Thursday, April 25, 2024
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चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की करें पूजा, ये है विधि और मंत्र

देवी मां की कृपा बनाये रखने के लिये और घर-परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिये स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।

India TV Lifestyle Desk Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 29, 2020 9:15 IST
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चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन करें स्कंदमाता की पूजा

नवरात्रि का आज पांचवा दिन है। इस दिन देवी दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की उपासना की जाती है। इनकी उपासना से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। मान्यताओं के अनुसार, देवताओं के सेनापति कहे जाने वाले स्कन्द कुमार, यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। स्कंदमाता अपने भक्तों पर उसी प्रकार अपनी कृपा बनाये रखती हैं, जैसे कोई माता अपने बच्चों पर बनाये रखती हैं। अतः देवी मां की कृपा बनाये रखने के लिये और घर-परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिये इनकी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।

स्कंद माता का स्वरूप

शास्त्रों के अनुसार, भगवान स्कंद के बालरूप को माता ने अपनी दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में गोद में बैठाया है। स्कंदमाता स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं।

स्कंदमाता की पूजा विधि

सबसे पहले चौकी पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद उस चौकी में श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। फिर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।

इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अ‌र्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि को शामिल करें। इसके बाद प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

स्कंदमाता का मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

या फिर

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

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