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Inflation: खाने-पीने के सामान कब तक होंगे सस्ते, महंगाई डायन कब छोड़ेगी पीछा, आई यह अच्छी खबर

खुदरा मुद्रास्फीति मई में सालाना आधार पर 7.04 प्रतिशत बढ़ी, जबकि अप्रैल में यह आंकड़ा 7.79 प्रतिशत था। दूसरी ओर थोक मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 15.88 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्चस्तर पर पहुंच गई।

Alok Kumar Edited by: Alok Kumar @alocksone
Published on: June 19, 2022 15:55 IST
Inflation- India TV Paisa
Photo:INDIA TV

Inflation

Highlights

  • कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति पर जोर दिया जाएगा
  • आने वाले समय में रेपो रेट में 0.80 प्रतिशत की और बढ़ोतरी होगी
  • खाद्य तेल की कीमतों में प्रमुख कंपनियों ने पहले ही कमी की घोषणा की

Inflation:सामान्य मानसून से बंपर कृषि उत्पादन और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी से साल के अंत तक महंगाई के मोर्चे पर राहत मिल सकती है। अर्थशास्त्रियों ने यह राय जताई है। खाद्य वस्तुओं और ईंधन के महंगा होने से मुद्रास्फीति की दर कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर है। हालांकि, सरकार पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क को और कम करने जैसे राजकोषीय उपायों से भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कीमतों को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति पर जोर दिया जाएगा।

खुदरा महंगाई में मामूली राहत लेकिन थोक बढ़ी

खुदरा मुद्रास्फीति मई में सालाना आधार पर 7.04 प्रतिशत बढ़ी, जबकि अप्रैल में यह आंकड़ा 7.79 प्रतिशत था। दूसरी ओर थोक मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 15.88 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्चस्तर पर पहुंच गई। मूल्यवृद्धि का तीन-चौथाई हिस्सा खाद्य पदार्थों से आ रहा है और सामान्य मानसून के चलते इसमें राहत मिलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक पहले ही प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.90 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है और आने वाले समय में इसमें 0.80 प्रतिशत की बढ़ोतरी और हो सकती है। खाद्य तेल की कीमतों में प्रमुख कंपनियों ने पहले ही कमी की घोषणा की है। 

बेहतर मानूसन से कम होंगी कीमतें 

एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के अर्थशास्त्री विश्रुत राणा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर जिंस कीमतें मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी के लिए एक प्रमुख प्रेरक कारक हैं और आगे खाद्य कीमतें मानसून पर निर्भर करेंगी। बेहतर मानसून से कृषि उत्पादन बढ़ेगा और कीमतों पर लगाम लगेगी। राणा ने बताया, कम उत्पाद शुल्क, कम मूल्यवर्धित कर, या कृषि उपज पर प्रत्यक्ष सब्सिडी जैसे कुछ अतिरिक्त नीतिगत विकल्प हैं, लेकिन फिलहाल मौद्रिक नीति पर जोर दिए जाने की संभावना है। हमें आगे नीतिगत दरों में 0.75 प्रतिशत की और वृद्धि की उम्मीद है।

आयात शुल्क में कटौती का रास्ता 

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रमुख अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि वस्तुओं का शुद्ध आयातक होने के नाते भारत इस मोर्चे पर बहुत कुछ नहीं कर सकता है। हालांकि, प्रभाव को कम करने के लिए आयात शुल्क में कटौती की जा सकती है। हालांकि, इसकी अपनी सीमाएं हैं। डेलॉयट इंडिया के अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि मुद्रास्फीति वैश्विक और घरेलू स्तर पर आपूर्ति श्रृंखला के चलते है। ईवाई इंडिया के मुख्य नीति सलाहकार डी के श्रीवास्तव ने कहा कि आपूर्ति बाधाओं को कम करने के लिए राजकोषीय नीतियां प्रभावी हो सकती हैं।

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