Wednesday, April 24, 2024
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Cyrus Mistry Death: न जलाया जाता है और न ही दफनाया, तो फिर पारसी समुदाय में कैसे होता है अंतिम संस्कार? यहां जानिए

Cyrus Mistry-Cremation in Parsi Religion: पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार का तरीका बेहद अलग है। ये समुदाय हजारों साल पहले पर्शिया (अब के ईरान) से भारत आया था। समुदाय में शव को न तो हिंदू धर्म की तरह जलाया जाता है और न ही इस्लाम या ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है।

Shilpa Written By: Shilpa
Updated on: September 05, 2022 18:42 IST
Tower of Silence-Cremation in Parsi Religion- India TV Hindi
Image Source : TWITTER Tower of Silence-Cremation in Parsi Religion

Highlights

  • पारसी धर्म में शव को जलाया नहीं जाता
  • शव को टावर ऑफ साइलेंस पर रखते हैं
  • यहां गिद्ध शरीर को खा जाते हैं

Cremation of Parsi Dead Body: टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र में एक सड़क हादसे में मौत हो गई है। वह अपनी लग्जरी कार से गुजरात के उदवाड़ा से मुंबई लौट रहे थे। तभी पालघर में गाड़ी हादसे का शिकार हो गई। कार में कुल चार लोग सवार थे, जिनमें से दो की मौत हो गई और दो लोग घायल हुए हैं। साइरस मिस्त्री के शव को पोस्टमार्टम के बाद उनके परिवार को सौंप दिया गया है। चूंकी उनके कुछ रिश्तेदार विदेश में रहते हैं और भारत आ रहे हैं, इसलिए अंतिम संस्कार सोमवार को न होकर मंगलवार को किया जाएगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, मिस्त्री का अंतिम संस्कार मुंबई के वर्ली में विद्युद शवदाह गृह या फिर डुंगरवाड़ी स्थित 'टावर ऑफ साइलेंस' में किया जा सकता है। 

पारसी समुदाय में कैसे होता है अंतिम संस्कार?

पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार का तरीका बेहद अलग है। ये समुदाय हजारों साल पहले पर्शिया (अब के ईरान) से भारत आया था। समुदाय में शव को न तो हिंदू धर्म की तरह जलाया जाता है और न ही इस्लाम या ईसाई धर्म की तरह दफनाया जताा है। केवल इतना ही नहीं, पारसी समुदाय में शव को श्मशान घाट या कब्रिस्तान ले जाने के बजाय 'टावर ऑफ साइलेंस' के ऊपर रख दिया जाता है। जहां उसे गिद्ध खाते हैं। गिद्धों द्वारा शव को खाया जाना पारसी समुदाय के रिवाज का ही हिस्सा है। 

इसके पीछे कई तर्क दिए जाते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में जोरास्ट्रियन स्टडीज इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ ने बताया कि पारसी शव को सूर्य की किरणों के सामने रख देते हैं। जिसके बाद उसे गिद्ध, चील और कौए खाते हैं। पारसी समुदाय शव को जलाने या फिर दफनाने को प्रकृति को गंदा करने जैसा मानता है।

शव को अशुद्ध मानता है समुदाय

मृतक के शव को खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया जाता है। इसके पीछे का ये कारण बताया जाता है कि पारसी मृत शरीर को अशुद्ध मानते हैं। ये लोग पर्यावरण को लेकर भी बेहद सजग रहते हैं। इनका मानना है कि शव को जलाने से अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है। ये शव को इसलिए नहीं दफनाते क्योंकि इससे धरती प्रदूषित हो सकती है। समुदाय शव को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं करता क्योंकि इससे जल तत्व दूषित हो सकते हैं। इस धर्म में पृथ्वी, जल और अग्नि तत्व को काफी पवित्र माना जाता है। परंपरावादी पारसियों का कहना है कि शव का जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक नजरिए से पूरी तरह गलत है।

अब जान लेते हैं कि भला ये 'टावर ऑफ साइलेंस' क्या होता है। पारसी समुदाय में अगर किसी की मौत हो जाए, तो उसे इसी स्थान पर लेकर जाते हैं। आम भाषा में 'टावर ऑफ साइलेंस' को दखमा भी कहते हैं। यह एक गोलाकार ढांचा होता है। जिसके ऊपर शव को सूर्य की धूप में रख दिया जाता है। 

अंतिम संस्कार में आ रही परेशानी

हालांकि इन दिनों अंतिम संस्कार के लिए इस समुदाय को दिक्कत झेलनी पड़ रही है। जिसके पीछे की वजह है, गिद्धों की घटती संख्या। भारत में गिद्ध काफी कम हो गए हैं। शहरों में मुश्किल से कोई गिद्ध दिखाई देता है। इस कारण से पारसी समाज को किसी की मौत के बाद आगे के रीति रिवाजों को पूरा करने के लिए दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। मीडिया रिपोर्ट में पारसी पुजारी रमियार करनजिया के हवाले से लिखा गया है कि गिद्ध तेजी से इंसान के मांस को खाते हैं। 

लेकिन अब गिद्धों की कम होती संख्या की वजह से इसमें दिक्कत आ रही है। जो काम चंद घंटों में गिद्ध कर दिया करते थे, अब उसी में कई दिनों का वक्त लग रहा है। जिससे शव सड़ने लगता है और उससे बदबू आने लगती है। यही वजह है कि अब समुदाय के लोग अंतिम संस्कार के लिए दूसरे तरीकों को अपना रहे हैं। जिसके तहत शव को गलाने के लिए सोलर कंसंट्रेटर का सहारा लिया जाता है। ये तरीका भी पर्मानेंट नहीं माना जाता। 

जलाकर अंतिम संस्कार किया जा रहा

रिपोर्ट में हैदराबाद और सिकंदराबाद में पारसी अंजुमन के ट्रस्टी रह चुके और पेशे से सीए जहांगीर बिजने के एक इंटरव्यू का जिक्र करते हुए बताया गया है कि बीते कुछ वर्षों से पारसी लोगों को अपने रिवाज को छोड़कर शवों का अंतिम संस्कार जलाकर करना पड़ रहा है। इसके लिए ये उसे श्मशान घाट या फिर विद्युत शवदाह गृह में लेकर जाते हैं। 

उन्होंने बताया कि रिवाज के अनुसार, पारसी समुदाय में शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' में रखने के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए लगातार चार दिन तक प्रार्थना की जाती है। इसे अरंघ कहते हैं। हालांकि शव को जलाए या दफनाए जाने की स्थिति में प्रार्थना नहीं होती। इसे समुदाय टैबू मानता है। 

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