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दुनिया पर मंडरा रहा है गंभीर संकट, जो कर देगा पेट्रोल-डीजल से लेकर गैस और बिजली सबकुछ महंगा

बिजली कीमत में बहुत अधिक वृद्धि से महंगाई बढ़ने का भी डर है। जो पहले से ही नीति निर्माताओं को अपने अगले कदम पर सावधानीपूर्वक विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है।

India TV Paisa Desk Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: October 08, 2021 14:23 IST
A laborer works inside a coal yard on the outskirts of Ahmedabad, India, in 2017- India TV Paisa
Photo:CNN

A laborer works inside a coal yard on the outskirts of Ahmedabad, India, in 2017

नई दिल्‍ली। सर्दियों का सीजन शुरू होने से पहले वैश्विक ऊर्जा संकट और मांग में वृद्धि ने एक खतरे की घंटी बजा दी है। पहले से ही ऊर्जा संकट दुनिया के सामने खड़ा है और यह आगे आने वाले दिनों में और गंभीर हो सकता है, क्‍योंकि सर्दियों में घरों में रोशनी और गर्मी के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। दुनिया की तमाम सरकारें ऊर्जा संकट की वजह से उपभोक्‍ताओं पर पड़ने वाले प्रभाव को सीमित करने की भरसक कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनका यह भी कहना है कि वे कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने में सक्षम नहीं हैं।

चीन में, नागरिकों के लिए बिजली कटौती पहले से ही शुरू हो चुकी है, जबकि भारत में बिजली संयंत्र कोयले की कमी से जूझ रहे हैं। यूरोप में उपभोक्‍ताओं के वकील पुराना बकाया न चुकाने पर कनेक्‍शन काटने पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। एशिया महाद्वीप में अकेला चीन ही ऊर्जा संकट का सामना नहीं कर रहा है। भारत में भी अगले कुछ दिनों में बिजली की कमी पैदा हो सकती है, क्‍योंकि अधिकांश थर्मल पावर प्‍लांट्स में कोयले का भंडार गंभीर निचले स्‍तर पर पहुंच गया है।

भारत की स्थिति

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था भारत में 135 थर्मल पावर प्‍लांट्स हैं, जिनमें से 63 के पास दो दिन या इससे कम का कोयला भंडार बचा है। 17 पावर प्‍लांट्स के पास कोयले का भंडार बिल्‍कुल समाप्‍त हो चुका है। 75 प्‍लांट्स के पास 5 दिन का कोयला भंडार है। भारत में कुल बिजली उत्‍पादन में थर्मल पावर प्‍लांट्स की हिस्‍सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है।

प्राकृतिक गैस की बढ़ी कीमत

यूरोप में, प्राकृतिक गैस की कीमत 230 डॉलर प्रति बैरल पर है। सितंबर की शुरुआत से इसकी कीमत में 130 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जबकि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में यह वृद्धि आठ गुना अधिक है। ईस्‍ट एशिया में प्राकृतिक गैस की कीमत सितंबर की शुरुआत के बाद से अबतक 85 प्रतिशत बढ़ चुकी है और अभी यह 204 डॉलर प्रति बैरल पर है। प्राकृतिक गैस की अधिक कीमत की वजह से कोयले और तेल की कीमत भी बढ़ रही है, क्‍योंकि कुछ मामलों में इन्‍हें अन्‍य विकल्‍प के रूप में इस्‍तेमाल किया जा सकता है।

केंद्रीय बैंक और निवेशक परेशान

ये हालात तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों और निवेशकों को परेशान कर रहे हैं। ऊर्जा की बढ़ती  कीमतें मुद्रास्फीति को बढ़ाने में योगदान दे रही हैं, जो पहले से ही एक प्रमुख चिंता का विषय है, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था कोविड-19 के सुस्त प्रभावों को दूर करने की कोशिश कर रही है।  सर्दियों में ऊर्जा मांग में वृद्धि इस मामले को और खराब कर सकती है।

समाधान नहीं आसान

सारा संकट ऊर्जा की बढ़ती मांग की वजह से है, क्‍योंकि महामारी के बाद आर्थिक सुधार तेजी से हो रहा है। इस साल असामान्‍य रूप से लंबी और अत्‍यधिक ठंडी सर्दी ने यूरोप में प्राकृतिक गैस के भंडार को कम कर दिया है। ऊर्जा की बढ़ती मांग ने पुनर्भरण प्रक्रिया को बाधित कर दिया है, जो आमतौर पर वसंत और गर्मियों में होती है।

तरल प्राकृतिक गैस के लिए चीन की बढ़ती मांग का मतलब है कि एनएलजी मार्केट इस मांग को पूरा नहीं कर सकता। रूस के गैस निर्यात में गिरावट और असामान्‍य रूप से शांत हवाओं ने समस्‍या को और बढ़ा दिया है। सोसायटी जनरल बैंक के ऊर्जा विश्‍लेषकों का कहना है कि यूरोपीय ऊर्जा पावर कीमतों में मौजूदा वृद्धि अद्वितीय है। इससे पहले बिजली की कीमतों में इतनी अधिक और इतनी तेज वृद्धि कभी नहीं देखी गई।

अमेरिका में भी बढ़ी कीमत

अमेरिका में, प्राकृतिक गैस की कीमत अगस्‍त की शुरुआत के बाद से 47 प्रतिशत बढ़ चुकी है। कोयले की कम मांग ने भी प्राकृतिक गैस की कीमतों को बढ़ाने में योगदान दिया है क्‍योंकि अधिकांश यूरोपियन कंपनियों को कोयला जलाने के लिए कार्बन क्रेडिट के लिए भुगतान करना होता है। ऊर्जा संकट से तेल कीमतों को भी समर्थन मिल रहा है, जो इस हफ्ते अमेरिका में सात साल के उच्‍च स्‍तर पर पहुंच गई।

100 डॉलर तक जाएगा कच्‍चा तेल

बैंक ऑफ अमेरिका ने हाल ही में अनुमान व्‍यक्‍त किया है कि ठंडी सर्दियां ब्रेंट क्रूड की कीमतों में और वृद्धि कर सकती हैं और यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है।

संकट बढ़ाएगा कीमत

आगे आने वाले महीनों में खराब मौसम से तनाव और पैदा होगा। विशेषकर उन देशों में जो बिजली उत्‍पादन के लिए प्राकृतिक गैस पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जैसे इटली और यूके। ब्रिटेन में और भी कठिन स्थिति है क्‍योंकि इसके पास भंडारण क्षमता की कमी है और यह फ्रांस के साथ टूटी हुई बिजली लाइन से होने वाले नुकसान से पहले ही जूझ रहा है।

महंगाई बढ़ने का डर

बिजली कीमत में बहुत अधिक वृद्धि से महंगाई बढ़ने का भी डर है। जो पहले से ही नीति निर्माताओं को अपने अगले कदम पर सावधानीपूर्वक विचार करने के लिए मजबूर कर रहा है। विकासशील देशों में अगस्‍त के दौरान बिजली की कीमत में 18 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। 2008 के बाद यह सबसे तेज वृद्धि है। बिजली की ऊंची कीमत कपड़ों या बाहर खाना खाने जैसे उपभोक्‍ता खर्च पर असर डाल सकती हैं। यदि उद्योगों को बिजली बचाने के लिए अपनी गतिविधियों में कटौती करने के लिए कहा जाता है तो इससे भी अर्थव्‍यवस्‍था को नुकसान पहुंचेगा।

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