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PM Modi govt 8 years: मोदी सरकार में कैसे बदली भारत की अंतरराष्ट्रीय पहचान, ‘ग्रेट पावर गेम’ में बढ़ा दबदबा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के 3 साल पूरे हो चुके हैं और देश को मोदी की विदेश नीति में कई अहम बदलाव देखने को मिले। मई 2014 में मोदी के पहली बार सत्ता में आने के बाद पांच साल की छोटी अवधि में हमारी विदेश नीति में व्यापक बदलाव हुआ।

Written By: Swayam Prakash @swayamniranjan_
Published : May 27, 2022 20:55 IST, Updated : Dec 16, 2022 7:12 IST
Modi Government strengthened India's international identity- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Modi Government strengthened India's international identity

Highlights

  • मोदी की विदेश नीति में दिखे अहम और बड़े बदलाव
  • आलोचकों ने भी स्वीकारे विदेश नीति में हुए सुधार
  • भारत को वैश्विक ताकत बनाने के मोदी के इरादे साफ

PM Modi govt 8 years: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के 3 साल पूरे हो चुके हैं और देश को मोदी की विदेश नीति में कई अहम बदलाव देखने को मिले। मई 2014 में मोदी के पहली बार सत्ता में आने के बाद पांच साल की छोटी अवधि में हमारी विदेश नीति में व्यापक बदलाव हुआ। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस क्षेत्र में जितने बड़े पैमाने पर एकडमिक लिटरेचर तैयार हुआ है, वह पिछले किसी भी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में नहीं हुआ था। 

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के आलोचक भी भारत की विदेश नीति में हुए बदलाव को स्वीकार करते हैं। माना जाता है कि मोदी सरकार ने बहुत कम समय में विदेश नीति पर स्पष्ट छाप छोड़ी है और यही कारण है कि मोदी ने भारत को दुनिया की बड़ी ताकत बनाने को लेकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।

अंदाज़ ही नहीं, तौर-तरीका भी बदला

साल 2019 में दिल्ली में हुए रायसीना डायलॉग में तत्कालीन विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा था, “भारत गुटनिरपेक्षता के अतीत से बाहर निकल चुका है। भारत आज अपने हितों को देखते हुए दुनिया के दूसरे देशों के साथ रिश्ते बना रहा है।” अंतरराष्ट्रीय मंचों और एजेंसियों के ज़रिये दुनिया के लिए जो नियम बनाए जा रहे हैं, उसमें भारत की भूमिका बढ़ाने का वक्त आ गया है। 

विदेश सचिव ने साफ-साफ यह भी कहा था कि भारत का भविष्य ख़ासतौर पर इस बात पर निर्भर करेगा कि वह जी20 और भारत-प्रशांत क्षेत्र में कैसी भूमिका निभाता है। उनके इस बयान से इसका भी पता चला कि भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में क्या बदलाव आया है। विदेश नीति को लेकर भारत का अंदाज़ ही नहीं, तौर-तरीका भी बदला है। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले कार्यकाल की शुरुआत के बाद अपने वरिष्ठ राजनयिकों से कहा था कि वे “भारत को दुनिया की बड़ी ताकत बनाने में योगदान दें। देश को बैलेंसिंग पावर की भूमिका तक सीमित न रखा जाए।”

अब ‘ग्रेट पावर गेम’ में भारत

पिछले 8 सालों में मोदी ने वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका को बदलने की कोशिश की है। उन्होंने ऐसे संकेत दिए हैं कि भारत अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की प्राथमिकताओं को परिभाषित करने की इच्छा और योग्यता रखता है। भारत दुनिया में अपने लिए जो भूमिका चाहता है, उसे लेकर नरेंद्र मोदी ने अपनी कूटनीति से हिचक ख़त्म कर दी है। 

ORF की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी की बदली कूटनीति के बाद राजनयिक स्तर पर भारत का वैश्विक रसूख़ बढ़ाने की कोशिशें तेज़ हुईं। इसके साथ योग और अध्यात्म जैसी सॉफ्ट पावर और प्रवासी भारतीयों पर भी जोर दिया गया। यह बदलाव भारत के बढ़ते आत्मविश्वास का ही प्रतीक नहीं है बल्कि इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए नियम तय करने की भूमिका हासिल करने की महत्वाकांक्षा भी है। भारत खुद को दूसरे देशों के बनाए नियम पर चलने वाले राष्ट्र के रूप में सीमित नहीं रखना चाहता। 

पहले भारत विदेश नीति को लेकर किसी भी तरह के जोखिम से बचता आया था, लेकिन अब वह अपनी नई भूमिका हासिल करने के लिए रिस्क उठाने को भी तैयार है। दशकों से हम एक सतर्क विदेश नीति पर चलते आए थे, लेकिन ‘ग्रेट पावर गेम’ में भारत तेज़ी से कदम बढ़ाने और बड़ी भूमिका पाने के लिए तैयार है।

युद्ध में दिखा भारत का दबदबा

रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के दौरान भारत के वैश्विक दबदबे का एक नमूना देखने को मिला। जब बाद आई कि युद्ध के संकट के बीच यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित वतन कैसे लाया जाए तो, रूस के सामने भारत ने मानवीय कॉरिडोर बनाने की मांग रखी। आज अर्थव्यवस्था के मामले में भारत के करीब आधे आकार वाले रूस के लिए ये मुश्किल होता कि वो यूक्रेन में फंसे भारत के नागरिकों को बाहर निकालने के लिए मानवीय कॉरिडोर बनाने की भारत की मांग को नज़रअंदाज़ कर देता। 

रूस ने युद्ध के बीच भारत की मांग पर ध्यान देते हुए करीब 22,500 भारतीय नागरिकों को वापस भेजने में मदद की। दुनिया ने खामोशी से इस संकट को लेकर भारत के कूटनीतिक और साजो-सामान से युक्त जवाब को स्वीकार किया। युद्ध के दौरान भारत एक ही समय पर रूस और यूक्रेन, दोनों देशों की तरफ़ झुक नहीं सकता था, इसलिए उसने तटस्थ रहने की कोशिश की।

जब बात भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने की आई तो ज़ेलेंस्की से फ़ोन पर बातचीत के दौरान मोदी ने “हिंसा ख़त्म करने” की मांग की और भारतीयों की सुरक्षित वापसी में यूक्रेन की मदद के लिए ज़ेलेंस्की का शुक्रिया अदा किया। यूक्रेन की तरफ़ थोड़ा झुकने के बावजूद भारत ने अपने “स्वतंत्र” रवैये को लेकर रूस का समर्थन हासिल किया, वहीं दूसरी तरफ़ भारत की स्थिति में “नियमित बदलाव” को लेकर अमेरिका की स्वीकृति भी हासिल की। इसके अलावा अमेरिका ने रूस के साथ भारत के संबंधों को “अलग” और “बिल्कुल ठीक” माना।

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पिछले 8 साल में भारत की विदेश नीति बहुआयामी रही है। दुनिया के बारे में मोदी सरकार की सोच पुरानी बेड़ियों से आज़ाद है। इसमें विदेश मामलों में प्रैक्टिकल अप्रोच पर फोकस बढ़ा है। लेकिन इस सबके बीच मोदी सरकार की विदेश नीति की राह में कई चुनौतियां भी हैं।

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