Wednesday, December 11, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. Explainers
  3. Explainers: क्या है एक देश-एक चुनाव से फायदा, किन देशों में लागू, किसने किया समर्थन-विरोध? जानें सभी सवालों के जवाब

Explainers: क्या है एक देश-एक चुनाव से फायदा, किन देशों में लागू, किसने किया समर्थन-विरोध? जानें सभी सवालों के जवाब

एक देश-एक चुनाव का अर्थ है लोक सभा, सभी राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराना। इसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

Written By: Subhash Kumar @ImSubhashojha
Published : Mar 14, 2024 14:01 IST, Updated : Mar 14, 2024 14:29 IST
एक देश एक चुनाव। - India TV Hindi
Image Source : PTI एक देश एक चुनाव।

एक देश, एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। जानकारी के मुताबिक, कमेटी ने राष्ट्रपति भवन में जाकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 18,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। बता दें कि यह रिपोर्ट 2 सितंबर, 2023 को इसके गठन के बाद से हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श और 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है। तो आखिर क्या है एक देश-एक चुनाव की जरूरत? क्या पहले भी देश में ऐसे चुनाव हुए है? अगर विधानसभा भंग हो या सरकार गिर जाए तो क्या है उपाय? इस रिपोर्ट को किन लोगों से परामर्श लेने के बाद बनाया गया है? आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब, हमारे इस FAQ में।

क्या है एक देश-एक चुनाव, पहले कभी हुए थे?

कमेटी की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि एक देश-एक चुनाव का अर्थ है लोक सभा, सभी राज्य विधान सभाओं और स्थानीय निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराना। कमेटी ने बताया है कि 1957 में एक साथ चुनाव कराये जा सके इसके लिए बिहार, बंबई, मद्रास, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में राज्य विधान सभाओं को समय से पहले भंग करने के लिए भारत के चुनाव आयोग के समझाने पर केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों द्वारा सचेत प्रयास किए गए थे। 1967 के आम चुनाव तक, एक साथ चुनाव बड़े पैमाने पर प्रचलन में थे। 

क्यों है एक देश-एक चुनाव की जरूरत?

रिपोर्ट में कहा गया है कि बार-बार चुनाव होने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त खर्च का बोझ पड़ता है। अगर राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले खर्च को भी जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़े और भी ज्यादा होंगे। इस कारण आपूर्ति श्रृंखला, व्यापार निवेश और आर्थिक विकास पर भी असर पड़ता है। सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों का बार-बार उपयोग उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। बार-बार आदर्श आचार संहिता (MCC) लगाए जाने से नीतिगत पंगुता हो जाती है और विकास कार्यक्रमों की गति धीमी हो जाती है। इसके साथ ही लगातार चुनाव मतदाताओं को थका देते हैं और चुनाव में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करते हैं।

क्या हैं कमेटी की सिफारिशें?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की है। पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव होंगे। इसके लिए राज्यों द्वारा संवैधानिक संशोधन के अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। वहीं, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव को लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के साथ इस तरह से समन्वित किया जाएगा कि नगर पालिकाओं और पंचायत के चुनाव लोकसभा और विधानसभा के चुनाव होने के सौ दिनों के भीतर हो जाएं।

कमेटी ने सभी तीन स्तरों के चुनावों में उपयोग के लिए एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) तैयार करने के उद्देश्य से, भारत के संविधान में संशोधन की सिफारिश की है। इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा समर्थन की आवश्यकता होगी। कमेटी ने कहा है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में लोकसभा के समाप्त न हुए कार्यकाल के लिए नए लोकसभा या राज्य विधानसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए।

कमेटी की ये भी सिफारिश है कि साजो-सामान संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनाएगा और अनुमान लगाएगा। इसके बाद जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम/वीवीपीएटी, आदि की तैनाती के लिए कदम उठाएगा। ताकि सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो सकें।

किसने समर्थन और विरोध किया?

