Wednesday, April 17, 2024
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तख्तापलट के बाद 'हिंसा' की आग में जल रहा जो म्यांमार, वहां भी चीन को दिखा 'लालच', जानिए कैसे तंगी झेल रहे देश में मचा रहा लूट

चीन के लिए म्यांमार ही सबसे बड़ा खजाना बना हुआ है। वो यहां से भारी मात्रा दुर्लभ संसाधन लूट रहा है। म्यांमार घरेलू उपयोग के साथ-साथ दुनिया को निर्यात हो सके, इसके लिए चीन को दुर्लभ अर्थ मेटल के प्रमुख स्रोत के रूप में उभर रहा है।

Shilpa Written By: Shilpa
Published on: July 17, 2022 17:45 IST
Myanmar China Rare Earth Minerals- India TV Hindi
Image Source : PTI Myanmar China Rare Earth Minerals

Highlights

  • चीन को 140,000 टन से अधिक खनिज दिए गए
  • अमेरिका को म्यांमार से 38,000 टन खनिज मिला है
  • चीन को खनिजों का निर्यात काफी तेजी से बढ़ा है

Myanmar China Rare Earth Minerals: म्यांमार... वही देश जो बीते साल सैन्य तख्तापलट के बाद दुनियाभर में खूब सुर्खियों में रहा। यहां 1 फरवरी के दिन सैन्य अधिकारियों ने आम जनता द्वारा चुने गए नेताओं को संसद का सत्र शुरू होने से ठीक पहले नजरबंद कर दिया था। साथ ही देश में एक साल के लिए इमरजेंसी लगा दी। लोकतंत्र की मांग करते हुए प्रदर्शन कर रहे लोगों को सीधा सिर में गोली मारकर हजारों की हत्या कर दी, जबकि हजारों की लोगों को जेलों में ठूंस दिया। इसी बीच देश में गृह युद्ध शुरू हो गया। 

विद्रोही संगठनों ने सेना के खिलाफ लोहा मोल लेना शुरू कर दिया। कोरोना काल में देश के हालात और बिगड़े। इन सब बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देश की आर्थिक हालत कैसी होगी। बावजूद इसके चीन के लिए म्यांमार ही सबसे बड़ा खजाना बना हुआ है। वो यहां से भारी मात्रा दुर्लभ संसाधन लूट रहा है। म्यांमार घरेलू उपयोग के साथ-साथ दुनिया को निर्यात हो सके, इसके लिए चीन को दुर्लभ अर्थ मेटल के प्रमुख स्रोत के रूप में उभर रहा है। 

गैरकानूनी खनन तेजी से बढ़ रहा

म्यांमार के काचिन राज्य में बीते साल हुए तख्तापलट के बाद से गैरकानूनी खनन गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। खासतौर से उन इलाको में जिनकी सीमा चीन से मिलती है। ये वही इलाके हैं, जिसे नियंत्रण म्यांमार सेना के समर्थन वाले लड़ाके नियंत्रित करते हैं। ये बात इस मामले से जुड़ी जानकारी रखने वाले लोगों ने दी है। इन लोगों का कहना है कि पृथ्वी से जो दुर्लभ खनिज खनन के माध्यम से निकाले जा रहे हैं, उसका निर्यात चीन को हो रहा है। इससे स्थानीय पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। 

म्यांमार अब दुर्लभ खनिजों के मामले में चीन का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। इन खनिजों की चीन को आधी से अधिक आबादी म्यांमार से ही हो रही है। जो दुर्लभ खनिज म्यांमार से चीन को निर्यात होते हैं, उनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक कार और अन्य हाई-टेक प्रोडक्ट बनाने के लिए होता है। इनका निर्यात काफी तेजी से बढ़ा है। चीन की तरफ से आधिकारिक बयान में कहा गया है कि मई 2017 और अक्टूबर 2021 तक 140,000 टन से अधिक दुर्लभ खनिज म्यांमार से चीन को निर्यात हुए हैं। जिनकी कीमत 1 बिलियन डॉलर से अधिक है।

Myanmar China Rare Earth Minerals

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Myanmar China Rare Earth Minerals

140,000 टन खनिज चीन गया

साल 2020 में वैश्विक स्तर पर लगभग 240,000 टन दुर्लभ खनिजों का खनन किया गया, जिसमें चीन को 140,000 टन दिया गया है, इसके बाद अमेरिका को 38,000 टन मिला है। वहीं म्यांमार ने खुद के लिए 30,000 टन रखा है। चीन म्यांमार के मीडियम और हेवी दुर्लभ खनिजों पर बहुत अधिक निर्भर है। साल 2018 से म्यांमार चीन को खनिजों का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है।

दिसंबर 2021 में चीनी सरकार को मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि साल 2020 में म्यांमार से चीन को दुर्लभ खनिजों का आयात हर साल 23 प्रतिशत बढ़कर लगभग 35,500 टन हो गया है, जो सभी आयातों का 74 प्रतिशत है। म्यांमार-चीन सीमा के पास लगभग दस दुर्लभ अर्थ खनिज खदानें खोली गई हैं। काचिन राज्य खनन विभाग के अनुसार, कई निरीक्षणों को करने के बाद चिपवी में 2019 और 2020 में चीनी श्रमिकों के साथ खोज करने पर कई अवैध खदानें मिली हैं।

जलमार्गों और भूजल को पहुंच रहा नुकसान

इस विभाग का कहना है कि सशस्त्र समूहों की इस काम में भागीदारी ने उद्योग को रेगुलेट करना चुनौतीपूर्ण बना दिया है। काचिन स्टेट कनजर्वेशन ग्रुप के ब्रैंग अवंग ने म्यांमार के स्थानीय मीडिया से बातचीत में कहा कि कि खदानें जलमार्गों और जमीन के नीचे के पानी को प्रदूषित कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं। दुर्लभ अर्थ खनिजों के खनन के कारण क्षेत्र के दर्जनों गांव अब प्रदूषित मिट्टी और पानी से परेशान हैं। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुर्लभ अर्थ खनिजों की बढ़ती मांग के कारण ही म्यांमार में इनका गैर कानूनी खनन बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये मांग इसलिए बढ़ रही है क्योंकि विकसित देश इलेक्ट्रिक कार और विंड टर्बाइन्स का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं।  

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