Friday, March 29, 2024
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पश्चिम बंगाल में कोविड-19 से स्वस्थ होने की दर बढ़कर 85.19 प्रतिशत हुई

पश्चिम बंगाल में रविवार को कोविड-19 के 3,207 रोगी स्वस्थ हुए और राज्य में संक्रमण से उबरने की दर बढ़कर 85.19 प्रतिशत हो गयी है। 

IndiaTV Hindi Desk Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 06, 2020 22:33 IST
West Bengal Kolkata Coronavirus latest updates till 6 September- India TV Hindi
Image Source : PTI West Bengal Kolkata Coronavirus latest updates till 6 September

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में रविवार को कोविड-19 के 3,207 रोगी स्वस्थ हुए और राज्य में संक्रमण से उबरने की दर बढ़कर 85.19 प्रतिशत हो गयी है। स्वास्थ्य विभाग ने एक बुलेटिन में यह जानकारी दी। शनिवार को यह दर 84.86 प्रतिशत थी। अभी तक राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण से 1,54,008 रोगी उबर चुके हैं। बुलेटिन के अनुसार एक दिन में संक्रमण से 52 और लोगों की मौत के बाद मृतक संख्या 3,562 हो गयी है, वहीं संक्रमण के 3,087 नये मामले आने से संक्रमितों की कुल संख्या 1,80,788 हो गयी है। इस समय राज्य में 23,218 रोगी इलाज करा रहे हैं या पृथक-वास में हैं।

यादवपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर को सोशल मीडिया पर जातिवादी अपशब्द कहे गए 

कोविड-19 महामारी के दौरान अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाएं कराने के बारे में एक पोस्ट करने के बाद यादवपुर विश्वविद्यालय की एक प्रोफेसर को सोशल मीडिया पर जातिवादी हमलों का शिकार होना पड़ा। यादवपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेयूटीए) और अखिल बंगाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (एबीयूटीए) ने यादवपुर विश्वविद्यालय में इतिहास की असोसिएट प्रोफेसर मरूना मुर्मू की फेसबुक पर एक सामान्य पोस्ट के लिये “दुर्भावनापूर्ण जातिसूचक ट्रोलिंग” की रविवार को निंदा की।

मुर्मू ने फेसबुक पर डाली गए एक पोस्ट में अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाओं को टाले जाने की जरूरत का जिक्र करते हुए लिखा था कि “एक वर्ष किसी की पूरी जिंदगी से ज्यादा कीमती नहीं हो सकता।’’ इस पोस्ट के बाद दो सितंबर को सोशल मीडिया पर वह जातिवादी अपशब्दों के साथ ही दुर्भावनापूर्ण ट्रोलिंग का शिकार बनाई गईं। यह सबकुछ बेथ्यून कॉलेज की एक छात्रा द्वारा उनकी फेसबुक वॉल पर टिप्पणी के बाद शुरू हुआ, जिसमें उसने कहा था कि “ऐसी सोच आरक्षण केंद्रित मानसिकता से आती है। इसमें यह संकेत देने की कोशिश की गई कि आदिवासी होने की वजह से मुर्मू को शैक्षणिक रूप से फायदा मिला।

प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक और उसके बाद जेएनयू से शोध करने वाली मुर्मू ने इस बयान पर नाराजगी जताते हुए अपने जवाब में कहा कि व्यक्तिगत तौर पर दी गई उनकी राय को कैसे एक छात्रा ने अनदेखा किया और हैरानी जताई कि क्या सिर्फ आदिवासी उपनाम लगे होने के कारण कोई अक्षम और अयोग्य कैसे ठहराया जा सकता है। इस बयान के बाद और ट्रोलिंग होने लगी और बेथ्यून कॉलेज की तीसरे वर्ष की छात्रा के समर्थन में कई और लोगों ने टिप्पणी की तो वहीं प्रोफेसर के समर्थन में भी लोगों ने टिप्पणी करनी शुरू कर दी। बेथ्यून कॉलेज छात्रों की समिति ने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी करते हुए कहा, “यह बेहद आहत करने वाला और निंदनीय है कि हमारे कॉलेज की एक छात्रा को अब भी भारत में जातीय समीकरण और वंचितों के लिये आरक्षण की जरूरत का भान नहीं है। यह घटना बेहद शर्मनाक है और इससे संस्थान की बदनामी हुई है।”

समिति ने कहा कि वह संस्थान की छात्रा के बयान की निंदा करती है और प्रोफेसर मुर्मू के रुख का समर्थन करती है। जेयूटीए के महासचिव पार्थ प्रतिम रे ने कहा कि प्रोफेसर मुर्मू की योग्यता और सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने वाला ऐसा हमला, सिर्फ जाधवपुर विश्वविद्यालय में ही नहीं बल्कि देश में कहीं के भी हर शिक्षक पर हमला है। एबीयूटीए ने भी मुर्मू की ट्रोलिंग की निंदा करते हुए कहा कि वह फासीवादी ताकतों की पीड़ित हैं, जो स्वतंत्र सोच की हवा को दूषित करना चाहते हैं और उदारवादी ताकतों को कुचलना चाहते हैं।

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