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Explainer: झारखंड में कैसे घटे आदिवासी? बस गए कितने बांग्लादेशी? चौंकाने वाली तहकीकात

झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ एक बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है और इसकी वजह से पूरी डेमोग्राफी ही बदलती जा रही है।

Reported By : Nitish Chandra Edited By : Vineet Kumar Singh Published : Jul 12, 2024 12:09 IST, Updated : Jul 12, 2024 12:19 IST
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Image Source : REUTERS REPRESENTATIONAL IMAGE संथाल परगना में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी है।

रांची: झारखंड में बांग्लादेशियों की घुसपैठ और आदिवासियों की घटती आबादी का मामला अब सुर्खियों में है। झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह संथाल परगना में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करके उनकी गिनती करे और उनको डिपोर्ट करने का एक्शन प्लान कोर्ट को बताए। झारखंड हाई कोर्ट में जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की बेंच ने दुमका, पाकुड़, जामताड़ा, देवघर, साहेबगंज और गोड्डा ज़िलों के DM को आदेश दिया कि वे अदालत को बताएं कि इन जिलों में कितने घुसपैठिए रह रहे हैं।

दानियाल दानिश ने दायर की थी PIL

जमशेदपुर के रहने वाले दानियाल दानिश ने झारखंड हाई कोर्ट में PIL फाइल की थी कि संथाल परगना में बड़ी तादाद में घुसपैठिए दाखिल हो गए हैं जिससे वहां की डेमोग्राफी चेंज हो रही है और आदिवासियों की संख्या घट रही है। याचिकाकर्ता दानियाल ने अदालत से कहा कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनका धर्म परिवर्तन कर रहे हैं, और उनकी ज़मीनों को गिफ्ट डीड के ज़रिए हथिया रहे हैं। उन्होंने कहा कि घुसपैठिए आदिवासी महिलाओं से शादी करके उनके नाम पर रिजर्व पोस्ट को रिमोट से चला रहे हैं।

‘घुसपैठियों ने बनवाईं मस्जिद और मदरसे’

दानियाल ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट से यह भी कहा कि झारखंड के बंगाल से लगने वाले जिलों में घुसपैठियों ने बहुत बड़ी तादाद में मस्जिदें और मदरसे कायम कर लिए हैं। झारखंड हाई कोर्ट ने जिस मसले पर सुनवाई की, उसको लेकर संथाल परगना के लोग काफी दिनों से आवाज उठा रहे हैं। कई सोशल वर्कर, आदिवासियों की कम होती आबादी और बदलती डेमोग्राफी को लेकर चिंता जता चुके हैं। संथाल परगना में घुसना इसलिए आसान है क्योंकि वहां से बांग्लादेश केवल 15 किलोमीटर दूर है। संथाल परगना की सीमा पश्चिम बंगाल से लगती है और वहां से बांग्लादेश बॉर्डर ज्यादा दूर नहीं है।

बांग्लादेश बॉर्डर के करीब है संथाल परगना

संथाल परगना के लोग अक्सर, कभी पैदल तो कभी नाव से नदी पार करके बंगाल जाते-आते रहते हैं। अब अगर बांग्लादेश से किसी को झारखंड में दाखिल होना है तो उसे बस ये 15 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। बांग्लादेश बॉर्डर करीब होने की वजह से ऐसे कई पॉइंट हैं जहां बंगाल से होते हुए, झारखंड में दाखिल हुआ जा सकता है। झारखंड का पाकुड़ जिला बांग्लादेश बॉर्डर से सबसे करीब पड़ता है। वहां काम करने वाले सोशल एक्टिविस्ट धर्मेंद्र कुमार ने घुसपैठ के पूरे नेक्सस के बारे में बताया। घुसपैठ करके झारखंड में बसने वाले बांग्लादेशियों के पास कई बार तो दोनों देशों के ID कार्ड होते हैं जिससे वे आराम से बांग्लादेश और भारत आ-जा सकें।

