Thursday, April 25, 2024
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सांसदों और विधायकों के 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या कहता है? यहां जानें

मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया है और कहा है कि इनके द्वारा दी गई स्पीच के लिए सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करते हुए भी सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

Rituraj Tripathi Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published on: January 04, 2023 19:33 IST
Supreme Court- India TV Hindi
Image Source : FILE सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' का जिक्र करते हुए आपने कई लोगों को सुना होगा। दरअसल कई बार बहसों के दौरान ये बात सामने आती है कि फ्रीडम ऑफ स्पीच यानी बोलने की आजादी सभी को है और ये अधिकारी हमें संविधान ने दिया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सांसदों और विधायकों के 'फ्रीडम ऑफ स्पीच' के अधिकार पर कुछ कहा है, जिसकी काफी चर्चा हो रही है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (3 जनवरी) को कहा कि सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करते हुए भी विधायकों और सांसदों सहित किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान के लिए परोक्ष तौर पर सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली और जस्टिस बी आर गवई, ए एस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बी वी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया। इसी पीठ ने एक दिन पहले 500 रुपए और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। फैसले में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत उल्लिखित प्रतिबंधों को छोड़कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, जो अनुच्छेद 19 का पालन करता है।

क्या था मामला?

मामला कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार का है। ये 2016 की बुलंदशहर रेप की घटना से संबंधित है। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्य मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने इस घटना को एक 'राजनीतिक साजिश' करार दिया था। इसके बाद कुछ लोगों ने आजम खान के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने एक रिट याचिका दायर की और उन्हें बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश देने की बात भी कही। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मामला राज्य के दायित्व और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में गंभीर चिंता पैदा करता है। इसके बाद इस मामले पर कई सवाल खड़े किए गए।

फैसला क्या कहता है?

यहां एक महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या किसी सार्वजनिक व्यक्ति के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। जिस पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक मंत्री द्वारा दिया गया एक बयान भले ही राज्य के किसी भी मामले या सरकार की सुरक्षा के लिए दिया गया हो, सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करके उसके लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

इसके अलावा, यह कहा गया कि नागरिकों को अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के उल्लंघन के लिए अदालत में याचिका दायर करने का अधिकार था, लेकिन मंत्री द्वारा दिया गया बयान नागरिकों के अधिकारों के साथ असंगत हो सकता है। ये अपने आप कार्रवाई योग्य नहीं हो सकता है। लेकिन अगर यह एक पब्लिक अधिकारी  द्वारा चूक या अपराध की ओर जाता है, तो इसके खिलाफ उपाय की मांग की जा सकती है।

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