कमेटी ने जानकारी दी है कि एक देश-एक चुनाव को लेकर पूरे भारत से कुल 21,558 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं है। इनमें से 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने एक साथ चुनाव के विचार का समर्थन किया। इसके अलावा 47 राजनीतिक दलों ने इस मामले पर अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किए हैं। इनमें से 32 पार्टियों ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया, जबकि 15 ने इसका विरोध किया है। कमेटी ने 191 दिनों में कुल 65 बैठके की हैं और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई, पूर्व जज, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और बार काउंसिल आदि से भी सलाह ली है। 

क्या विदेशों में भी ऐसे नियम हैं?

कमेटी ने इस मुद्दे पर व्यापक शोध किया है और एक साथ चुनावों से जुड़े सभी जटिल कानूनी, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों का विश्लेषण किया। कमेटी ने दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों में एक साथ चुनाव की प्रणाली का अध्ययन किया। कमेटी ने माना कि अपनी राजनीति की विशिष्टता को देखते हुए, भारत के लिए एक उपयुक्त मॉडल विकसित करना सबसे अच्छा होगा।

एक साथ चुनाव के क्या फायदे हैं?

  • एक साथ चुनाव मतदाताओं के लिए आसानी और सुविधा सुनिश्चित करेंगे, मतदाताओं को थकान से बचाएंगे और अधिक मतदान की सुविधा प्रदान करेंगे।
  • चुनावों को सिंक्रनाइज करने से उच्च आर्थिक विकास और स्थिरता आएगी क्योंकि यह व्यवसायों को प्रतिकूल नीति परिवर्तनों के डर के बिना निर्णय लेने में सक्षम बनाएगी।
  • सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ चुनाव कराने से प्रवासी श्रमिकों द्वारा वोट डालने के लिए छुट्टी मांगने के कारण आपूर्ति श्रृंखला और उत्पादन चक्र में व्यवधान से बचा जा सकेगा।
  • एक साथ चुनाव से शासन पर ध्यान बढ़ता है और नीतिगत पंगुता रुकती है।
  • बार-बार चुनाव से अनिश्चितता का माहौल बनता है और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव कराने से नीति निर्माण में निश्चितता बढ़ेगी।
  • एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ कम होगा और रुक-रुक कर होने वाले चुनावों पर खर्च के दोहराव से बचा जा सकेगा।
  • एक साथ चुनाव कराने से दुर्लभ संसाधनों का अनुकूलित उपयोग होगा और पूंजी निवेश और संपत्ति निर्माण में वृद्धि होगी।
  • चुनावी कैलेंडर को सिंक्रनाइज करने का अर्थ होगा शासन के लिए अधिक समय की उपलब्धता और नागरिकों को सार्वजनिक सेवाओं की निर्बाध डिलीवरी सुनिश्चित करना।
  • एक साथ चुनाव से चुनाव संबंधी अपराधों और विवादों की संख्या कम होगी और अदालतों पर बोझ कम होगा।
  • एक साथ चुनाव से प्रयासों के दोहराव से बचा जा सकेगा और सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सुरक्षा बलों के समय और ऊर्जा की बचत होगी।
  • हर पांच साल में एक बार चुनाव कराने से सामाजिक वैमनस्य और संघर्ष में कमी आएगी, जो अक्सर चुनावों के दौरान देखा जाता है।

त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव आदि में क्या उपाय होंगे?

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में नए सदन के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। जहां लोक सभा के लिए नये चुनाव होते हैं, लोक सभा का कार्यकाल लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल से ठीक पहले की शेष अवधि के लिए ही होगा और इस अवधि की समाप्ति सदन की विघटन के रूप में कार्य करेगी। वहीं, जहां राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नई विधान सभा, जब तक कि जल्दी भंग न हो जाए, लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल के अंत तक जारी रहेगी।

ये भी पढ़ें- Explainers: CAA को लेकर मन में है कोई कन्फ्यूजन तो कर लें दूर, आपके हर सवाल का मिलेगा जवाब

Digital Competition Bill: बड़ी टेक कंपनियों की मनमानी पर लगाम लगाने की तैयारी, देना पड़ सकता है भारी जुर्माना


India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें Explainers सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement