Thursday, May 02, 2024
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भारत की 146 अरब डॉलर वाली IT इंडस्‍ट्री संकट में, यूरोपियन बिजनेस के भविष्‍य को लेकर बढ़ी चिंता

भारत की 146 अरब डॉलर की आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्‍ट्री के लिए यूरोप दूसरा सबसे बड़ा बाजार है, जहां से इसका तकरीबन 30 फीसदी रेवेन्‍यू पैदा होता है।

Abhishek Shrivastava Abhishek Shrivastava
Updated on: June 26, 2016 10:00 IST
 नई दिल्‍ली। ग्रेट ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन (ईयू) से बाहर निकलने के लिए 23 जून को हुए जनमत संग्रह के बाद भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्‍ट्री कुछ बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए स्‍वयं को हौसला देने में जुटी हैं। भारत की 146 अरब डॉलर की आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्‍ट्री के लिए यूरोप दूसरा सबसे बड़ा बाजार है, जहां से इसका तकरीबन 30 फीसदी रेवेन्‍यू पैदा होता है। बहुत सी आईटी कंपनियों के ईयू मुख्‍यालय ब्रिटेन में स्थित हैं और वह ब्रिटेन का इस्‍तेमाल पूरे यूरोप में बिजनेस के लिए एक गेटवे के तौर पर करती हैं। 800 भारतीय आईटी कंपनियों की वर्तमान में यूके में उपस्थिति है और यहां इनके तकरीबन 110,000 कर्मचारी हैं।

चिंता की यह है वजह

भारतीय कंपनियों के सामने प्रमुख चुनौती ब्रिटिश पाउंड में भारी गिरावट, यूके और यूरोप के बीच भविष्‍य की नीतियों के प्रति अनिश्चितता तथा फाइनेंशियल और बैंकिंग सिस्‍टम में बदलाव को लेकर है। भारतीय आईटी इंडस्‍ट्री की सर्वोच्‍च संस्‍था नैसकॉम ने एक बयान में कहा है ब्रिटिश पाउंड की कीमत में गिरावट आई है, जो कि मौजूदा कई कॉन्‍ट्रैक्‍ट्स पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, इन पर फि‍र से बातचीन करने की जरूरत होगी। जनमत संग्रह के परिणामों के बाद पाउंड की वैल्‍यू डॉलर की तुलना में पिदले 30 साल के निचले स्‍तर पर आ गई है।

कंपनियों का बढ़ेगा खर्च  

नैसकॉम का कहना है कि भारतीय आईटी कंपनियों को विघटन के बाद यूरोप और यूके के लिए अलग-अलग ऑफि‍स स्‍थापित और अलग-अलग टीम को हायर करना पड़ सकता है। इससे निकट भविष्‍य में आईटी कंपनियों पर भारी खर्च का बोझ बढ़ जाएगा। बेंगलुरु स्थि‍त माइंडट्री के सीईओ रॉसटो रावानन ने कहा कि उन्‍हें अब यूके और ईयू में सभी कंपनियों के साथ अपने बिजनेस और आईटी प्राथमिकताओं को फि‍र से पुनर्गठित करना होगा। उन्‍होंने कहा कि वह आगे के घटनाक्रम पर नजदीकी से नजर रखे हुए हैं और अपने ग्राहकों और प्राथमिकताओं के मुताबिक अपनी योजना बनाएंगे।

निकट-भविष्‍य पर प्रभाव   

23 जून को अधिकांश आईटी कंपनियों के शेयर में गिरावट आई है। बेंचमार्क एसएंडपी बीएसई इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी इंडेक्‍स 2.1 फीसदी गिरावट के साथ बंद हुआ। इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल के शेयर 1 से 4 फीसदी गिरावट में रहे।

भारतीय आईटी कंपनियों के शेयरों में यह गिरावट ब्रिटिश पाउंड के कमजोर होने की वजह से आई है। 24 जून को पाउंड डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी और भारतीय रुपए के मुकाबले 8 फीसदी से ज्‍यादा कमजोर हुआ है। भारतीय आईटी कंपनियां, जो कि 85 से 90 फीसदी के बीच अपना रेवेन्‍यू भारत के बाहर से हासिल करती हैं, अचानक झटकों से बचने के लिए करेंसी को हेज करती हैं। प्रत्‍येक कंपनी का हेजिंग साइकिल अलग-अलग होता है और यह 90 दिन से लेकर 12 महीने या इससे भी ज्‍यादा का होता है। टेक महिंद्रा के सीईओ सीपी गुरुनानी ने एक बयान में कहा कि हमारी प्राप्‍तियों पर बाजारों का असर पड़ सकता है, जो मौजूदा तिमाही पर भी प्रतिकूल असर डाल सकता है।

देखो और इंतजार करो की स्थिति

कुल मिलाकर आईटी कंपनियों के लिए यह देखो और इंतजार करो जैसी स्थिति है, उन्‍हें यूके की भविष्‍य की बिजनेस पॉलिसी आने तक का इंतजार करना होगा। भारती की तीसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी विप्रो ने कहा है कि वह ब्रेक्जिट के संभावित प्रभावों का अध्‍ययन कर रही है, इसमें श्रम की गतिशीलता और फाइनेंशियल सिस्‍टम में बदलाव जैसे कई मुद्दे शामिल हैं। यूके में विप्रो के तकरीबन 4,000 कर्मचारी हैं। गुरुनानी ने कहा कि यह एक लांग-टम एडजस्‍टमेंट है जिसमें सभी ट्रेड और अन्‍य पॉलिसियों में समायोजन करने की जरूरत होगी। भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इंफोसिस के सीईओ विशाल सिक्‍का ने 18 जून को वार्षिक आम सभा में कहा था कि यदि यूके ईयू से बाहर निकलने का फैसला करना है तो इससे कंपनी के बिजनेस पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है।

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