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पुरुषों के फेफड़ों में जमा हो रही महिलाओं से ज्यादा गंदगी, दिल्ली प्रदूषण की स्टडी में बड़ा खुलासा

दिल्ली में 2019–2023 की स्टडी से खुलासा हुआ कि पुरुषों के फेफड़ों में महिलाओं की तुलना में ज्यादा प्रदूषण जमा हो रहा है। पैदल चलते समय खतरा सबसे अधिक है। स्टडी में PM2.5 और PM10 स्तर भारतीय और WHO मानकों से कई गुना ज्यादा पाए गए।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Dec 18, 2025 05:16 pm IST, Updated : Dec 18, 2025 05:16 pm IST
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Image Source : PTI दिल्ली में प्रदूषण की वजह से लोगों को काफी स्वास्थ्य समस्याओं का सम्मान करना पड़ रहा है।

नई दिल्ली: ट्रैफिक में गाड़ी चलाते हुए या भीड़भाड़ वाली सड़कों पर पैदल चलते हुए दिल्ली के पुरुष शहर की गंदी हवा को अपने फेफड़ों में महिलाओं की तुलना में ज्यादा खींच रहे हैं। दिल्ली की नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी और नोएडा की एक पर्यावरण कंसल्टेंसी के वैज्ञानिकों ने 2019 से 2023 तक 5 साल की स्टडी में यह चौंकाने वाला नतीजा निकाला है। स्टडी का नाम है ‘दिल्ली में सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचने वाले कणों का पांच साल का आकलन: जोखिम और स्वास्थ्य खतरे’। शोधकर्ताओं ने दिल्ली के 39 एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

आखिर पुरुषों को ज्यादा खतरा क्यों?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, पुरुषों की सांस की मात्रा और हवा का प्रवाह महिलाओं से ज्यादा होता है, इसलिए उनके फेफड़ों में ज्यादा जहरीले कण जमा हो रहे हैं। बैठे रहते समय पुरुषों के फेफड़ों में PM2.5 कण महिलाओं से करीब 1.4 गुना और PM10 कण 1.34 गुना ज्यादा जमा हो रहे हैं। पैदल चलते समय पुरुषों में दोनों तरह के कण (PM2.5 और PM10) महिलाओं से करीब 1.2 गुना ज्यादा फेफड़ों में पहुंच रहे हैं। शोध में एक अंतरराष्ट्रीय मान्य मॉडल का इस्तेमाल किया गया, जिससे यह पता चला कि हवा में मौजूद प्रदूषण कितना वास्तव में फेफड़ों के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचकर जमा हो रहा है।

दिल्ली वालों की हालत कितनी खराब?

स्टडी के मुताबिक, दिल्ली में लोगों के फेफड़ों में बारीक कण (PM2.5) का जमा होना भारत के वायु गुणवत्ता मानक से करीब 10 गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देश से लगभग 40 गुना ज्यादा है। बता दें कि भारत का मानकों के मुताबिक रोजाना PM2.5 की सीमा 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और PM10 की 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। वहीं WHO के मानकों के मुताबिक, यह PM2.5 के लिए 15 और PM10 के लिए 45 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। दिल्ली में फेफड़ों तक पहुंचने वाला प्रदूषण दोनों मानकों से बहुत ज्यादा है।

बैठे रहने की तुलना में चलना ज्यादा खतरनाक

शोध में पाया गया कि पैदल चलते समय बैठे रहने की तुलना में फेफड़ों में कण 2 से 3 गुना ज्यादा जमा हो रहे हैं। सबसे ज्यादा खतरे में पैदल चलने वाले पुरुष हैं, उसके बाद पैदल चलने वाली महिलाएं, फिर बैठे हुए पुरुष और सबसे कम बैठी हुई महिलाएं। इससे साफ है कि सड़क पर पैदल चलने वाले लोग और स्ट्रीट वेंडर जैसे बाहर ज्यादा समय बिताने वाले मजदूर सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। इनमें सबसे खतरनाक PM2.5 जैसे बारीक कण हैं, जो फेफड़ों के गहरे हिस्सों तक पहुंच जाते हैं।

शाम का समय होता है सबसे ज्यादा जहरीला

शाम के ट्रैफिक घंटों में सुबह की तुलना में फेफड़ों में PM2.5 कण 39 फीसदी और PM10 कण 23 फीसदी ज्यादा जमा हो रहे हैं। इसकी वजह ये है कि शाम को ट्रैफिक का ज्यादा धुआं और मौसम की स्थिति जो प्रदूषण को जमीन के करीब रोककर रखती है। स्टडी में यह भी दावा किया गया है कि दिवाली की रात फेफड़ों में कणों का जमा होना त्योहार से पहले के दिनों की तुलना में लगभग दोगुना हो जाता है और यह बढ़ा हुआ स्तर कई दिनों तक बना रहता है।

कहां के लोगों को है सबसे ज्यादा खतरा?

औद्योगिक इलाकों में सबसे ज्यादा फेफड़ों में प्रदूषण जमा हो रहा है, उसके बाद व्यावसायिक क्षेत्र। हरे-भरे इलाकों, खासकर सेंट्रल दिल्ली में तुलनात्मक रूप से कम जोखिम पाया गया। 2020 के लॉकडाउन में ट्रैफिक और उद्योग बंद होने से कई इलाकों में फेफड़ों में कण जमा होना 60 से 70 फीसदी तक कम हो गया। इससे साबित होता है कि बड़े स्तर पर ट्रैफिक और उद्योग कम करने से स्वास्थ्य जोखिम बहुत जल्दी घटाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रोजमर्रा के प्रदूषण से बचाव के लिए तुरंत नीतिगत बदलाव जरूरी हैं, खासकर यात्रियों और बाहर काम करने वालों के लिए।

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