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CAA को लेकर अमेरिका ने दिया भारत को ज्ञान, मुस्लिमों के बारे में की टिप्पणी...कही ये बात

अमेरिका ने भारत में लागू हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस के स्वतंत्र रिसर्च विंग की ओर से जारी की गई है। रिपोर्ट में मुसलमानों के लेकर भी टिप्पणी की गई है।

Edited By: Amit Mishra @AmitMishra64927
Published : Apr 22, 2024 17:14 IST, Updated : Apr 22, 2024 18:46 IST
india caa (file)- India TV Hindi
Image Source : REUTERS india caa (file)

वाशिंगटन: अमेरिका संसद की एक स्वतंत्र शोध इकाई द्वारा जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में इस वर्ष लागू किए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के प्रावधानों से भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन हो सकता है। भारत के 1955 नागरिकता अधिनियम में संशोधन कर इस साल मार्च में सीएए को लागू किया गया है। 'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस)' की 'इन फोकस' रिपोर्ट में दावा किया गया कि सीएए के प्रमुख प्रावधानों से भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन हो सकता है। सीएए के तहत, 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता मिलेगी।

रिपोर्ट में कही गई ये बात 

रिपोर्ट में कहा गया कि इस कानून के विरोधियों ने चेतावनी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी का हिंदू बहुसंख्यकवादी, मुस्लिम विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं, जिससे भारत को आधिकारिक रूप से धर्मनिरपेक्ष गणराज्य का दर्जा देने वाली छवि धूमिल होती है। साथ ही इससे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों और दायित्वों का भी उल्लंघन होता है। 

अल्पसंख्यकों के अधिकारों को खतरा

सीआरएस की तीन पन्नों वाली 'इन फोकस' रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि भारत सरकार द्वारा नियोजित एनआरसी और सीएए कानून से से भारत के करीब 20 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यकों के अधिकारों को खतरा है। सीआरएस रिपोर्ट ने अमेरिकी संसद को बताया कि वर्ष 2019 में अमेरिकी राजनयिक ने सीएए के प्रति चिंता व्यक्त की थी। हालांकि, इससे भारत और अमेरिका के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

मानवीय है उद्देश्य

भारत सरकार और सीएए के अन्य समर्थकों ने दावा किया है कि इसका उद्देश्य पूरी तरह से मानवीय है। भारत सरकार ने सीएए के खिलाफ की गई आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा कि इसे "वोटबैंक की राजनीति" का नाम नहीं देना चाहिए जबकि ये संकट में फंसे लोगों की मदद के लिए एक 'प्रशंसनीय पहल' है। (भाषा)

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