Friday, December 19, 2025
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IISc की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी को लेकर बवाल, छात्रों ने दी तीखी प्रतिक्रिया, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का दिया हवाला

IISC की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी पर छात्रों तीखी प्रतिक्रिया दी है। छात्रों ने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए इसका कड़ा विरोध किया है।

Edited By: Akash Mishra @Akash25100607
Published : Oct 29, 2025 06:20 pm IST, Updated : Oct 29, 2025 06:20 pm IST
आईआईएससी की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी- India TV Hindi
Image Source : IISC आईआईएससी की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC), बेंगलुरु के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियरिंग (ESE) विभाग द्वारा हाल ही में शुरू की गई एकीकृत उपस्थिति (Integrated Attendance) और पार्किंग प्रणाली को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को लेकर छात्रों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। रिपोर्टों के अनुसार, ईएसई के अध्यक्ष प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव ने छात्रों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए एक आंतरिक कम्यूनिकेशन में कहा कि अटेंडेंस में लचीलेपन के बार-बार अनुरोध के बाद नई उपस्थिति प्रणाली शुरू की गई है।

लेटर में कहा गया है, "इस नई व्यवस्था का उद्देश्य कठोरता नहीं, बल्कि काम के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करना है, साथ ही काम के घंटे चुनने में पूरी छूट देना है।" नए अटेंडेंस के अनुसार, स्थाई और संविदा कर्मचारियों को हफ्ते में 40 घंटे काम करना होगा, एमटेक और प्रथम वर्ष के पीएचडी छात्रों को वीक में कम से कम 50 घंटे काम करना होगा, और पीएचडी छात्रों को आमतौर पर वीक में 70-80 घंटे काम करना होगा।

मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का छात्रों ने दिया हवाला

आईआईएससी की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी ने छात्रों में भारी हंगामा खड़ा कर दिया है। एक छात्र ने इंडिया टीवी डिजिटल को बताया, "न्यू अटेंडेंस पॉलिसी कॉर्पोरेट कार्य संस्कृति जैसी लगती है जो लंबी और विषाक्त कार्य संस्कृति को बढ़ावा देती है। शोध के लिए व्यवस्थित दिमाग की नहीं, बल्कि स्वतंत्र दिमाग की ज़रूरत होती है।"

आईआईएससी की न्यू अटेंडेंस पॉलिसी को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा हो रही है। एक रिसर्च स्टूडेंट आनंद प्रभाकर ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में लिखा, "यह सिर्फ़ आईआईएससी में ही नहीं हो रहा है। आईआईटी और एनआईटी जैसे संस्थानों में भी यही लागू है। आजादी कहां है? आजादी कहीं नहीं है, आजकल तो बस विज्ञापनों में दिखाई जाती है। शोधकर्ताओं को तनावपूर्ण माहौल में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। और हम सभी जानते हैं कि शोध के लिए आजादी और जगह की जरूरत होती है, इसमें समय लगता है। कोई भी शोध छात्रों के सिर पर बंदूक तानकर उनसे रिसर्च करने के लिए नहीं कह सकता। आपको आजादी सिर्फ धार्मिक रीति-रिवाजों, राष्ट्रीय संस्थानों में सेना के राजनीतिकरण और मीडिया में ही दिखाई देगी, जो छात्रों और विद्वानों के बीच नफरत पैदा कर रहा है।"

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