
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपने ज्ञान और नीति के बल पर अपने शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को शासक बना दिया था। चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में कई ऐसी शिक्षाएं दी हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। चाणक्य की इन्हीं शिक्षाओं में से एक के बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में जानकारी देंगे। हम आपको बताएंगे कि गुरु, पत्नी, बंध-बांधवों और धर्म को लेकर चाणक्य ने क्या कहा है।
श्लोक
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या नि:स्नेहान्बान्धवांस्यजेत्।।
त्याग दें ऐसा धर्म
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि (त्यजेद्धर्म दयाहीनं) ऐसे धर्म को त्याग देना चाहिए जिसमें दया न हो, यानि जो धर्म दया का पाठ नहीं सिखाता उस धर्म से व्यक्ति को दूरी बना लेनी चाहिए। दयाहीन धर्म में चाणक्य निरर्थक बताते हैं। जो धर्म दया भाव से भरा है वहीं सच्चा धर्म है।
ऐसे गुरु से न लें शिक्षा
विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्- आचार्य चाणक्य के अनुसार, ऐसे गुरु का त्याग कर देना चाहिए जिसके पास कोई विद्या न हो। यानि अपनी बातों से आपको लुभाने वाले लेकिन आपको ज्ञान न दे पाने वाले गुरु से आपको दूरी बना देनी चाहिए। ऐसा गुरु आपके भविष्य को अंधकार में डाल सकता है।
ऐसी पत्नी को त्याग दें
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या- अगर आपकी पत्नी क्रोध मुखी है यानि बहुत अधिक क्रोध करने वाली है, तो उसे भी त्यागने की सलाह आचार्य चाणक्य देते हैं। क्रोध करने वाली स्त्री घर-परिवार को कभी व्यवस्थित नहीं रख सकती है और इसके कारण परिवार में कलह-कलेश कभी खत्म नहीं होते।
ऐसे भाई-बहनों से बना लें दूरी
नि:स्नेहान्बान्धवांस्यजेत्- चाणक्य कहते हैं कि जिन भाई-बहनों के मन में आपके प्रति प्रेम और स्नेह की भावना नहीं है, उनसे भी आपको दूर हो जाना चाहिए। स्नेहहीन बन्धु-बांधव आपके जीवन में कोई भी जगह नहीं रखते।
आचार्य चाणक्य की ये बातें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितने उनके काल में थी। वर्तमान में आपको ऐसे गुरु मिल जाएंगे जिनके पास ज्ञान के अलावा बाकी हर चीज मिल सकती है। अच्छे गुरु का मिलना आज भी आसान नहीं है। वहीं क्रोध पति-पत्नी के रिश्ते में अलगाव की वजह आज भी है, क्रोध कई शादियों के टूटने की वजह है। भाई-बहनों की स्नेहहीनता तब भी समाज में व्याप्त थी और आज भी है। धर्म के आडंबर आज भी समाज में परेशानियों का कारण बन रहे हैं। चाणक्य ने सालों पहले ये बातें कहीं हैं, लेकिन इन्हें पढ़कर लगता है जैसे ये आज के समय के लिए ही लिखी गई हों।
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