Wednesday, April 24, 2024
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समलैंगिक विवाह कोई अपराध तो नहीं, कई देशों में है मान्य तो भारत सरकार क्यों कर कर रही है विरोध?

समलैंगिक विवाह कोई अपराध तो नहीं है। कई देशों में इसे कानूनी मान्यता प्राप्त है, फिर भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध क्यों कर रही है?-Explainer

Kajal Kumari Edited By: Kajal Kumari
Updated on: March 14, 2023 17:40 IST
same sex marriage is not a crime- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO समलैंगिक विवाह का भारत में विरोध क्यों

Explainer: विवाह या प्रेम या रिश्ता रखना किसी भी व्यक्ति की आपनी पसंद होती है, इसपर कोई जोर-जबर्दस्ती तो नहीं चल सकती। दुनिया के कई देशों में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा प्राप्त है लेकिन भारत में इस तरह के रिश्ते को अबतक कानूनी दर्जा नहीं मिल सका है। इससे संबंधित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और केंद्र सरकार इसका विरोध कर रही है। केंद्र सरकार की आपत्ति के बाद सोमवार को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे को पांच-न्यायाधीशों की पीठ को सौंपने का फैसला किया, जो 18 अप्रैल को मामले की सुनवाई शुरू करेगी। समलैंगिक विवाह को लेकर एक दिन पहले, केंद्र ने एक विस्तृत हलफनामा दायर किया था, जिसमें इसका सरकार ने पुरजोर विरोध किया था।

भारत सरकार ने भले ही समलैंगिक विवाह को कानून बनाने के मामले पर आपत्ति जताई है लेकिन अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, क्यूबा, अर्जेंटीना, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, माल्टा, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और स्वीडेन में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा प्राप्त है। 

केंद्र सरकार क्यों कर रही है विरोध

केंद्र द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करने के एक दिन बाद, भारत के विधि एवं कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने कहा कि सरकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोगों की गतिविधियों में “हस्तक्षेप” नहीं करती है लेकिन विवाह की संस्था से जुड़ा मामला नीतिगत विषय है। रिजीजू ने कहा, ‘सरकार किसी व्यक्ति के निजी जीवन व उसकी गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर रही है, इसलिए इसे लेकर किसी को कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। जब शादी की संस्था से जुड़ा कोई मुद्दा आता है तो यह नीतिगत विषय है।’ 

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने दायर याचिका के संबंध में यह कहा कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों का संतुलन प्रभावित होगा। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के जरिये वैध करार दिये जाने के बावजूद, याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। इस मामले पर 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू होगी और बड़ी बात ये है कि इस मामले की लाइव स्ट्रीमिंग भी होगी।

 केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब दो समलैंगिक शादी करेंगे तो वे बच्चे गोद लेंगे और बच्चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'जरूरी नहीं कि एक समलैंगिक जोड़े की गोद ली हुई संतान भी समलैंगिक ही हो।'

- समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में  केंद्र सरकार ने कड़ा विरोध किया और इससे संबंधित याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र ने इसके लिए 56 पेज का हलफनामा पेश किया है।

- केंद्र ने कहा, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करेंगा।

- केंद्र ने समलैंगिक विवाह को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है और कहा है कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती है।

- केंद्र सरकार का कहना है कि देश के कानून में भी कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है और उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?

- कोर्ट में केंद्र ने कहा, समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के बाद बच्चा गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी। देश में कानूनी प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं।

- 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिकता अपराध नहीं है और समलैंगिकों के वही मूल अधिकार हैं, जो किसी सामान्य नागरिक के हैं। कोर्ट ने कहा था कि सबको सम्मान से जीने का अधिकार हैं।

-2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद आपसी सहमति से दो समलैंगिकों के बीच बने संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा, ऐसा कहा गया था।

- तब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को अपनी सोच बदलनी चाहिए।

-केंद्र सरकार ने व्यापक अर्थों में अपनी दलीलें पेश की हैं, जिसमें बताया गया है कि क्यों इस मामले को विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने के लिए संसद पर छोड़ देना बेहतर है। 

-केंद्र सरकार का कहना है कि सामाजिक संबंधों के किसी विशेष रूप को मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता है। देश में  "पुरुष" और "महिला" के बीच एक संघ के रूप में विवाह की वैधानिक मान्यता है जो विषम लिंग के बीच विवाह पर आधारित है।

-अपने सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों के आधार पर भारतीय समाज की स्वीकृति से आंतरिक रूप से जुड़ी हुई है, जिसे इसके द्वारा मान्यता प्राप्त है। 

-केंद्र का कहना है कि विधायिका की वैधता पर विचार करने में सामाजिक नैतिकता के विचार प्रासंगिक हैं।

-इसके सामाजिक मूल्य को ध्यान में रखते हुए, विवाह/संघों के अन्य रूपों को छोड़कर, विषमलैंगिक विवाह को मान्यता देने में राज्य की जबरदस्त दिलचस्पी है।

-विषमलैंगिक विवाह तक सीमित विवाह की वैधानिक मान्यता पूरे इतिहास में आदर्श है और राज्य के अस्तित्व और निरंतरता दोनों के लिए मूलभूत है।

- इन अन्य प्रकार के विवाहों या संघों या समाज में व्यक्तियों के बीच संबंधों की व्यक्तिगत समझ को मान्यता नहीं देता है, लेकिन ये अवैध नहीं हैं।

-समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता नहीं देने पर- अनुच्छेद 14 के संदर्भ में, समान-लिंग संबंध और विषमलैंगिक संबंध स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्ग हैं, जिन्हें समान नहीं माना जा सकता है।

-समान-सेक्स संबंधों को डिक्रिमिनलाइज़ करने वाले SC के फैसले को भारतीय व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह में मान्यता प्राप्त होने का मौलिक अधिकार प्रदान करने के रूप में नहीं माना जा सकता है, चाहे वह संहिताबद्ध हो या अन्यथा।

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