नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसमें जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार देने की मांग की गई है। यह याचिका अधिवक्ता डॉ. सुनीता शर्मा ने दाखिल की है, जिसकी सुनवाई की मांग आज वकील प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश बी आ गवई के समक्ष की। याचिका में कहा गया है कि वोट का अधिकार लोकतंत्र की बुनियाद है।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर नागरिक को शासन चुनने का समान अधिकार मिला है। संविधान के अनुच्छेद 326 में स्पष्ट कहा गया है कि हर वयस्क नागरिक को वोट देने का अधिकार है। लेकिन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) जेल में बंद सभी व्यक्तियों को मतदान से वंचित करती है, चाहे वे दोषी सिद्ध हुए हों या नहीं। यह ब्लैंकेट बैन यानी एक समान रोक, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के खिलाफ है।
याचिका में रखी गई मुख्य दलीलें
याचिका में कहा गया है कि लगभग 4.5 लाख कैदी देशभर की 1,330 जेलों में बंद हैं, जिनमें 75 प्रतिशत से अधिक विचाराधीन हैं। इनमें से कई लोग वर्षों से मुकदमे के लंबित रहने के कारण जेल में हैं। ऐसे में जब उनका दोष सिद्ध नहीं हुआ है, तो उन्हें मतदान से वंचित रखना निर्दोषता की धारणा (Presumption of Innocence) के सिद्धांत के खिलाफ है। याचिका में यह भी कहा गया कि भारतीय दंड संहिता या नई न्याय संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कैदियों के मतदान अधिकार को खत्म करता हो।
नो वोटर टू बी लेफ्ट बिहाइंड मिशन का हवाला
याचिका में निर्वाचन आयोग की वर्ष 2016 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें आयोग ने नो वोटर टू बी लेफ्ट बिहाइंड मिशन के तहत कहा था कि विचाराधीन कैदियों को मतदान का अधिकार दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट में यह सुझाव भी था कि जेलों में मतदान केंद्र बनाए जा सकते हैं या फिर ई-पोस्टल बैलेट (डाक मतपत्र) की व्यवस्था की जा सकती है। अब जबकि देश में 1,300 से अधिक जेल हैं, याचिका में कहा गया है कि मतदान केंद्र स्थापित करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा, क्योंकि जेलों में पहले से पर्याप्त प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद है।
कनाडा, ब्रिटेन और पाकिस्तान का दिया उदाहरण
याचिका में बताया गया है कि दुनिया के अधिकांश लोकतांत्रिक देशों में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। कनाडा और ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालतों ने भी जेल में बंद कैदियों के मतदान अधिकारों पर लगे प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया था। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश में भी विचाराधीन कैदियों को मतदान की अनुमति है। ऐसे में भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है, वहां यह अधिकार छीना जाना लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांगी गई राहतें
डॉ. सुनीता शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट से तीन प्रमुख मांगें की हैं
- जेलों में स्थानीय मतदाताओं के लिए मतदान केंद्र बनाए जाएं और दूसरे क्षेत्रों के कैदियों को डाक मतपत्र से वोट डालने की सुविधा दी जाए।
- संसद या सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया जाए कि कौन से अपराधों में सजा पाए व्यक्ति अस्थायी रूप से मतदान से वंचित रह सकते हैं, ताकि एक समान प्रतिबंध न रहे।
- प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 62(5) में संशोधन करने या दिशा-निर्देश जारी किए जाएं, जिससे निर्दोष या विचाराधीन कैदियों के अधिकार बहाल हो सकें।


