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84 साल की उम्र में हासिल की MBA की डिग्री, तीसरी PhD की तैयारी में जुटे, जानें डॉक्टर गिरीश मोहन के बारे में

डॉ गुप्ता का रुटीन आपको चौंका देगा। उन्होंने अपनी जिंदगी के बारे में बताया कि वह रोज 10 से 6 तक काम करते हैं और क्रिकेट-बैडमिंटन खेलते हैं। वह इस उम्र में भी पूरी तरह फिट हैं।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published : Apr 19, 2025 22:30 IST, Updated : Apr 19, 2025 22:57 IST
Dr Girish Mohan Gupta
Image Source : IIM SAMBALPUR डॉ गिरीश मोहन गुप्ता

संबलपुर: उम्र को सिर्फ एक नंबर मानने वाले लोग कम होते हैं, और उनमें से एक हैं डॉ. गिरीश मोहन गुप्ता, जिन्होंने 84 साल की उम्र में IIM संबलपुर से MBA की डिग्री लेकर देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा की मिसाल पेश की है। पूर्व न्यूक्लियर साइंटिस्ट और दो बार पीएचडी कर चुके डॉ. गुप्ता ने हाल ही में IIM संबलपुर के दीक्षांत समारोह में MBA की डिग्री प्राप्त की। इस मौके पर प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. प्रमोद कुमार मिश्रा मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे और उन्होंने खुद डॉ. गुप्ता को डिग्री सौंपी।

डॉ. गुप्ता का करियर विज्ञान के क्षेत्र में रहा है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में उन्होंने लंबे समय तक काम किया और भारत के परमाणु कार्यक्रम में अहम योगदान दिया। वह एशिया के पहले और दुनिया के दूसरे न्यूक्लियर ब्रीडर रिएक्टर के डिज़ाइन और सेटअप से जुड़े रहे हैं। रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने खुद को पढ़ाई और रिसर्च से जोड़े रखा। दो डॉक्टरेट करने के बाद जब उन्हें लगा कि अब कुछ नया करना चाहिए, तब उन्होंने IIM संबलपुर द्वारा वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए शुरू किए गए MBA प्रोग्राम में एडमिशन लिया। दिल्ली स्थित IIM के सेंटर में उन्होंने नियमित कक्षाएं अटेंड कीं और खुद को कभी उम्र से कमजोर महसूस नहीं होने दिया।

कैसा रहता है डॉक्टर गुप्ता का रुटीन?

डॉ गुप्ता ने अपनी जिंदगी के बारे में बताया, 'मैं रोज 10 से 6 तक काम करता हूं, क्रिकेट और बैडमिंटन खेलता हूं और पूरी तरह फिट हूं। मैं खुद को 84 नहीं, 62 साल का महसूस करता हूं। अगर मैं बाल काले कर लूं तो लोग 50 का भी समझ सकते हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने बिना चश्मे के ही अपनी पढ़ाई पूरी की और आज भी छोटे से छोटा प्रिंट पढ़ सकते हैं।

MBA करने के बाद अब उनका अगला लक्ष्य है मैनेजमेंट में तीसरी पीएचडी करना। डॉ गुप्ता का मानना है कि ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती और इंसान को जीवनभर सीखते रहना चाहिए। डॉ गुप्ता ने आगे कहा, 'इस एमबीए डिग्री से मेरे पिछले काम को मजबूती मिलेगी और भविष्य की रिसर्च में मदद मिलेगी।'

डॉ गुप्ता की कहानी सिर्फ डिग्रियों की नहीं है, बल्कि एक सोच की कहानी है कि सीखने से अपने आप को कभी नहीं रोकना चाहिए। उम्र चाहें जो भी हो, अगर जज्बा और इच्छा हो तो हर मंजिल हासिल की जा सकती है। उनकी यह उपलब्धि न केवल बुजुर्गों के लिए प्रेरणा है, बल्कि आज के युवाओं को भी यह सोचने पर मजबूर करती है कि असली सफलता कभी थमती नहीं, वो बस आगे बढ़ती रहती है। (इनपुट: ओडिशा से शुभम कुमार की रिपोर्ट)

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