Saturday, July 05, 2025
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आज समाप्त हो रही जगन्नाथ यात्रा, अब घर लौटेंगे भगवान जगन्नाथ; जानें क्या है 'बाहुड़ा'

एक बार फिर पुरी भक्तिभाव और परंपरा से सराबोर हो गया है। आज भगवान जगन्नाथ अपने घर लौटेंगे। इस दौरान लाखों श्रद्धालु हरि बोल के नारे और भगवा-सफेद रंग की लहरों के साथ पुरी का ग्रांड रोड पर दिखेंगे। बाहुड़ा सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का भी पर्व है।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jul 05, 2025 9:24 IST, Updated : Jul 05, 2025 9:47 IST
भगवान जगन्नाथ के रथ
Image Source : INDIA TV भगवान जगन्नाथ के रथ

भगवान जगन्नाथ अपने मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर में आराम करने के बाद अब अपने मंदिर लौटने जा रहे हैं। इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटे हुए हैं। गुंडिचा मंदिर में भगवान ने 9 दिनों तक दिव्य विश्राम किया, अब भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मूल निवास श्रीमंदिर लौटने वाले हैं। इस पावन यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है, जो हर साल होने वाली रथ यात्रा की वापसी यात्रा है।

क्या है बाहुड़ा यात्रा?

बता दें कि ‘बाहुड़ा’ शब्द ओड़िया भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘वापसी’। इस दिन भगवान गुंडिचा मंदिर से वापस लौटते हैं। भक्तों की भारी भीड़ को देखते हुए पुरी शहर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। बाहुड़ा यात्रा, बाहर जाने वाली रथ यात्रा की तरह ही होती है, बस दिशा उल्टी होती है। तीनों विशाल रथ यानी भगवान बलभद्र का तालध्वज, देवी सुभद्रा का दर्पदलन, और भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष पहले ही ‘दक्षिण मोड़’ (दक्षिण की ओर मुड़ना) ले चुके हैं और अब गुंडिचा मंदिर के नकाचना द्वार के पास खड़े हैं।

परंपरा के अनुसार, भगवान रथ खींचे जाने के दौरान बीच में मौसी मां के मंदिर (अर्धासनी मंदिर) में थोड़ी देर रुकेंगे। वहां उन्हें पोड़ा पीठा नाम की खास मिठाई चढ़ाई जाएगी, जो चावल, गुड़, नारियल और दाल से बनी होती है।

4 बजे तड़के हुई आरती

दिन की शुरुआत तड़के 4:00 बजे मंगला आरती से हुई। इसके बाद तड़प लगी, रोजा होम, अबकाश और सूर्य देव की पूजा की गई। फिर द्वारपाल पूजा, गोपाल बलभ और सकाला धूप जैसे अनुष्ठान हुए। सेनापतलगी अनुष्ठान के जरिए भगवानों को यात्रा के लिए तैयार किया गया।

दोपहर शुरू होगी भगवानों को रथ तक लाने की रस्म

'पहंडी' यानी (भगवानों को रथ तक लाने की रस्म) दोपहर करीब 12 बजे शुरू होने की उम्मीद है और 2:30 बजे तक पूरी हो जाएगी। इसके बाद गजपति महाराज दिव्यसिंह देव छेरा पहंरा करेंगे। इस रस्म में वे सोने की झाड़ू से रथों की सफाई कर भगवानों के प्रति समर्पण और समानता का संदेश देते हैं। जब रथों में लकड़ी के घोड़े जोड़ दिए जाएंगे, तब शाम 4:00 बजे से भक्त रथ खींचना शुरू करेंगे। सबसे पहले भगवान बलभद्र का तालध्वज चलेगा, फिर देवी सुभद्रा का दर्पदलन और अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष चलेगा।

आगे क्या होगा?

6 जुलाई को सुनाबेशा होगा, जब भगवान रथों पर स्वर्ण आभूषणों से सजेंगे। 8 जुलाई को नीलाद्री बिजे अनुष्ठान होगा, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा अपने श्रीमंदिर में वापस प्रवेश करेंगे और रथ यात्रा का समापन होगा। 

(ओडिशा से शुभम कुमार की रिपोर्ट)

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