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भयानक गर्मी से दिमाग खो बैठता है कंट्रोल, नहीं मिल पाते सही सिग्नल, जानिए क्या है ये बीमारी?

भीषण गर्मी का असर आपकी मेंटल हेल्थ पर भी पड़ रहा है। गर्मी के कारण सिज़ोफ्रेनिया के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इस गंभीर स्थिति में इंसान की मौत भी हो सकती है। जानिए कैसे गर्मी में दिमाग अपना कंट्रोल खो बैठता है?

Written By: Bharti Singh
Published : May 30, 2024 11:52 IST, Updated : May 30, 2024 12:05 IST
Mental Health In Summer- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK Mental Health In Summer

उत्तर भारत में भीषण गर्मी पड़ रही है। दिल्ली के कई इलाकों में तापमान 50 डिग्री के पार पहुंच चुका है। हालात ऐसे हैं कि सूरज सुबह से ही आग उगलने लगता है। लोगों का गर्मी से बुरा हाल हो रहा है। अस्पतालों में गर्मी से परेशान मरीजों की संख्या बढ़ रही है। हीटवेब से मानसिक समस्याओं से परेशान लोगों की संख्या जाता बढ़ रही है। हीट स्ट्रैस, गर्मी से थकावट और हीट स्ट्रोक का खतरे के बारे में तो आप जानते होंगे, लेकिन अत्यधिक गर्मी मानसिक स्वास्थ्य को भी खराब कर रही है। गर्मी के कारण अस्पतालों में सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है। ये ऐसी स्थिति होती है जब हमारा दिमाग शरीर को सिग्नल नहीं भेज पाता है। इससे शरीर किसी प्रतिकूल मौसम के हिसाब से रिएक्ट नहीं कर पाता है। ये स्थिति जानलेवा भी साबित हो सकती है।

गर्मी से दिमाग खो बैठता है कंट्रोल 

कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय में हुए द कन्वरसेशन इस बात का जिक्र किया गया है कि कैसे बढ़ती गर्मी मानसिक बीमारियों को ट्रिगर कर रही है। जिसमें सिज़ोफ्रेनिया वाले लोगों के लिए अस्पताल में भर्ती होने और यहां तक ​​कि गर्म परिस्थितियों में मौत की संभावना बढ़ रही है। द कन्वरसेशन में कहा गया है कि निचले सामाजिक आर्थिक समूहों, नस्लीय लोगों और बेघर लोगों को गर्म परिस्थितियों के संपर्क में आने का अधिक खतरा होता है। 

क्या है सिज़ोफ्रेनिया?

सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है जो दिमाग तक सूचना के पहुंचने को बाधित करती है। मस्तिष्क का जो हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित होता है, उसमें हमारे थर्मोरेगुलेटरी कार्य भी होते हैं। यह वह हिस्सा है जो हमें बताता है कि हम बहुत गर्म हैं और हमें पसीना आने लगता है या हम बहुत ठंडे हैं और गर्म रहने के लिए हमें कांपना चाहिए। 

क्यों खतरनाक है सिज़ोफ्रेनिया?

सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग नॉर्मल लोगों की तरह अत्यधिक गर्मी पर प्रतिक्रिया करने में सक्षम नहीं होते हैं। उनका शरीर उन्हें सावधानी बरतने के लिए नहीं कहता है। इसके अलावा, सिज़ोफ्रेनिया के इलाज में जिन दवाओं का उपयोग किया जाता है वो दवाएं भी शरीर के मुख्य तापमान को बढ़ाती हैं। इसका मतलब यह है कि दवा लेते समय, सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित लोग नॉर्मल लोगों की तुलना में हीट स्ट्रैस और स्ट्रोक के खतरे के पास होते हैं।

 

 

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