Tuesday, December 09, 2025
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कांचीपुरम साड़ी में ऐसा क्या होता है, जिससे इसकी कीमत लाखों में भी होती है

कांचीपुरम साड़ियों बहुत महंगी बिकती हैं। इनकी लाखों में भी होती है। ऐसे में चलिए जानते हैं आखिर ये कांचीपुरम साड़ियां इतनी महंगी क्यों बिकती हैं

Written By: Poonam Yadav @R154Poonam
Published : Dec 09, 2025 11:16 pm IST, Updated : Dec 09, 2025 11:16 pm IST
कांचीपुरम साड़ी - India TV Hindi
Image Source : FREEPIK कांचीपुरम साड़ी

जब बात साड़ियों कि हो और कांचीपुरम साड़ी का नाम न आए, यह कैसे मुमकिन है। तमिलनाडु में बनने वाली कांचीपुरम साड़ियाँ सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि भारतीय हस्तकला की जीवंत मिसाल हैं। यही वजह है कि इनकी कीमत कभी-कभी लाखों रुपये तक पहुँच जाती है। चलिए जानते हैं  ऐसा क्यों होता है?

इन कारणों से बढ़ जाती है कांचीपुरम साड़ियों की कीमत:

  • शुद्ध रेशम और असली ज़री का इस्तेमाल: कांचीपुरम साड़ियों को बनाने के लिए शुद्ध मुलबरी सिल्क का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही साड़ी में सोने और चांदी के ज़री का इस्तेमाल भी किया जाता है। ज़्यादातर साड़ी के बॉर्डर और पल्लू पर चाँदी और सोने की परत वाले ज़री का काम होता है। 

  • हाथ से बुनी हुई कारीगरी: जिन साड़ियों की कीमत लाखों में होती है उन्हें हाथ से बनाया जाता है। हाथ से एक साड़ी तैयार करने में 15 से 30 दिन तक का समय लग जाता है। कीमती साड़ियों में काम बहुत महीन होता है इसलिए उसे बनाने में बहुत ज़्यादा समय लगता है।

  • बॉर्डर, पल्लू और बॉडी अलग-अलग बुने जाते हैं: कांचीपुरम साड़ी का बॉर्डर, बॉडी और पल्लू अलग-अलग बुना जाता है। इस साड़ी को 'कोरवाई” नमक बुनाई से फिर जोड़ा जाता है। इसकी खूबी यह होती है कि अगर साड़ी फट भी जाए, तो यह जोड़ कभी नहीं टूटता। 

  • मंदिरों और प्रकृति से ली जाती है प्रेरणा: इन साड़ियों के डिज़ाइन को बनाने के लिए दक्षिण भारत के मंदिरों की मूर्तियों, गुफा, और प्रकृति से प्रेरणा ले जाती है। हर पैटर्न का अपना सांस्कृतिक महत्व और अर्थ होता है ।

  • विरासत से जुड़ी भावनाएँ: कांचीपुरम साड़ी सिर्फ पहनने की चीज़ नहीं, बल्कि विरासत है। दक्षिण भारत में इसे दुल्हन की साड़ी के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। कई परिवारों में यह पीढ़ियों तक संभालकर रखी जाती है।

कीमत क्यों पहुँचती है लाखों तक?

कांचीपुरम साड़ियों की कीमत कई वजहों से बढ़ जाती है। इस्तेमाल किए गए रेशम और ज़री, डिज़ाइन की जटिलता। साड़ी की लंबाई, बुनकर की कारीगरी और समय। जितनी बारीकी और जितना शुद्ध सोना-चाँदी ज़री में प्रयोग होता है, उतनी ही साड़ी की कीमत बढ़ जाती है। 

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