सभी जिलों में घटते जा रहे हैं आदिवासी

अगर हम आबादी का डेटा देखें, तो साफ़ पता चलता है कि संथाल परगना के सभी ज़िलों में आदिवासी घट रहे हैं। वहीं, पिछले कुछ सालों में संथाल परगना में मुसलमानों और ईसाइयों की आबादी तेजी से बढ़ी है। बांग्लादेश बॉर्डर के सबसे करीब के पाकुड़ जिले में पिछले 10 साल में मुसलमानों की आबादी लगभग 40 फीसदी बढ़ गई है। वहीं, पड़ोस के साहिबगंज जिले में मुस्लिम आबादी 37 परसेंट बढ़ गई है। इसके उलट कभी आदिवासियों की आधी आबादी वाले संथाल परगना में अब ट्राइबल्स लगातार कम होते जा रहे हैं। 1951 में संथाल परगना की कुल आबादी में आदिवासियों की हिस्सेदारी लगभग 45 परसेंट थी जो 1961 में घटकर 38 परसेंट रह गई, और उसके बाद हर 10 साल में होने वाले जनगणना में आदिवासी जनसंख्या लगातार कम होती गई है।

10 फीसद से बढ़कर 23 फीसदी हुए मुसलमान

2011 में संथाल परगना के सभी जिलों में आदिवासियों की आबादी केवल 28 परसेंट रह गई थी। वहीं, 1951 में जहां मुसलमान 10 परसेंट से भी कम थे, वे बढ़कर लगभग 23 परसेंट हो गए हैं। अगर आप संथाल परगना के जिलों में जाएं थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आपको नई मस्जिद या मदरसा नजर आाएगा। ये मदरसे और मस्जिदें भी घुसपैठ कराने में रोल अदा करते हैं। बांग्लादेश से झारखंड में दाखिल होने वाले घुसपैठिए सबसे पहले इन्हीं मस्जिदों और मदरसों में आकर ठहरते हैं, फिर उनके भारत के नागरिक होने के फेक डॉक्यूमेंट तैयार कराए जाते हैं। इसके बाद वे आराम से भारत के नागरिक बनकर रहने लगते हैं। जब इंडिया टीवी के संवाददाता नीतीश चंद्र पाकुड़ पहुंचे तो उनको ऐसी ही तस्वीर दिखी।

फर्जी डॉक्युमेंट के लिए चल रहीं वेबसाइट

झारखंड में बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों के लिए फेक डॉक्यूमेंट बनाने के लिए बाकायदा फेक वेबसाइट्स भी चलाई जा रही हैं, और सरकार को भी इसकी खबर है। पिछले साल गृह मंत्रालय ने एक डॉक्यूमेंट रिलीज किया था। इसमें बताया गया था कि 120 से ज्यादा फेक वेबसाइट्स, नकली बर्थ सर्टिफिकेट बनाने का काम कर रही हैं। होम मिनिस्ट्री ने झारखंड सरकार को खासतौर पर चेताया था कि राज्य में बहुत सी वेबसाइट चल रही हैं, जो घुसपैठियों के लिए नकली बर्थ सर्टिफिकेट बना रही हैं। 

‘राजमहल में बढ़ गए 8-10 हजार मुस्लिम वोटर’

होम मिनिस्ट्री की एडवाइजरी मिलने के बाद झारखंड पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने सभी जिलों के SSP और कलेक्टर्स को चिट्ठी लिखी थी और उनको बताया था कि संथाल परगना में बड़ी तादाद में घुसपैठिए दाखिल हो रहे हैं। झारखंड पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने अपनी चिट्ठी में लिखा था कि घुसपैठियों को मदरसों में, मस्जिदों में पनाह दी जा रही है। उनका नाम वोटर लिस्ट में डालकर, झारखंड में बसाने का पूरा नेटवर्क चल रहा है। संथाल परगना के साहेबगंज जिले के BJP विधायक अनंत ओझा ने भी इस बारे में चुनाव आयोग को पत्र लिखा था। अनंत ओझा ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि उनकी असेंबली सीट राजमहल में 8 से 10 हजार मुस्लिम वोटर अचानक बढ़ गए हैं और राज्य सरकार इसकी जांच नहीं करा रही है। 

