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आर्थिक सर्वे 2018: नई कंपनी जियो ने किया दूरसंचार क्षेत्र में विघ्‍न पैदा, भारी ऋण और गलाकाट प्रतियोगिता में डूबी कंपनियां

भारत का दूरसंचार उद्योग रिलायंस जियो के आने के बाद गलाकाट प्रतियोगिता की वजह से घाटे में है, उस पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है और इससे क्षेत्र के निवेशकों, कर्जदाताओं एवं वेंडर्स को नुकसान पहुंच रहा है।

Edited by: Abhishek Shrivastava
Published : January 29, 2018 18:24 IST
reliance jio- India TV Paisa
reliance jio

नई दिल्‍ली। भारत का दूरसंचार उद्योग रिलायंस जियो के आने के बाद गलाकाट प्रतियोगिता की वजह से घाटे में है, उस पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है और इससे क्षेत्र के निवेशकों, कर्जदाताओं एवं वेंडर्स को नुकसान पहुंच रहा है। यह बात सोमवार को संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में कही गई।

आर्थिक समीक्षा के अनुसार भारी ​ऋण बोझ, गला-काट बाजार प्रतिस्पर्धा तथा स्पेक्ट्रम की तर्कहीन ऊंची लागत के चलते देश का दूरसंचार क्षेत्र दबाव में है। इसके साथ ही नीलामी के स्पेक्ट्रम की बहुत बढ़ाकर बोली पर लगाम लगाने के लिए नीतिगत उपाय किए जाने की सलाह दी गई है।

आर्थिक समीक्षा के अनुार स्पेक्ट्रम के साथ-साथ कोयला व अक्षय ऊर्जा स्रोतों के मामले में नीलामी से पारदर्शिता तो आई लेकिन हो सकता है कि यह ऐसे मामलों में बोली में सफल इकाइयों के लिए अभिशाप भी साबित हों जहां कंपनियों ने आस्तियां पाने के लिए काफी बढ़ा चढ़ा कर बोलिया लगाईं हों। समीक्षा में इस स्थिति के प्रत्येक क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभावों के प्रति आगाह किया गया है।

हालांकि यह रेखांकित करना महत्वपूर्ण है कि बढ़ते घाटे, ऋण बोझ, प्रतस्पर्धा में सवाओं की दरें घटाने की होड़ , आय में कमी तथा स्पेक्ट्रम की तर्कहीन ऊंची कीमत से दूरसंचार क्षेत्र दबाव में है। रिलायंस जियो की सेवाओं की ओर एक तरह से संकेत करते हुए इसमें कहा गया है कि एक नई कंपनी की सस्ती डेटा सेवाओं से बाजार ​में विघ्न आया और मौजूदा कंपनियों की आय घटी। इस संकट का काफी प्रतिकूल असर इन दूरसंचार कंपनियों के निवेशकों, ऋणदाताओं, भागीदारों व वेंडरों पर पड़ा।

समीक्षा में सलाह दी गई है कि नीलामी के जरिए खरीदे जाने वाले स्पेक्ट्रम व अन्य आस्तियों की लागत को युक्तिसंगत बनाया जाए। इसके अनुसार कुल दूरसंचार ग्राहकों की संख्याा सितंबर 2017 तक 120.704 करोड़ थी।

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