Thursday, April 25, 2024
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श्रावण पुत्रदा एकादशी: संतान प्राप्ति के लिए ऐसे करें पूजा, साथ ही जानें शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और गुरुवार का दिन है। पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: July 29, 2020 22:08 IST
पुत्रदा एकादशी: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/LORDVISHNU_SE पुत्रदा एकादशी: शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और गुरुवार का दिन है। पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व है। आज के दिन श्रीहरि भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रख विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। 

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार सालभर में कुल चौबीस एकादशियां होती है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है- एक श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरा पौष मास के शुक्ल पक्ष में। हालांकि इन दोनों ही एकादशियों का समान रूप से महत्व है। जो लोग संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं या जिनकी पहले से संतान है, वो अपने बच्चे का सुनहरा भविष्य चाहते हैं, जीवन में उनकी खूब तरक्की चाहते हैं, उन लोगों के लिये आज पुत्रदा एकादशी का व्रत किसी वरदान से कम नहीं है। लिहाजा आज के दिन आपको इस पुत्रदा एकादशी व्रत का फायदा अवश्य ही उठाना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 30 जुलाई को 01 बजकर 16 मिनट से शुरु होकर देर रात  11 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। 

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पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि

इस व्रत की पूजा पति-पत्नी साथ में करे तो उसका विशेष फल मिलता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में में उठकर सभी कामों से निवृत होकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें।  इसके बाद भगवान विष्णु को याद करते पुत्रदा एकादशी व्रत एवं पूजा का संकल्प लें।  भगवान विष्णु की प्रतिमा को चौकी में स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल के साथ-साथ पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद चंदन का तिलक लगाकर वस्त्र पहनाए। इसके बाद पीले फुल, फल, तुलसी, पान, सुपारी, मिठाई आदि चढ़ाए। इसके साथ ही नारियल, बेर, आंवला, लौंग भी अर्पित करें। इसके बाद धूप, दीपक जलाए। इसके पश्चात सहस्रनाम का पाठ और व्रत कथा पढ़ें।  फिऱ भगवान विष्णु की आरती करें। दिनभर निराहार व्रत रखें और रात में फलाहारी करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराकर उसके बाद स्नान करके सूर्य भगवान को अर्घ्य दें उसके बाद पारण करें।

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पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन काल में भद्रावतीपुरी नामक नगर सुकेतुमान नाम का एक राजा राज करता था। इसके विवाह के बाद काफी समय तक उसकी कोई संतान नहीं हुई। इस बात से राजा व रानी काफी दुखी रहा करते थे। राजा हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहता था कि जब उसकी मृत्यु हो जाएगी तो उसका अंतिम संस्कार कौन करेगा? उसके पितृों का तर्पण कौन करेगा।?

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वह पूरे दिन इसी सोच में डूबा रहता था। एक दिन परेशान राजा घोड़े पर सवार होकर वन की तरफ चल दिया। कुछ समय बाद वहा जंगल के बीच में पहुंच गया। जंगह काफी घना था। इस बीच उन्हें प्यास भी लगने लगी। राजा पानी की तलाश में तालाब के पास पहुंच गए। यहां उनके आश्रम दिखाई दिया जहां कुछ ऋृषि रहते थे। वहां जाकर राजा ने जल ग्रहण किया और ऋषियों से मिलने आश्रम में चले गए। यहां उन्होंने ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया जो वेदपाठ कर रहे थे।

राजा ने ऋषियों से वेदपाठ करने का कारण जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है। अगर कोई व्यक्ति इस दिन व्रत करता है और पूजा करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है। यह राजा बेहद खुश हुआ और उसने पुत्रदा एकादशी व्रत रखने का प्रण किया। राजा ने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। साथ ही विष्णु के बाल गोपाल स्वरूप की अराधना भी की। सुकेतुमान ने द्वादशी को पारण किया। इस व्रत का प्रभाव ऐसा हुआ कि उसकी पत्नी ने एक सुंदर संतान को जन्म दिया।

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