गिफ्ट डीड के जरिए जमीनों पर कब्जा करते हैं घुसपैठिए

भारत की नागरिकता हासिल करने के बाद घुसपैठियों का असली खेल शुरू होता है। वे आदिवासी लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं, उनसे ब्याह करते हैं और फिर उनकी जमीनें हासिल करने की कोशिश करते हैं। असल में आदिवासी अपनी ज़मीन किसी को बेच नहीं सकते। संथाल परगना टेनेंसी एक्ट के तहत, ट्राइबल्स अपनी जमीनें लीज पर भी नहीं दे सकते। इसलिए अब घुसपैठियों ने आदिवासियों की जमीन हड़पने का एक नया रास्ता निकाल लिया है। घुसपैठिए, इसके लिए आदिवासियों से गिफ्ट डीड कराते हैं यानी डॉक्यूमेंट तैयार करके आदिवासियों से उनकी जमीन गिफ्ट करा ली जाती है, फिर इन जमीनों पर अवैध काम किए जाते हैं।

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Image Source : REUTERS REPRESENTATIONAL IMAGE
झारखंड में बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।

जनप्रतिनिधि भी हैं घुसपैठियों के निशाने पर

अप्रैल 2022 में दुमका में हथियारों की एक अवैध फैक्ट्री पकड़ी गई थी। यह हथियार फैक्ट्री गिफ्ट डीड की जमीन पर चल रही थी। जब बंगाल पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने छापा मारा, तब ये मामला सामने आया था। जब इंडिया टीवी के संवाददाता नीतीश चंद्र संथाल परगना इलाके में पहुंचे तो उन्हें कई जिलों में एक खास ट्रेंड दिखा। कई आदिवासी महिलाओं से मुसलमानों ने शादी कर ली थी जिनमें से कई महिलाएं ऐसी थीं जो अपने-अपने गांव की पंचायत की मुखिया हैं लेकिन उनका रिमोट उनके मुस्लिम पतियों के पास है। ऐसी महिलाओं की आदिवासी पहचान मिट चुकी है और वे खुद भी इस्लामिक तौर तरीके अपना रही हैं। इनके बच्चे भी इस्लाम धर्म का हिस्सा बन रहे हैं।

मुस्लिमों से शादी के बाद बदले रीति-रिवाज

दुमका और साहिबगंज जिलों में नीतीश चंद्र को ऐसे कई मामले मिले। साहिबगंज के बिशुनपुर गांव में मुखिया का पद आदिवासियों के लिए रिजर्व है। यहां से तालामई टुडु मुखिया हैं और उन्होंने वसीम अकरम से शादी की है। पूरा गांव तालामई के बजाय वसीम अकरम को ही मुखिया कहता है। वहीं, तालामई टुडु ने बताया कि वह पर्दा प्रथा मानने लगी हैं और नमाज पढ़ने लगी हैं। बिशुनपुर में आशा वर्कर थेमी सोरेन ने कहा कि उनके गांव में ही नहीं, आसपास के कई गांवों में मुसलमानों ने आदिवासी लड़कियों से शादी की है। इससे आदिवासियों की आबादी घटती जा रही है क्योंकि उनके बच्चे मुसलमान होते हैं।

‘एक बड़ी साजिश है बदलती डेमोग्राफी’

साहिबगंज की तरह दुमका के घाट-रसिकपुर गांव में भी मुखिया की पोस्ट आदिवासी महिला के लिए रिजर्व है। यहां की मुखिया प्रिसला हंसदा ने भी एक मुस्लिम से शादी की है। एक मुसलमान से शादी करने के बावजूद प्रिसला ने खुद ये माना कि आदिवासी लड़कियों का ऐसी शादी करना गलत है। उन्होंने कहा कि इससे उनके समुदाय को नुकसान हो रहा है और ऐसी शादियां रुकनी चाहिए। संथाल परगना में आदिवासियों के बीच काम करने वाले सोशल वर्कर्स इस बदलती डेमोग्राफी को एक बड़ी साजिश बताते हैं। उनका कहना है कि एक प्लानिंग के तहत आदिवासी महिलाओं से शादी की जा रही है ताकि आदिवासियों के सियासी अधिकारों पर कब्जा किया जा सके।

