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ITR Filing: 31 जुलाई तक आईटीआर फाइल न करने से हो सकता है आपको ये नुकसान, नए नियम का होगा असर

अगर आप नई टैक्स व्यवस्था के बजाय पुरानी टैक्स व्यवस्था को चुनना पसंद करते हैं, तो आपको अपना आयकर रिटर्न दाखिल करने से पहले फॉर्म 10IEA जमा करना आवश्यक है।

Edited By: Sourabha Suman @sourabhasuman
Published : Jul 05, 2024 13:02 IST, Updated : Jul 05, 2024 13:03 IST
नई कर व्यवस्था में अपडेट किए गए टैक्स स्लैब और रियायती दरें शामिल हैं।- India TV Paisa
Photo:FILE नई कर व्यवस्था में अपडेट किए गए टैक्स स्लैब और रियायती दरें शामिल हैं।

अगर आप टैक्सपेयर हैं तो जाहिर है आप इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) भी हर साल फाइल करते हैं। हर वित्तीय वर्ष में आईटीआर फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई है। लेकिन अगर आप समय से पहले तक अपना रिटर्न फाइल नहीं करते हैं तो आपको फिर इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। क्याोंकि अब 31 जुलाई का काउंटडाउन शुरू हो चुका है, आपको इस काम को लेकर सक्रिय हो जाना चाहिए, आखिरी तारीख तक का इंतजार नहीं करना चाहिए। बेशक, जो करदाता 31 जुलाई तक फाइल नहीं करते हैं तो इसके बावजूद उनके पास वित्तीय वर्ष 2023-2024/मूल्यांकन वर्ष 2024-2025 के लिए 31 दिसंबर, 2024 तक लेट रिटर्न दाखिल करने का विकल्प है, लेकिन आपको इस पर नुकसान उठाना होगा।

क्या होगा नुकसान

आयकर विभाग के ताजा नियमों के मुताबिक,अगर कोई करदाता समयसीमा तक अपना आईटीआर दाखिल करने में विफल रहता है, तो वह ऑटोमैटिक तरीके से नई टैक्स व्यवस्था के दायरे में आ जाएगा, जिससे उस वित्तीय वर्ष के लिए पुरानी व्यवस्था को चुनने की उनकी क्षमता खत्म हो जाएगी। बिजनेस टुडे की खबर के मुताबिक, अदगर कोई व्यक्ति आईटीआर दाखिल करने की आखिरी तारीख से चूक जाता है, तो नई टैक्स व्यवस्था के तहत लेट आईटीआर दाखिल किया जाएगा।

आयकर रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने में यह ध्यान रखना अहम है कि करदाताओं के पास टैक्स व्यवस्था चुनने का विकल्प होता है। 31 जुलाई की समय सीमा को पूरा करने का मतलब है कि आप वेतनभोगी व्यक्तियों पर लागू टैक्स व्यवस्था भी चुन रहे हैं।

नई टैक्स व्यवस्था

देश में फिलहाल में दो टैक्स व्यवस्थाएं हैं- पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था। नई व्यवस्था 2020 में पेश किया गया था। नई व्यवस्था में अपडेट किए गए टैक्स स्लैब और रियायती दरें शामिल हैं, लेकिन यह धारा 80CCD (2) और 80JJA (व्यावसायिक आय के लिए) के तहत कुछ कटौती और छूट का दावा करने पर बैन लगाती है। यहां एक बात समझ लें कि अगर व्यक्ति सक्रिय रूप से टैक्स व्यवस्था नहीं चुनते हैं, तो डिफॉल्ट विकल्प नई टैक्स व्यवस्था होगी।

व्यक्तिगत करदाताओं को और ज्यादा राहत मिल सके, इसके लिए नई टैक्स व्यवस्था लाई गई। इसके उलट, पुरानी कर व्यवस्था एक प्रगतिशील टैक्स ढांचे का पालन करती है जिसमें कई तरह की छूट और कटौती शामिल हैं। इस सिस्टम के तहत, हाई इनकम कैटेगरी हाई टैक्स दरों के अधीन हैं।

ITR दाखिल करते समय टैक्स सिस्टम बदलने का तरीका

अगर आप नई टैक्स व्यवस्था के बजाय पुरानी टैक्स व्यवस्था को चुनना पसंद करते हैं, तो आपको अपना आयकर रिटर्न दाखिल करने से पहले फॉर्म 10IEA जमा करना आवश्यक है। यह विशेष फॉर्म केवल उन व्यक्तियों और हिंदू अविभाजित परिवारों (HUF) से संबंधित है जो व्यवसाय या पेशे से आय अर्जित करते हैं और ITR-3 या ITR-4 दाखिल करते हैं। दूसरी तरफ, अगर आप आईटीआर-1 या आईटीआर-2 दाखिल करने के लिए पात्रता हासिल करते हैं, तो आपके पास आईटीआर फॉर्म के भीतर ही पुरानी टैक्स व्यवस्था को सीधे चुनने की सुविधा है।

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