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दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, दृष्टिबाधित लोगों को मुफ्त मानव सहायता प्रदान करे रेलवे

दिल्ली हाई कोर्ट ने रेलवे से दृष्टिबाधितों को मुफ्त मानवीय सहायता उपलब्ध कराने को कहा तो सरकारी वकील ने कहा कि मुफ्त मानवीय सहायता प्रदान करने में ‘व्यावहारिक दिक्कतें’ हैं।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Feb 01, 2024 09:44 am IST, Updated : Feb 01, 2024 09:44 am IST
Delhi HC Railways, Delhi High Court Railways, Delhi High Court- India TV Hindi
Image Source : PTI FILE दिल्ली हाई कोर्ट ने दृष्टिबाधित लोगों की सुविधा के लिए रेलवे से मानवीय सहायता उपलब्ध कराने को कहा है।

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को ट्रेन से यात्रा करने वाले दृष्टिबाधितों की सुविधा को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। कोर्ट ने रेलवे को दृष्टिबाधितों को बड़े स्टेशनों पर मुफ्त मानव सहायता प्रदान करने को कहा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अगुवाई वाली एक बेंच रेलयात्रा को दिव्यांगों के अनुकूल बनाने के विषय पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने रेलवे को अपनी तरफ से या CSR (कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी) पहल के माध्यम से यह सुविधा प्रदान करने पर विचार करने को कहा।

‘दृष्टिबाधितों को मुफ्त एस्कॉर्ट की सुविधा नहीं है’

कोर्ट की मदद के लिए अदालत मित्र के रूप में पेश वरिष्ठ वकील एस. के. रूंगटा ने अदालत को बताया कि रेलवे ने स्टेशनों पर व्हीलचेयर प्रदान किये हैं लेकिन उसने दृष्टिबाधितों को मुफ्त एस्कॉर्ट या सहायक देने से इनकार कर दिया है। रूंगटा ने कोर्ट से इस मुद्दे पर निर्णय लेने का आग्रह किया। जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पी. एस. अरोड़ा की बेंच ने सरकारी वकील से कहा, ‘इतनी ज्यादा बेरोजगारी है। सहायक व्हीलचेयर चलायेंगे। (यदि पैसे की दिक्कत है तो) आप कुछ CSR पहल शुरू कर सकते हैं।’ 

कोर्ट ने कहा, बड़े शहरों में शुरू करें सुविधा

सरकारी वकील ने कहा कि देश में 10 हजार से ज्यादा रेलवे स्टेशन हैं और मुफ्त मानवीय सहायता प्रदान करने में ‘व्यावहारिक दिक्कतें’ हैं। कोर्ट ने कहा,‘आप महानगर में हैं। दिल्ली, कलकत्ता, बड़े स्टेशनों पर शुरू कीजिए।’ कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 20 मार्च तय की और रेलवे से अतिरिक्त हलफनामा देने को कहा। कोर्ट ने 2017 में एक खबर के आधार पर इस विषय का स्वत: संज्ञान लिया था। खबर के अनुसार दिव्यांगों के विशेष डिब्बे का दरवाजा बंद कर दिया गया था और उस साल एक युवक दिल्ली यूनिवर्सिटी में एमफिल की परीक्षा नहीं दे पाया था।

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