दुमका की जामा मस्जिद के इमाम का अजीब तर्क

दुमका के सोशल वर्कर चंद्रमोहन हांसदा ने कहा कि ऐसी शादियों का मकसद आदिवासियों के नाम पर मिलने वाले पट्टों पर कब्जा करना भी होता है। संथाल के आदिवासी भोले होते हैं। यहां बांग्लादेशी मुस्लिम आकर, अपनी जान पहचान बढ़ाकर यहां की बहू बेटियों से शादी कर रहे हैं। वहीं, दुमका की जामा मस्जिद के इमाम ने संथाल परगना में मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक अजीब तर्क दिया। इमाम जमील अख्तर ने कहा कि मुसलमानों के अलावा बाकी सभी समुदायों के लोग नशाखोरी करते हैं, पर चूंकि मुसलमानों के यहां नशा हराम है इसलिए उनकी नशाखोरी से मौत नहीं होती और आबादी बढ़ती जाती है। इमाम जमील अख़्तर ने इसके लिए हाथरस हादसे की मिसाल भी दे डाली।

बाबूलाल मरांडी ने विधानसभा में उठाया है मुद्दा

चूंकि, मामला आदिवासियों के संसाधनों, उनकी जमीनों और अधिकारों पर अवैध कब्जे का है इसलिए झारखंड में अवैध घुसपैठ एक बड़ा सियासी मुद्दा बन गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने ये मुद्दा झारखंड विधानसभा में उठाया। उन्होंने डेटा देकर बताया कि संथाल में हर जनगणना के बाद आदिवासी घटते गए हैं क्योंकि घुसपैठ बढ़ रही है। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि राजमहल असेंबली सेक्शन में 2019 से 2024 के बीच, एक-एक बूथ पर 123 परसेंट वोटर बढ़ गए हैं क्योंकि घुसपैठिए बांग्लादेश से आकर संथाल परगना में बस रहे हैं।

‘अपने ही देश के लोगों को घुसपैठिया कह रहे मरांडी’

हालांकि हेमंत सोरेन सरकार में कांग्रेस के मंत्री इरफान अंसारी ने बाबूलाल मरांडी के इल्जाम को सिरे से खारिज कर दिया। इरफान अंसारी संथाल परगना के जामताड़ा से ही विधायक हैं। उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी अपने देश के लोगों को घुसपैठिया कह रहे हैं क्योंकि वे मुसलमान हैं और उन्होंने बीजेपी को वोट नहीं दिया। इरफान अंसारी ने कहा कि घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है लेकिन केंद्र ने तो झारखंड में अडानी का पावर प्लांट लगवाया और उसकी बिजली बांग्लादेश को बेची जा रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं बांग्लादेशी घुसपैठिए

सियासत से अलग, घुसपैठ एक गंभीर मसला है। भारत के सबसे बड़े आदिवासी इलाकों की डेमोग्राफी बदल जाना चिंता की बात है। झारखंड सरकार को इसे राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय एक सीरियस सोशल इश्यू के तौर पर स्वीकार करना होगा। अगर आदिवासियों की जमीनों पर घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है, अगर आदिवासी महिलाओं से शादी करके पॉलिटिकल पावर पर कब्जा किया जा रहा है और फेक डॉक्यूमेंट्स से भारत की नागरिकता हासिल की जा रही है तो ये एक राजनीतिक मसला नहीं रह जाता। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे की बात है।

घुसपैठियों को देश से डिपोर्ट करना बहुत जरूरी

देश के संसाधनों पर अगर घुसपैठियों का कब्जा हो रहा है तो ये राजनीतिक खींचतान का विषय नहीं, भारत की सुरक्षा का सवाल बन जाता है, और नेशनल सिक्योरिटी के मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। घुसपैठियों की भारत में कोई जगह नहीं है। उनकी पहचान करना, उन्हें देश से डिपोर्ट करना बहुत जरूरी है।

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