Friday, March 29, 2024
Advertisement

पुरानी दवाओं के इस्तेमाल से कोरोना का इलाज संभव - रिसर्च

 शोध टीम ने पाया कि ये दवाएं विषाणुओं में पाए जाने वाले एंजाइमों को रोकती हैं जो संक्रमित मानव कोशिकाओं में कोविड विषाणु की प्रतिकृति के लिए आवश्यक हैं।

India TV Health Desk Written by: India TV Health Desk
Published on: February 27, 2022 12:12 IST
Corona - India TV Hindi
Image Source : FREEPIK Corona 

वैज्ञानिक शोधों में पाया गया है कि टाइप टू डायबिटीज, हेपेटाइटिस -सी और एचआईवी जैसी बीमारियों में काम आने वाली दवाओं को अगर पुनर्प्रयोजित कर इनका इस्तेमाल कोविड मरीजों पर किया जाए तो ये कोराना विषाणु की संख्या बढ़ाने की क्षमता को कम कर देती हैं। पत्रिका कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि इन बीमारियों में काम आने वाली दवाओं का मिश्रण बनाकर दिया जाए तो यह विषाणु की कोशिकाओं की संख्या बढ़ाने की क्षमता (रेप्लीकेशन) को कम करने में कारगर हैं। शोध टीम ने पाया कि ये दवाएं विषाणुओं में पाए जाने वाले प्रोटीज एंजाइमों को रोकती हैं जो संक्रमित मानव कोशिकाओं में कोविड विषाणु की प्रतिकृति के लिए आवश्यक हैं।

पेन स्टेट के जैव रसायन और आणविक जीव विज्ञान के सहायक प्रोफेसर जॉयस जोस ने कहा, कोविड के टीके उस विषाणु के स्पाइक प्रोटीन को लक्षित करते हैं, लेकिन यह प्रोटीन प्राकृतिक तौर पर अपना रूप बदलता रहता है और महत्वपूर्ण उत्परिवर्तन से गुजर सकता है। इसका सबसे बेहतर उदाहरण ओमिक्रोन वेरिएंट हैं जिसके स्पाइक प्रोटीन में हुए बदलावों से वह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा देने में कारगर साबित हुआ है।

इससे पहले कोरोना के डेल्टा वेरिएंट के संक्रमण के बाद पीड़ित मरीजों में उसके खिलाफ कारगर एंटीबॉडीज बने थे और वे कोरोना के स्पाइक प्रोटीन की पहचान करने में सक्षम थे। लेकिन इस वर्ष डेल्टा के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के स्पाइक प्रोटीन में आए बदलाव की वजह से शरीर में डेल्टा वेरिएंट के समय से मौजूद एंटीबॉडीज इम्युनोग्लोबिन -जी, भी उसकी पहचान नहीं कर सके। इसका कारण यह है कि विषाणु के बाहरी खोल में पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन में लगातार बदलाव होने की क्षमता है।

चीन की आरकोव वैक्सीन ओमीक्रॉन के खिलाफ बूस्टर डोज के रूप में कारगर: शोध.

जोस ने कहा, इसी वजह से हमें ऐसे चिकित्सीय एजेंटों की तत्काल आवश्यकता है जो स्पाइक प्रोटीन के अलावा वायरस के उन हिस्सों को लक्षित करते है जिनमें अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता नहीं है। पिछले शोधों से पता चला है कि दो कोविड एंजाइम - 'एमप्रो और पीएलप्रो सहित प्रोटीज' विषाणु के खिलाफ दवा के विकास के लिए आशाजनक लक्ष्य हैं। जोस के अनुसार ये एंजाइम अपेक्षाकृत स्थिर होते हैं' इसलिए उनमें तेजी से दवा प्रतिरोधी उत्परिवर्तन विकसित करने की संभावना नहीं हैं।

इसी विभाग के एक अन्य प्रोफेसर कात्सुहिको मुराकामी ने कहा कि विषाणु प्रोटीन प्रोटीज में स्वस्थ कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन को काटने की क्षमता होती है और यही कारण है कि वे संक्रमित कोशिकाओं में विषाणुओं की प्रतिकृति के लिए आवश्यक हैं।

इम्युनिटी के साथ-साथ मानसिक सेहत के लिए भी फायदेमंद है वैक्सीन - अध्ययन

मुराकामी ने समझाया कि एक बार किसी स्वस्थ कोशिका में किसी विषाणु का प्रवेश हो जाए तो उसके भीतर पाए जाने वाले प्रोटीज एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं और सार्स कोविड विषाणु लंबे पोलीप्रोटीन का निर्माण करता है जिन्हें प्रोटीज अलग अलग काट कर उन्हें सुव्यवस्थित रूप देते हैं और इन्हीं की वजह से विषाणु की संख्या में इजाफा होता रहता है। अगर उनके प्रोटीज एंजाइम का बनना रोक दिया जाए तो इन विषाणुओं की संख्या में बढ़ोत्तरी रूक जाएगी।

इससे पहले मधुमेह, एचआईवी और हैपेटाइटिस के उपचार में जिन दवाओं का इस्तेमाल हो रहा था उनमें विषाणु के प्रोटीज को समाप्त करने की क्षमता पाई गई है और इन दवाओं के मिश्रण तथा पुनप्र्रयोजन से कोविड उपचार में मदद मिल सकती है।

इनपुट - आईएएनएस

Latest Health News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें हेल्थ सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement