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मध्यप्रदेश दोहरा रहा इतिहास, सिंधिया परिवार के कारण दूसरी बार जा रही कांग्रेस सरकार!

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ था, और डी.पी. मिश्रा मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बाद में कांग्रेस के 36 विधायकों ने विजयाराजे के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर की और विपक्ष से जा मिले। डी.पी. मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था। अब एक बार फिर वही पटकथा लिखी गई है।

Written by: IANS
Published : Mar 10, 2020 07:34 pm IST, Updated : Mar 10, 2020 07:34 pm IST
Jyotiraditya scindia- India TV Hindi
Image Source : TWITTER ज्योतिरादित्य सिंधिया

नई दिल्ली| मध्यप्रदेश में 53 साल बाद इतिहास एक बार फिर अपने आपको दोहरा रहा है। आज से 53 साल पहले 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया की वजह से कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई थी। अब उनके पोते ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ सरकार सत्ता से बेदखल हो रही है। 1967 में विजया राजे ने कांग्रेस को अलविदा कहकर लोकसभा चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर लड़ा और जीत दर्ज की। अब ज्योतिरदित्य भाजपा से राज्यसभा में जाने वाले हैं।

उल्लेखनीय है कि 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ था, और डी.पी. मिश्रा मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बाद में कांग्रेस के 36 विधायकों ने विजयाराजे के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर की और विपक्ष से जा मिले। डी.पी. मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा था। अब एक बार फिर वही पटकथा लिखी गई है। ज्योतिरादित्य खेमे के 20 कांग्रेसी विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा स्वीकार होते ही कमलनाथ सरकार विधानसभा में अल्पमत में आ जाएगी। ऐसे में भाजपा कमलनाथ सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएगी और कमलनाथ सरकार गिर सकती है।

कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा- Happy Holi

दरअसल, ग्वालियर में 1967 में एक छात्र आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन को लेकर राजमाता की उस समय के सीएम डी.पी. मिश्रा से अनबन हो गई थी। उसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। बाद में राजमाता सिंधिया गुना संसदीय सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा का चुनाव जीत गईं। इसके बाद सिंधिया ने कांग्रेस में फूट का फायदा उठाते हुए 36 विधायकों के समर्थन वाले सतना के गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवाकर प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवा दी थी। कांग्रेस छोड़ने के बाद राजमाता जनसंघ से जुड़ीं और बाद में भाजपा की फाउंडर सदस्य बनीं। राजमाता को भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया। 1967 से जुड़ी कहानी आज फिर दोहराई जा रही है। एक-एक कर किरदार अपना रोल अदा कर रहे हैं।

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