Friday, April 26, 2024
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Ganga Dussehra: गंगा दशहरा आज, स्नान करके इस गंगा स्त्रोत का करें पाठ, होगी सारी मनोकामना पूरी

Ganga Dussehra: आज के दिन गंगा स्नान कर इस गंगा स्त्रोत को पाठ करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।

Sushma Kumari Edited by: Sushma Kumari @ISushmaPandey
Updated on: June 09, 2022 11:29 IST
Ganga Dussehra- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Ganga Dussehra

Highlights

  • ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है।
  • इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है।

Ganga Dussehra: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस बार गंगा दशहरा आज यानि 9 जून दिन गुरुवार को है। आज के दिन गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को पापकर्मों से छुटकारा मिलता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति गंगा नदी में स्नान करने न जा सके तो वह किसी अन्य पवित्र नदी में गंगा मैय्या का ध्यान करता हुआ स्नान कर सकता है और अगर आपके लिये वो भी संभव न हो तो अपने घर में ही नहाने के पानी में थोड़ा-सा गंगाजल मिलाकर, उससे स्नान करें और दोनों हाथ जोड़कर मन ही मन गंगा मैय्या को प्रणाम करें। 

 इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है। साथ ही आज के दिन गंगा स्नान कर इस गंगा स्त्रोत को पाठ करें। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी। 

गंगा स्त्रोत

देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे।

शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले।।1।।

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात:।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम।।2।।

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।
दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम।।3।।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।।

पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे।
भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये।।5।।

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे।।6।।

तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात:।
नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे।।7।।

पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे।
इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये।।8।।

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे।।9।।

अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवास: खलु वैकुण्ठे तस्य निवास:।।10।।

वरमिह: नीरे कमठो मीन: कि वा तीरे शरट: क्षीण: ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीन:।।11।।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो य: सजयति सत्यम।।12।।

येषां ह्रदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुख मुक्ति:।
मधुराकान्तापंझटिकाभि: परमानन्द कलितललिताभि:

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम ।
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त:।।

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