Monday, April 29, 2024
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लोकसभा चुनावों में BJP को होगी मुश्किल? त्रिपुरा में 72 सालों में पहली बार हो रहा ऐसा

त्रिपुरा में इस बार लोकसभा चुनावों में दोनों ही सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है क्योंकि सूबे के 72 साल के चुनावी इतिहास में लेफ्ट और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं।

Vineet Kumar Singh Edited By: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: March 22, 2024 8:45 IST
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Image Source : PTI FILE त्रिपुरा में कांग्रेस और वामदल पहली बार एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

अगरतला: त्रिपुरा के 72 साल के चुनावी इतिहास में पहली बार लेफ्ट पार्टियां और कांग्रेस BJP से मुकाबला करने के लिए कोई लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ रहे हैं। हालांकि दोनों पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव में संयुक्त रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को चुनौती दी थी। हाई प्रोफाइल त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला BJP उम्मीदवार तथा त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष आशीष कुमार साहा के बीच होगा, जो 'I.N.D.I.A.' ब्लॉक के साझा उम्मीदवार हैं।

BJP ने ध्वस्त किया था CPM का किला

दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष साहा और मौजूदा कांग्रेस विधायक सुदीप रॉय बर्मन ने मार्च 2018 में BJP के टिकट पर राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद फरवरी 2022 में पार्टी छोड़ दी। CPM के नेतृत्व वाले लेफ्ट फ्रंट को 25 साल बाद अपमानजनक हार देकर BJP पहली बार त्रिपुरा में सत्ता में आई। पिछले साल के विधानसभा चुनावों में, साहा और बर्मन ने BJP के खिलाफ कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन साहा हार गये, जबकि बर्मन ने अपनी सीट बरकरार रखी।

आखिरी बार कांग्रेस ने 1988 में जीता था त्रिपुरा

देब, जिन्होंने 14 मई 2022 को बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के निर्देश पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, ने मई 2019 में लंबे आंतरिक कलह के बाद बर्मन को अपने मंत्रिपरिषद से हटा दिया था। बता दें कि वाम मोर्चा 1952 से हर चुनाव कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहा है। कांग्रेस आखिरी बार 1988 में वाम दलों को हराकर त्रिपुरा में सत्ता में आई थी। पिछले साल के विधानसभा चुनावों में, लेप्ट फ्रंट ने, जिसने कांग्रेस के साथ सीट-बंटवारे की व्यवस्था में विधानसभा चुनाव लड़ा था, 11 सीटें जीती थीं जबकि देश की सबसे पुरानी पार्टी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं।

11 बार त्रिपुरा पश्चिम सीट जीत चुकी है CPM

त्रिपुरा की 2 लोकसभा सीटों, त्रिपुरा पश्चिम और त्रिपुरा पूर्व में से चुनावी फोकस हमेशा त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट पर है, जिसे 1952 से CPM ने 11 बार जीता था। कांग्रेस ने इस सीट पर 4 बार 1957, 1967, 1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की। इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) के साथ गठबंधन में 2018 में BJP के सत्ता में आने के बाद BJP उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने 2019 में पहली बार त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट जीती। इस बार BJP ने भौमिक को हटाकर देब को मैदान में उतारा, जो वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं।

CPM के वोटर बेस में आई है बड़ी गिरावट

त्रिपुरा की चुनावी राजनीति में आदिवासी और अनुसूचित जाति समुदाय के मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल 60 विधानसभा सीटों में से 30-30 सीटें त्रिपुरा पश्चिम और त्रिपुरा पूर्व लोकसभा सीटों में आती हैं। इनमें से 20 सीटें आदिवासियों के लिए और 10 सीटें अनुसूचित जाति समुदाय के लिए आरक्षित हैं। त्रिपुरा पश्चिम लोकसभा सीट में आने वाले 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 7 आदिवासियों के लिए और 5 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। सियासी एक्सपर्ट शेखर दत्ता ने कहा कि CPM सहित लेफ्ट पार्टियां के आदिवासियों और SC समुदाय के बीच बड़े पैमाने पर वोटर बेस में गिरावट के कारण 2018 के बाद से लगातार चुनावों में उनकी हार हुई है।

‘लेफ्ट के लिए त्रिपुरा में अभी भी हैं मुश्किलें’

दत्ता ने बताया, ‘संगठनात्मक गिरावट के अलावा, नेतृत्व संकट और सत्ता विरोधी कारक अभी भी जारी हैं क्योंकि लेफ्ट फ्रंट 1978 से 1988 और फिर 1993-2018 तक त्रिपुरा में सत्ता में था। नए चेहरों के साथ, उन्हें भाजपा की चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों के बीच संगठन का पुनर्निर्माण करना होगा।’ (IANS)

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