Wednesday, May 08, 2024
Advertisement

चांद के दक्षिणी हिस्से में क्या है खास, क्यों यहां पहुंचने के लिए लगी है रेस? यहां जानें सबकुछ

भारत के चंद्रयान-3 के लैंडिंग का वक्त करीब आ चुका है। इसरो के मुताबिक, चंद्रयान अब तक अपने तय हिसाब से सही तरह से काम कर रहा है।

Subhash Kumar Edited By: Subhash Kumar
Updated on: August 23, 2023 0:07 IST
Chandrayaan 3- India TV Hindi
Image Source : ISRO चंद्रयान-3।

भारत का चंद्रयान-3 अब चंद्रमा के दक्षिणी छोड़ पर लैंड करने के लिए पूरी तरह तैयार है। 23 अगस्त की शाम इसरो की ओर से चंद्रयान के लैंडिंग प्रोसेस को शुरू किया जाएगा। लैंडिंग सफल होते ही भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा जिसने चांद के दक्षिणी हिस्से को फतह किया है। रूस ने भी ऐसी लैंडिंग करने की कोशिश तो की लेकिन उसका यान लूना-25 क्रैश हो गया। लेकिन चांद के दक्षिणी छोड़ पर पहुंचने की रेस क्यों लगी है? क्या खास है यहां जिसके बारे में हर देश जानने को इच्छुक हैं? आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ...

अरबों साल से अंधेरे में दक्षिणी भाग

चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अरबों वर्षों से अंधेरे में है। इस क्षेत्र में सूरज की रौशनी तिरछी पड़ती है, इस कारण यहां का तापमान काफी कम है। इसलिए ऐसा अनुमान लगाया जाता है यह क्षेत्र सौरमंडल के निर्माण समेत कई रहस्यों को अपने भीतर समा कर बैठा है। चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद कई बड़े रहस्यों से पर्दा हटने की उम्मीद है। 

पानी की संभावना
चंद्रमा के दक्षिणी भाग में लंबे समय से जमी बर्फ के कारण यहां पानी और अन्य खनिज होने की संभावना जताई जा रही है। अगर ऐसा सच में होता है तो भविष्य में इससे चांद पर मानव कॉलोनियां बसाने में आसानी होगी। वहीं, अंतरिक्ष यान के ईंधन के लिए हाइड्रोजन और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन बनाने में भी इससे मदद मिल सकती है। 

कैसे चला पानी का पता?
Reuters की रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 के दशक में अमेरिकी मिशन अपोलो से पहले तक वैज्ञानिकों को चांद पर पानी होने की उम्मीद थी। हालांकि, अपोलो मिशन के क्रू द्वारा विश्लेषण के लिए लाए गए नमूनों में से ऐसा कुछ नहीं मिला। इसके बाद 2008 में ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने नई तकनीक के साथ नमूनों का दोबारा निरीक्षण किया और उन्हें ज्वालामुखी के कांच के भीतर हाइड्रोजन के संकेत मिले। इसके बाद 2009 में भारत के चंद्रयान-1 की मदद से नासा के एक उपकरण ने चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाया। नासा के 1998 के लूनर प्रॉस्पेक्टर से भी ये बात पता लगी थी कि वॉटर आइस की सबसे अधिक सांद्रता दक्षिणी ध्रुव के गड्ढों में थी। 

क्यों जटिल है यहां लैंडिंग?
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का ज्यादातर हिस्सा अंधेरे में है। ये उस स्थान से काफी दूर है जहां अमेरिका का अपोलो मिशन उतरा था। ऐसा माना जाता है कि इस हिस्से में एवरेस्ट से भी बड़े गड्ढें मौजूद हैं। इसके अलावा यहां का तापमान भी -200 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है। रूस का लूना-25 और भारत का चंद्रयान-2 पहले भी इस क्षेत्र में लैंडिंग में फेल हो चुका है।

शुरू होगी नई रेस
भारतीय चंद्रयान-3 के चांद के दक्षिणी हिस्से में सफल लैंडिंग के बाद इस क्षेत्र में रेस शुरू होने की संभावना है। अमेरिका और चीन दोनों ने ही भविष्य में अपने चंद्र मिशन की घोषणा कर रखी है। इसके अलावा रूस ने भी लूना-25 के विफल होने के बावजूद चांद के दक्षिणी छोड़ पर लैंडिंग की कोशिश जारी रखने की बात कही है। 

ये भी पढ़ें- चांद पर तिरंगा लहराने का काउंटडाउन शुरू, RC Kapoor से जानें चंद्रयान-3 के लिए आखिरी 15 मिनट क्यों है महत्वपूर्ण

ये भी पढ़ें- चंद्रयान-3 की लैंडिंग में अब कुछ ही घंटे बाकी, इसरो ने ट्वीट कर दी ये बड़ी खुशखबरी

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें Explainers सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement