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UCC पर बोले मौलाना अरशद मदनी, ‘शरीयत के खिलाफ कोई भी कानून हमें मंजूर नहीं’

उत्तराखंड की सरकार द्वाार समान नागरिक संहिता लाए जाने के फैसले पर बोलते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मुसलमानों को शरीयत के खिलाफ कोई भी कानून मंजूर नहीं होगा।

Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published : Feb 06, 2024 21:17 IST, Updated : Feb 06, 2024 21:17 IST
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Image Source : PTI FILE जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी।

नई दिल्ली: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के राज्य सरकार के फैसले पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। मौलाना अरशद मदनी ने UCC पर कहा कि हमें कोई ऐसा कानून स्वीकार्य नहीं है जो शरीयत के खिलाफ हो, क्योंकि मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन शरीयत से नहीं। उन्होंने कहा कि सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता।

‘संविधान के मौलिक अधिकारों को नकारता है UCC’

मौलाना मदनी ने कहा कि आज उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लाई गई है, जिसमें अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद जो 366ए अध्याय 25ए उपधारा 342 के तहत नए कानून से छूट दी गई है। उन्होंने कहा कि इसमें यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है, ऐसे में जब उन्हें इस कानून से अलग रखा जा सकता है तो हमें संविधान की धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती? उन्होंने कहा कि देखा जाए तो समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है।

‘समीक्षा के बाद कानूनी कार्रवाई पर फैसला लेंगे’

मौलाना अरशद मदनी ने कहा, ‘हमारी कानूनी टीम बिल के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी जिसके बाद कानूनी कार्रवाई पर फैसला लिया जाएगा। प्रश्न मुसलमानों के पर्सनल लाॅ का नहीं बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को मौजूदा हाल में कायम रखने का है, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं है।’ मौलाना मदनी ने कहा कि हमारा देश बहु-सांस्कृतिक और बहु-धार्मिक देश है, यही उसकी विशेषता भी है, इसलिए यहां एक कानून नहीं चल सकता।

‘मुसलमानों के फैमिली लॉ इंसानों के बनाए कानून नहीं’

मौलाना मदनी ने कहा, ‘हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारे फैमिली लाॅ इंसानों के बनाए कानून नहीं हैं। वे कुरआन और हदीस द्वारा बनाए गए हैं। इस पर न्यायशास्त्रीय बहस तो हो सकती है, लेकिन मूल सिद्धांतों पर हमारे यहां कोई मतभेद नहीं। यह कहना बिलकुल सही मालूम होता है कि समान नागरिक संहिता लागू करना नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात लगाने की एक सोची समझी साजिश है। सांप्रदायिक ताकतें नित नए धार्मिक मुद्दे खड़े करके देश के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को भय और अराजकता में रखना चाहती हैं।’

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