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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का बड़ा फैसला, नागरिकता कानून की धारा 6A वैध करार दी गई

सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने असम समझौते को आगे बढ़ाने के लिए 1985 में एक संशोधन के माध्यम से शामिल नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।

Reported By : Atul Bhatia Edited By : Mangal Yadav Published : Oct 17, 2024 11:12 IST, Updated : Oct 17, 2024 11:37 IST
सुप्रीम कोर्ट - India TV Hindi
Image Source : ANI सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्लीः नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। इस फैसले में कुल तीन जजमेंट हैं। जस्टिस पारदीवाला का अलग जजमेंट है। बहुमत के फैसले से धारा 6A वैध करार दी गई है। सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 6A में भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन के लिए दी गई 25 मार्च 1971 की कट ऑफ डेट को भी सही ठहराया।

चीफ जस्टिस ने की ये टिप्पणी

चीफ जस्टिस ने कहा कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य क्षेत्रों में भी लागू कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्योंकि यह सिर्फ असम के लिए था। क्योंकि असम के लिए यह व्यावहारिक था। सीजेआई ने कहा कि 25 मार्च, 1971 की कट ऑफ डेट सही थी। स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान से असम में अवैध प्रवास भारत में कुल अवैध प्रवास से अधिक था। यह इसकी मानदंड की शर्त को पूरा करता है। धारा 6A न तो कम समावेशी है और न ही अति समावेशी है।

जिनको नागरिका मिली है वह बरकरार रहेगी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस वक़्त पूर्वी पाकिस्तान से असम आने वाले लोगों की तादाद आजादी के बाद भारत आने वाले लोगों से कहीं ज़्यादा है। कोर्ट के फैसले का मतलब है कि  1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी भारतीय नागरिकता के लायक हैं। जिनको इसके तहत नागरिकता मिली  है उनकी नागरिकता बरकरार रहेगी।

क्या है नागरिकता कानून 1955 के सेक्शन 6A 

नागरिकता कानून 1955 के सेक्शन 6A के मुताबिक जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 तक असम आये हैं वो भारतीय नागरिक के तौर पर खुद को रजिस्टर करा सकते हैं। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी भारतीय नागरिकता के लायक नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि 1966 के बाद से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से अवैध शरणार्थियों के आने के चलते राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है। राज्य के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार ने नागरिकता कानून में 6A जोड़कर अवैध घुसपैठ को कानूनी मंजूरी दी गई थी।

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