Thursday, January 01, 2026
Advertisement
  1. Hindi News
  2. विदेश
  3. अमेरिका
  4. प्रयोगशाला निर्मित कोरोना वायरस जैसे 'कमजोर वायरस' से दवा, टीके की खोज में मिल सकती है मदद: अध्ययन

प्रयोगशाला निर्मित कोरोना वायरस जैसे 'कमजोर वायरस' से दवा, टीके की खोज में मिल सकती है मदद: अध्ययन

अध्ययन में पाया गया कि प्रयोगशाला कर्मियों के लिये यह सुरक्षा उपाय जहां जरूरी हैं वहीं इनसे कोविड-19 के इलाज के लिये दवा या टीके की तलाश के काम की गति बाधित होती है क्योंकि बहुत से वैज्ञानिकों के पास आवश्यक जैवसुरक्षा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : Jul 22, 2020 05:28 pm IST, Updated : Jul 22, 2020 05:28 pm IST
Lab-made 'mild virus' mimics coronavirus, can aid drug, vaccine discovery: Study- India TV Hindi
Image Source : AP Lab-made 'mild virus' mimics coronavirus, can aid drug, vaccine discovery: Study

वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने आनुवांशिक रूप से संशोधित एक 'कमजोर विषाणु' तैयार किया है जो नए कोरोना वायरस की तरह ही इंसानों में एंटीबॉडीज पैदा करता है, लेकिन इससे कोई गंभीर बीमारी नहीं होती। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे दुनिया भर में और प्रयोगशालाएं कोविड-19 के खिलाफ लोगों पर दवा और टीके की सुरक्षा जांच कर सकेंगी। अमेरिका के सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने वेसिकुलर स्टोमेटाइटिस वायरस (वीएसवी) के एक जीन को नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-टू के जीन से बदल दिया। दुनिया भर के विषाणुरोग विशेषज्ञ प्रयोगों में इसका व्यापक इस्तेमाल करते हैं। 

सेल होस्ट एंड माइक्रोब नाम के जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बदलाव के फलस्वरूप बना संकर विषाणु कोशिकाओं को संक्रमित करता है और मानव शरीर में एंटीबॉडीज सार्स-सीओवी-2 की तरह ही इसकी पहचान करती हैं, लेकिन इसे साधारण प्रयोगशाला सुरक्षा परिस्थितियों के तहत संभाला जा सकता है। नया कोरोना वायरस क्योंकि हवा में तीव्र दबाव से आसानी से फैल सकता है और संभावित रूप से जानलेवा भी है इसलिये वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पर उच्च स्तरीय जैव सुरक्षा वाली परिस्थितियों के तहत ही अध्ययन किया जाता है। उन्होंने कहा कि संक्रमणकारी विषाणु को देख रहे वैज्ञानिकों को पूरे शरीर को ढकने वाला जैव सुरक्षा सूट पहनना चाहिए और प्रयोगशालाओं के अंदर कई निषेध स्तरों के साथ काम करना चाहिए। इसके साथ ही वहां हवा के निकलने के लिये विशेषीकृत व्यवस्था भी होनी चाहिए। 

अध्ययन में पाया गया कि प्रयोगशाला कर्मियों के लिये यह सुरक्षा उपाय जहां जरूरी हैं वहीं इनसे कोविड-19 के इलाज के लिये दवा या टीके की तलाश के काम की गति बाधित होती है क्योंकि बहुत से वैज्ञानिकों के पास आवश्यक जैवसुरक्षा सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इस अध्ययन की वरिष्ठ सह-लेखक सीन वेह्लन ने कहा, 'मेरे पास इतने कम समय में इतनी वैज्ञानिक सामग्री के लिये कभी अनुरोध नहीं आया।' उन्होंने कहा, 'हमनें इस विषाणु का वितरण अर्जेटीना, ब्राजील, मैक्सिको, कनाडा और स्वाभाविक रूप से संपूर्ण अमेरिका में वितरित किया है।' 

वैज्ञानिकों ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 के एक ऐसे स्वरूप, जिसे संभालना आसान होगा, को बनाने के क्रम में उन्होंने वीएसवी से शुरुआत की जो उनके मुताबिक 'आनुवांशिक रूप से बदलाव करने के लिये काफी सहज और कम हानिकारक है।' शोधकर्ताओं के मुताबिक वीएसवी मुख्य रूप से मवेशियों, घोड़ों और सूअरों में पाया जाने वाला विषाणु है और विषाणु रोग विज्ञान प्रयोगशालाओं में इसका काफी इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा कि यह कभी कभी लोगों को भी संक्रमित करता है जिससे उन्हें हल्की जुकाम जैसी बीमारी होती है जो तीन से पांच दिन तक रहती है। 

शोधकर्ताओं ने वीएसवी की सहत प्रोटीन की जीन हटा दी जिसका इस्तेमाल वह कोशिका से चिपकने और उसे संक्रमित करने के लिये करता था और उसकी जगह सार्स-सीओवी-2 की एक जीन लगा दी जिसे शूल (एस) प्रोटीन के तौर पर जाना जाता है। उन्होंने कहा कि इस परिवर्तन से एक नया विषाणु वीएसवी-सार्स-सीओवी-2 बना जो कोशिकाओं को नए कोरोना वायरस की तरह ही निशाना बनाता है, लेकिन इसमें उन अन्य जीनों का आभाव होता है जो गंभीर रोग पैदा करने के लिये जरूरी होती हैं। 

Latest World News

Google पर इंडिया टीवी को अपना पसंदीदा न्यूज सोर्स बनाने के लिए यहां
क्लिक करें

India TV हिंदी न्यूज़ के साथ रहें हर दिन अपडेट, पाएं देश और दुनिया की हर बड़ी खबर। US से जुड़ी लेटेस्ट खबरों के लिए अभी विज़िट करें विदेश

Advertisement
Advertisement
Advertisement