमेंट्री कॉम्पटीशन और प्रदर्शनी का आयोजन

वहीं, जल शक्ति अभियान की दिशा में किए गए प्रयासों पर आधारित “जल की आत्मकथा” विषय पर केन्द्रित डॉक्यूमेंट्री कॉम्पीटिशन होगा। “पानी का अधिकार” थीम पर जल सभा का आयोजन भी होगा। जल संरक्षण और संवर्धन के लिए औद्योगिक समूह की सहभागिता को ध्यान में रखकर “उद्योगों का योगदान, पानी का समाधान” विषय पर स्टॉल प्रदर्शनी होगी। इसके साथ ही “छत्तीसगढ़ की जल यात्रा” थीम पर स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण और संवर्धन के लिए किए गए प्रयास और उपलब्धियों पर आधारित जल जगार एक्जीबिशन होगा। यहाँ “पानी का खेल, जीवन का महल” थीम पर रोमांच से भरपूर जल ओलंपिक भी आयोजित है। जल जागरूकता पर आधारिक बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट भी देखने को मिलेगा। रुद्राभिषेक थीम पर आयोजन होना है। “पानी में सावन की मस्ती” थीम पर सावन मेला, “आसमान से पानी की कहानी” थीम पर ड्रोन शो, बच्चों के लिए “पानी के रंग, बच्चों के संग” थीम पर आकर्षक आयोजन होना है। इसके साथ ही जल आधारित अनेक तरह के रुचिकर और मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन जल-जगार महा उत्सव के दौरान होना है।

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